6 साल की जन्नत अपने कश्मीर को दोबारा बना रही है 'जन्नत'

एक वक्त था जब लोग कश्मीर को जमीं का स्वर्ग कहते थे। लोग कहते थे जिसने एक बार कश्मीर देख लिया उसने मानो जन्नत देख ली, लेकिन अब न तो कश्मीर पहले जैसा रह गया और न ही यहां की खूबसूरती। हर साल लाखों पर्यटकों को लुभाने वाले कश्मीर को जितनी आतंकियों की नजर लगी है, उतनी ही यहां की सुंदरता को गंदगी की भी। जो डल झील पहले इतनी साफ होती थी कि लोग इसका पानी तक पी लेते थे, अब उसमें जगह-जगह कूड़ा तैरता हुआ दिखता है।
कश्मीर के डल लेक में हाउस बोट चलाने वाले तारिक अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कहते हैं, ''डल हमारे लिए सब कुछ था, हम तो यहां का पानी पीते थे जी! और हम सब हाउस बोट वालों की जेबों में डॉलर होते थे डॉलर। पर फिर सब बदल गया।''
तारिक का परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी अपने पुश्तैनी हाउसबोट का काम देखता आ रहा है। डल लेक में हाउसबोट पर रहना लोगों के लिए एक ख्वाब जीने जैसा होता था और तारीक और उनका परिवार लोगों के इस ख्वाब को पूरा कर रहे थे, लेकिन 1989 के बाद कश्मीर के हालात इतने बिगड़ गए कि यहां हाउसबोट चलाने वाले लोगों के लिए अपना पेट पालना तक मुश्किल हो गया। बेटर इंडिया से बात करते हुए तारिक कहते हैं, यकीन मानिए यहाँ का माहौल बाकी सब जगहों जैसा ही है। जिस तरह मुंबई में ब्लास्ट होता है, लेकिन फिर अगले दिन सब नार्मल हो जाता है, वैसे ही कश्मीर भी है। यहां पूरी सिक्योरिटी है टूरिस्ट के लिए। पर इस बात को हम बाहर के लोगों तक कैसे पहुंचाते? बाहर के लोग यहां आने से डरने लगे थे, जिसका सीधा असर हम जैसे लोगों पर हो रहा था। घोड़े वाले, शिकारे वाले, दुकानदार, कारीगर…हम हाउस बोट वाले…हम सब के लिए अपने परिवार का पेट भरना मुश्किल हो गया था।

दुखी होते हुए तारिक कहते हैं कि जिस डल की खूबसूरती के चर्चे विदेश तक थे, जिस डल का हम पानी पीते थे, आज उसमें नहाने को भी जी नहीं करता था। एक अंग्रेज पर्यटक की बात याद करते हुए तारिक कहते हैं, ''मैं एक बार एक अंग्रेज पर्यटक को डल में शिकारे पर घुमा रहा था। मैंने देखा कि सिगरेट पीने के बाद उसने उसे बुझाकर एक कागज में लपेटकर अपनी जेब में रख ली। जब मैंने उससे ऐसा करने की वजह पूछी, तो उसने कहा कि अगर वो इस सिगरेट को डल में फेंकता तो डल का पानी जहर बन जाता।''
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इसके बाद तारिक ने तय कर लिया कि अब वे खुद डल को साफ करेंगे। उन्हें जब भी समय मिलता, वो अपने शिकारे पर निकल जाते और डल झील से प्लास्टिक की थैलियां, बोतलें और बाकी कचरा निकालते। समय बीता और तारिक की बेटी, जन्नत 5 साल की हो गयी। अपने बाबा को डल की सफाई में लगा देख, जन्नत ऐसे कई सवाल करती, जिनका जवाब ढूंढते हुए तारिक का इसे दोबारा पहले जैसा बनाने का जूनून और बढ़ जाता।

जन्नत ने एक बार अपने पिता से पुछा कि बाबा डल को कौन गंदा करता है? ये इतना गंदा कैसे हो गया? आप तो कहते थे डल बिलकुल साफ था। जब तारिक ने इसका कारण ढूंढा तो उन्हें पता चला कि इसके तीन कारण हैं।
पहला, पूरे श्रीनगर में व्यवस्थित ड्रेनेज सिस्टम का न होना। दूसरा, डल के चारों ओर इमारतों, रास्तों और आबादी का बढ़ना और तीसरा, एसटीपी याने सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का ठीक से काम न करना। तारिक बताते हैं कि उन्होंने आरटीआई के जरिए ये पता किया कि डल झील तक कुल 19 नालियां आती हैं। उनमें जो भी कचरा आता है वह यहां जमा हो जाता है और झील चारों तरफ से बंद है इसलिए इस कचरे को निकलने का रास्ता नहीं मिलता। यहां पानी का बहाव भी कई जगह ठीक नहीं है जिसकी वजह से इसमें काई जम जाती है।
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अपने पापा तारिक को डल की सफाई में लगा देख छोटी सी जन्नत ने भी इसे अपना मिशन बना लिया। अब 6 साल की हो चुकी जन्नत कहती है कि मेरा एक ही ख्वाब है कि मैं अपने डल को एक दिन साफ देख सकूं। मेरे बाबा मुझे बताते हैं कि ये इंशा अल्लाह एक दिन जरूर होगा।

खेलने कूदने की उम्र में ये बच्ची हर रविवार को अपने बाबा और दूसरे साथियों के साथ शिकारे पर डल की सफाई करने निकल पड़ती है। जन्नत कहती है कि वह संडे का बेसब्री से इंतजार करती है कि ताकि अपने डल को साफ कर सके। तारिक बताते हैं कि पिछले दिनों जब हम रैनावारी की तरफ सफाई करने गए, तो वहां इतनी गन्दगी और बदबू थी कि जन्नत को उल्टियां होने लगीं। ऐसे में हमने उसकी सेहत का ध्यान रखते हुए उसे यहां आने से मना कर दिया। बड़ी मुश्किल हुई उसे इस बात के लिए मनाने में।
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बड़ी मासूमियत से जन्नत कहती है कि वह बड़े होकर साइंटिस्ट बनना चाहती है, क्योंकि “साइंटिस्ट बनने से चांद पर भी तो जा सकते है ना? और डल को साफ करने के लिए मशीनों की भी तो कमी है। मैं साइंटिस्ट बन जाऊंगी, तो उन मशीनों को बनाऊंगी, जो मेरे डल को हमेशा साफ रखें। अब जन्नत के साथ और भी कई लोग इस मिशन से जुड़ गए हैं। तारिक ने फेसबुक पर 'मिशन डल लेक' नाम से एक पेज भी बनाया है जहां वे लोगों से डल की सफाई में मदद के लिए लोगों से अपील करते हैं।
बीते साल पीएम मोदी ने भी इस छोटी सी बच्ची की तारीफ करते हुए लिखा था - इस छोटी सी बच्ची को सुनना आपकी सुबह को बेहतर बना देगा। स्वच्छता के लिए कमाल का जुनून।
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