भारत की इन 8 महिला वैज्ञानिकों ने रच दिया इतिहास

महिलाएं अगर चाहें तो कुछ भी कर सकती हैं, अंतरिक्ष में जा सकती हैं, हवाई जहाज़ उड़ा सकती हैं, रॉकेट बना सकती हैं। भारत के तमाम सफल अंतरिक्ष मिशन के पीछे सैकड़ों महिला वैज्ञनिकों का हाथ है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानि इसरों में ऐसी कई महिला वैज्ञानिक हैं जो चांद और मंगल तक सैटेलाइट पहुंचा चुकी हैं। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर पढ़िए इसरो की आठ ऐसी महिला वैज्ञानिकों के बारे में जिन्होंने अपने बुद्धिमानी, हिम्मत और सूझबूझ से इतिहास रच दिया।
रितु करढाल
रितु जब छोटी थीं तब उन्हें ये देखकर सबसे ज्यादा आश्चर्य होता था कि चंद्रमा कभी बड़ा और कभी छोटा कैसे हो जाता है। उसे देखकर न जाने कितने सवाल उनके दिमाग में आते थे और इन्हीं सवालों का जवाब ढूंढने की कोशिश ने उन्हें एक दिन वैज्ञानिक बना दिया। लेकिन अब सदियां बीत जाने के बाद वे मंगलयान मिशन की डिप्टी ऑपरेशन डायरेक्टर हैं। बचपन में ही अंतरिक्ष विज्ञान के बारे में हर छोटी-बड़ी जानकारी पढ़ने के बाद आज वे इसरो के जाने माने इस मिशन की प्रमुखों में से एक हैं। इसरो में कई समस्याओं को विचार-विमर्श से सुलझाने वालीं रितु, दो बच्चों की मां हैं, लेकिन बावजूद इसके वे ज्यादातर सप्ताहांत इसरो में बिताती हैं।

नंदिनी हरिनाथ
बचपन में स्टार ट्रैक सीरीज देखकर वैज्ञानिक बनने का सपना देखने वाली नंदिनी हरिनाथ ने आखिर इस ख्वाब को पूरा कर ही लिया। नंदिनी हरिनाथ अपनी पहली नौकरी के तौर पर इसरो में शामिल हुई थीं और 20 साल से लगातार वे क्षेत्र में आगे बढ़ती जा रही हैं। शिक्षकों व एवं इंजीनियरों के परिवार से होने के कारण विज्ञान और तकनीक के प्रति उनका स्वभाविक झुकाव था। आज एक इसरो में डिप्टी डायरेक्टर होते वे 2000 रुपये के नोट पर प्रकाशित मंगलयान मिशन का चित्र देश गौरवान्वित महसूस करती हैं। वे बेहद परिश्रम करती हैं। बच्चे होने के बावजूद वे लॉन्चिंग से पहले कुछ दिनों तक घर नहीं गईं। इसे कहते हैं प्रतिबद्धता।

एन वलारमथी
भारत के पहले देशज राडार इमेजिन उपग्रह, रिसेट वन की लांचिंग का एन वलारमथी ने प्रतिनिधित्व किया है। टीके अनुराधा के बाद वे इसरो के उपग्रह मिशन की प्रमुख के तौर पर वे दूसरी महिला अधिकारी हैं। 52 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने प्रदेश तमिलनाडु को गौरवान्वित किया है। एन.वलारमथी ऐसी पहली महिला हैं जो रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट में प्रयुक्त मिशन की प्रमुख हैं।

मौमिता दत्ता
मौमिता ने बचपन में चंद्रयान मिशन के बारे में पढ़ा था लेकिन उस वक्त उन्होंने नहीं सोचा था कि एक दिन वे इसी तरह के किसी मिशन का हिस्सा बनेंगी। ये उनकी मेहनत और लगन ही है कि आज वे मंगलयान मिशन के लिए बतौर प्रोजेक्ट मैनेजर काम कर रहीं हैं। उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से प्रायोगिक भौतिक विज्ञान में एम.टेक की पढ़ाई की है। वर्तमान में वे "मेक इन इंडिया" का हिस्सा बनकर प्रकाश विज्ञान के क्षेत्र में देश की उन्नति हेतु टीम का प्रतिनिधित्व कर रही हैं।

