75 वर्ष की ये अम्मा सौर ऊर्जा से भूनती हैं भुट्टा, दोगुनी हुई आमदनी

आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है ये कहावत बेंगलुरु की 75 वर्ष की एक अम्मा ने कर दिखाया है। दरअसल बेंगलुरु की रहने वाली सेलवाम्मा सड़क किनारे भुने हुए भुट्टे बेचती हैं। ऐसा करने वाली ये कोई पहली महिला नहीं हैं, लेकिन इनकी एक बात दूसरों से अलग करती है। बात ऐसी है कि सेलवम्मा जो भुट्टे भूनती हैं उसमें सोलर ऊर्जा का काफी योगदान है।
ठेले पर सोलर पैनल
बेंगलुरु की रहने वाली सेलवाम्मा बीते 20 वर्ष से सड़क किनारे भुने हुए भुट्टे बेचतकर परिवार का पेट पालती हैं। मजेदार बात यह है कि सेलवाम्मा के ठेले पर अब कोयले की खपत आधी हो गई है। उन्होंने एक छोटा सा सोलर पैनल लगवा रखा है और सौर ऊर्जा की मदद से भुट्टे भुनने का काम करती हैं। सेलवम्मा को सौर ऊर्जा से जुड़े ये उपकरण एक एनजीओ ने दिए हैं। इससे जहां एक ओर अम्मा के ठेले का खर्च कम हुआ है और उनका मुनाफा बढ़ गया है, वहीं सौर ऊर्जा के कारण छोटे स्तर पर ही सही प्रदूषण में भी कमी आ रही है।
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मेरे घर के पास ही एक एनजीओ है। पहले मुझे भुट्टे भुनने में परेशानी होती है। एनजीओ ने मुझे ये उपकरण दिए हैं और अब कम मेहनत में मुझे ज्यादा मुनाफा भी हो रहा है। - सेलवम्मा
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छोटे से ही होती है बदलाव की शुरुआत
अगर हम बदलाव की बात करें तो एक छोटा सा कदम भी काफी महत्वपूर्ण होता है। ऐसा ही एक छोटा सा कदम एक एनजीओ की मदद से सेलवम्मा ने लिया है। सेलवम्म के ठेले पर जो उपकरण हैं, उनमें एक डीसी फैन, एक हल्का लीथियम-आयन बैट्री भी है। ठेले पर सौर ऊर्जा की मदद से पंखा हमेशा चलता रहता है। कोयले को हवा लगती रहती है और भुट्टा भी जल्दी पकता है। एनजीओ ने सेलवम्मा को जो उपकरण दिए गए हैं, उसकी कुल लागत 9000 रुपये है।
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