बस्तर में 87 साल के ताऊजी बना रहे हैं आदिवासी छात्राओं को आत्मनिर्भर

छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले का जब भी नाम आता है तो नक्सलियों की छवि दिमाग में बनती है। भारत का यह हिस्सा इस समस्या से बुरी तरह प्रभावित है। ऐसे में इस जगह पर शिक्षा की बात करना तो बेमानी ही लगती है। लेकिन इन्हीं समस्याओं औार विपरीत परिस्थितियों के बी 87 साल के धर्मपाल सैनी उर्फ 'ताऊजी' ने एक ऐसी लौ जला रखी है जिससे हजारो की संख्या में आदिवासी लड़कियां रोशन हो रही हैं।
क्या है ताऊ की कहानी?
आपको बता दें, बस्तर जिले के 87 वर्षीय धर्मपाल सैनी उर्फ ताऊजी पिछले चार दशकों से राज्य में शिक्षा का स्तर सुधारने की कोशिश में लगे हुए हैं। राज्य की आदिवासी लड़कियों के लिए माता रुकमणी देवी आश्रम के अंतर्गत 37 आवासीय स्कूल खोल चुके हैं। इन में से कई स्कूल नक्सल समस्या से बुरी तरह प्रभावित इलाकों में हैं। अपने इन कार्यों के लिए धर्मपाल को 1992 में पद्मश्री भी मिल चुका है।
साक्षरता दर 1 फीसदी से 65 फीसदी पहुंचाई
1976 में जब सैनी बस्तर में 1976 में आए थे तो यहां की साक्षरता दर 1 प्रतिशत के आसपास थी। आज यहां की साक्षरता दर 65 फीसदी पहुंच चुकी है। इसमे सैनी के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। सैनी द्वारा चलाए जा रहे आवासीय स्कूलों से पढ़ने वाली आदिवासी लड़कियां एथलीट, डॉक्टर और प्रशासनिक सेवाओं में जा चुकी हैं जिसे देखकर अन्य आदिवासी लड़कियां भी इन आवासीय स्कूलों का रुख करने लगीं।
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक सैनी ने बताया कि आदिवासी इलाकों में आश्रम बनाना और उन्हें साक्षर करना चुनौतिपूर्ण काम था क्योंकि आदिवासी लोग अपने रीति-रिवाजों को बदलने को जल्दी राजी नहीं होते। शुरुआत से सभी लोगों ने मेरा हौसला तोड़ने की कोशिश की। हालांकि जिला प्रशासन ने आश्रम के लिए जगह दे दी। लेकिन अधिकारियों ने मुझसे कहा कि आदिवासी लोग किसी पर इतनी जल्दी विश्वास नहीं करते और वो लड़कियों को स्कूल नहीं भेजेंगे।
यह चेतावनी शुरुआत के छह महीनों में सही नजर आई क्योंकि तब तक केवल पांच आदिवासी लड़कियां ही आश्रम आईं थीं। इस का तोड़ धर्मपाल ने आश्रम में कृषि से जुड़ी पढ़ाई की शुरुआत कर के निकाला। इस के बाद आदिवासी परिवारों ने लड़कियों को आश्रम भेजना शुरू किया। उनको लगा कि कृषि की पढ़ाई होने से उनकी संस्कृति इस नई शिक्षा के कारण गायब नहीं होगी।
आदिवासी कल्याण विभाग की ओर से फंड मिला
इस तरह सैनी ने बस्तर इलाके में 16 छात्र स्कूल और 21 छात्रा स्कूल खोले। जहां से हजारों आदिवासी छात्र-छात्राओं ने पढ़ाई की। आवासीय स्कूलों को आदिवासी कल्याण विभाग की ओर से फंड मिले। सैनी के आश्रम नक्सल प्रभावित इलाकों में वहां कि लड़कियों को बेहतर जीवन का मौका भी दे रहे हैं। आवासीय स्कूल में करीब 350 छात्राएं हर साल रहती हैं और उनमें से करीब 150 छात्राएं देशभर में होने वाली खेल प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेती हैं।
वर्ष 2000 के बाद तो इनके आश्रम का दबदबा जिले और प्रदेश के एथलेटिक्स के खेलों में रहने लगा। इनके आश्रम की छात्रा जानकी मज्जी ने तो भाला फेंक प्रतियोगिता में रिकॉर्ड ही ब्रेक किया। मुंबई में अंडर-14 नैशनल गेम्स में 42 मीटर दूर भाला फेंका। ललिता कश्यप ने चार बार स्टेट लेवल मैराथन जीती। हर बार मिले चार लाख रुपए जीते। सैनी ने अब तक करीब 23 सौ छात्राओं को खेल से जोड़ा है और इनमें से ज्यादातर छात्राओं ने अपने-अपने क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन किया है।
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