अनुराधा टीके
अनुराधा जियोसेट प्रोग्राम डायरेक्टर के तौर पर इसरो में सबसे वरिष्ठ महिला अधिकारी हैं। उनकी उम्र लगभग 9 साल रही होगी, जब उन्होंने यह जाना कि चंद्रमा पर पहुंचने वाले पहले अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग थे। बस यही था एक अंतरिक्ष यात्री बनने का उनका पहला पाठ, जिससे वे सम्मोहित हुईं। एक वरिष्ठ अधिकारी होने के नाते वे इसरो की हर महिला वैज्ञानिक के लिए एक प्रेरणास्त्रोत हैं। विद्यार्थी जीवन में उन्हें तार्किक विषयों को पढ़ने में अधिक रुचि थी, बजाए रटने या याद करने वाले विषयों के। आज वे इसरो के बेहद महत्वपूर्ण विभाग की प्रमुख होते हुए भी अपना वही तार्किक दिमाग लगाती हैं। उनका कहना है कि यहां समानता के व्यवहार के चलते कई बार उन्हें याद नहीं होता कि वे एक महिला हैं या अलग हैं।

कीर्ति फौजदार
कीर्ति फौजदार इसरो की कम्प्यूटर वैज्ञानिक हैं जो उपग्रह को उनकी सही कक्षा में स्थापित करने के लिए मास्टर कंट्रोल फेसिलिटी पर काम करती हैं। वे उस टीम का हिस्सा हैं, जो उपग्रहों एवं अन्य मिशन पर लगातार अपनी नजर बनाए रखती है। कुछ भी गलत होने पर सुधार का काम वही करती हैं।उनके काम का समय कुछ अनियमित सा है, कभी दिन में तो कभी रात भर। वे बिना डरे शांति से काम करती हैं क्योंकि उन्हें बस अपने काम से प्यार है।कीर्ति भविष्य में इसरो की बेहतर वैज्ञानिक बनने के लिए एम.टेक करना चाहती हैं।

मीनल संपथ
मंगलयान कक्षीय मिशन के लिए दिन में 18 घंटे काम करने वाली मीनल संपथ, इसरो की सिस्टम इंजीनियर के तौर पर 500 वैज्ञानिकों का प्रतिनिधित्व करती हैं। पिछले दो सालों में उन्होंने रविवार और शासकीय अवकाशों को लगभग अलविदा की कह दिया। लेकिन इस समझौते का फल भी उन्हें मंगल मिशन की सफलता के तौर पर सबसे बड़ी खुशी के रूप में मिला।अब उनका अगला लक्ष्य राष्ट्रीय अंतरिक्ष संस्थान में पहली महिला डायरेक्टर बनना है।

टेसी थॉमस
कुछ महीने पहले हाल ही में महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन आनंद महिंद्रा ने एक ट्वीट किया। इस ट्वीट में उन्होंने लिखा - टेसी बॉलिवुड की किसी भी ऐक्ट्रेस से ज्यादा प्रसिद्ध होने की योग्यता रखती हैं। टेसी के पोस्टर हर भारतीय स्कूल में होने चाहिए, जो रूढ़ियों को खत्म करेगा और लड़कियों को आगे बढ़ने की प्रेरणा देगा।' उस वक्त लोगों के मन में ये उत्सुकता पैदा हुई थी कि आखिर कौन हैं टेसी। वो रॉकेट साइंस जिसे ज़्यादातर लोग बहुत कठिन मानते हैं। डॉ. टेसी थॉमस उस 'रॉकेट साइंस' के बारे में सिर्फ बात नहीं करतीं, बल्कि उसकी ज्ञाता हैं। उन्होंने भारतीय मिसाइल कार्यक्रम में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है जिसके बल पर आज हमारा देश मिसाइल सुपर पॉवर के मामले में अग्रणी देशों में आता है। टेसी, भारत की वह मिसाइल महिला हैं जिसने अग्नि4 और अग्नि 5 मिशन में प्रमुख सहभागिता दी। टेसी थॉमस इसरो के लिए नहीं बल्कि डीआरडीओ के लिए तकनीकी कार्य करती हैं। लेकिन वे इस लिस्ट में शामिल होने योग्य हैं। यह उनका परिश्रम और समर्पण ही है जो भारत को आईसीबीएमएस के साथ अन्य देशों के खास समूह का हिस्सा बनाने में सहयोगी रहा। अपनी उपलब्धियों के कारण ही वे मीडिया में अग्निपुत्री के नाम से भी जानी गईं।

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