कभी राइस मिल में क्लर्क थे बीएस येदियुरप्पा, आज तीसरी बार बने कर्नाटक के मुख्यमंत्री

112 के जादुई आंकड़े को छूने में नाकाम रही बीजेपी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट से अनुमति मिलने के बाद अपने पार्टी के सीएम उम्मीदवार को शपथ दिला दी है। कर्नाटक की राजनीति को नई दिशा देने वाले बीएस येदियुरप्पा ने नए मुख्यमंत्री के तौर पर तीसरी शपथ ले ली है।
तीसरी बार मुख्यमंत्री की शपथ लेने वाले येदियुरप्पा बीजेपी की ओर से मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे। हालांकि, अभी अपनी कुर्सी बचाने के लिए उन्हें 15 दिन में बहुमत साबित करना है। वह विधानसभा में होने वाले अग्निपरीक्षा में पास होंगे या नहीं यह तो अभी भविष्य के गर्त में हैं, लेकिन 2008 में इसी तरह के संकट में बहुमत पा चुके येदियुरप्पा के बारे में कुछ भी कहना मुश्किल नहीं है। दक्षिण भारत में पहली बार 2008 में कमल का फूल खिलाने वाले बी एस येदियुरप्पा दस साल बाद भी भाजपा की सरकार बनाने में जुटे हुए हैं। लिंगायत समुदाय से आने वाले येदियुरप्पा की कोई राजनीति पृष्ठभूमि नहीं रही है। जीवन के शुरूआती दिनों में राइस मिल में क्लर्क की नौकरी करने वाले येदियुरप्पा यहां तक कैसे पहुंचे। आईए जानते हैं उनके जीवन से जुड़े कुछ अनछुए पहलु को।
क्लर्क के तौर पर शुरू किया था सफर
27 फरवरी 1943 को लिंगायत परिवार में जन्मे येदियुरप्पा कर्नाटक के मांड्या जिले के बुकानाकेरे रहने वाले हैं। उनके पिता का नाम सिद्धलिंगप्पा और माता का नाम पुट्टतायम्मा था। विकिपीडिया के अनुसार उनका नाम कर्नाटक के तुमकुर जिले में येदियुर स्थान पर संत सिद्धलिंगेश्वर द्वारा बनाए गए शैव मंदिर के नाम पर उनका नाम रखा गया था। जब येदियुरप्पा चार साल के थे तब ही इनकी माता की मौत हो गई। उन्होंने कला से स्नातक किया है। पढ़ाई करने के बाद 1965 में येदियुरप्पा ने नौकरी शुरू की और सोशल वेलफेयर डिपार्टमेंट में उन्होंने बतौर फर्स्ट डिवीजन क्लर्क से शुरुआत की। हालांकि, यहां पर उनका मन नहीं लगा और कुछ समय बाद उन्होंने यहां से नौकरी छोड़ दी। इसके बाद वे अपने घर फिर से पहुंचे और शिकारीपुरा पहुंच कर वीरभद्र शास्त्री की राइस मिल में नौकरी की।
यहां भी येदियुरप्पा ने बतौर क्लर्क के तौर पर ही नौकरी शुरू की और इस तरह से अपने जीवन की दूसरी नौकरी भी उन्होंने क्लर्क की ही की। मिल में काम करते-करते वीरभद्र की बेटी मित्रा देवी से प्यार हो गया। और उन्होंने 1967 में उन्होंने वीरभद्र शास्त्री की पुत्री मैत्रादेवी से शादी कर ली। वीरभद्र को येदियुरप्पा की काबिलियत की वजह से कोई एतराज भी नहीं हुआ। यहां पर नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने शिमोगा में हार्डवेयर की दुकान खोली, लेकिन वे इससे भी संतुष्ट नहीं हुए। येदियुरप्पा के दो पुत्र बी वाई राघवेंद्र और विजयेंद्र एवं तीन पुत्रियां अरूणादेवी, पद्मावती और उमादेवी हैं। 2004 में एक दुर्घटना में उनकी पत्नी मित्रा देवी की मृत्यु हो गई।
जब उनकी किश्मत उन्हें ले लाई राजनीति
कहते हैं कि भाग्य रेखा में जो लिखा होता है वह एक दिन होकर ही रहता है। कुछ ऐसा ही येदियुरप्पा के साथ भी हुआ। जीवन की शुरूआत सरकारी नौकरी से करने वाले येदियुरप्पा ने जल्द ही नौकरी छोड़ दी और उसके बाद क्लर्क की नौकरी की वह भी छोड़ दी। इसके बाद फिर उन्होंने अपना निजी बिजनेस शुरू किया वह भी सफल नहीं रहा। द न्यूज मिनट के अनुसार येदियुरप्पा की लाइफ का टर्निंग प्वाइंट उनकी शादी थी। शादी से पहले से ही येदियुरप्पा संघ से जुड़े थे। लेकिन, शादी के 2 बाद उन्हें राजनीति में आने का मौका मिला। संघ से जुड़े हुए होने के कारण उन्हें शिवमोग्गा जिला का प्रमुख नियुक्त किया गया।
1973 में वे आधिकारिक तौर पर उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया और शिकारीपुरा से नगर परिषद में काउंसलर के रूप में निर्वाचित हुए। इसके बाद 1977 में दुबारा चुने गए। इस तरह से वह लगातार आगे बढ़ते गए। 1980 में येदियुरप्पा बीजेपी में शामिल हो गए और 1983 में शिकारीपुरा से विधानसभा चुनाव लड़ा और पहली ही बार में विधायक बन गए। सबसे खास बात यह रही कि उसी वर्ष सिद्धारमैया ने पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ा था। चुनाव जीतने के बाद वे 1985 से 1988 तक भाजपा के शिवमोग्गा जिला अध्यक्ष रहे। 1985 में एक बार फिर से वे विधानसभा चुनाव जीते। येदियुरप्पा में बीजेपी को भविष्य दिखा देख उन्हें 1988 प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। वे 1989 विधानसभा चुनाव में जीतकर लगातार विधानसभा पहुंचे। इसके बाद येदियुरप्पा को 2000 में विधान परिषद का सदस्य नियुक्त किया गया और 2004 तक एमएलसी बने रहे।
किसानों के लिए संघर्ष करके बने लोकप्रिय नेता

जमीनी नेता होने के कारण येदियुरप्पा ने अपनी राजनीति किसानों के लिए संघर्ष करते ही शुरू की। प्रसिद्धी और किसानों के बीच में लोकप्रियता हासिल करने के लिए उन्होंने किसानों के बीच में संघर्ष किया। 1970 के दशक में उन्होंने किसानों और श्रमिकों के लिए बहुत संघर्ष किया। उन्होंने राज्य वन विभाग को नीलगिरी जमीन पर पौधे लगाए जाने से रोका था जो इन कृषि मजदूरों को "टिलर टू लैंडर" योजना के हिस्से के रूप में दिए गए थे।
उन्होंने बंधुवा मजूदरों का भी कारण उठाया और 1700 बंधुवा मजूदरों को तत्काल रिहाई और उनके पुनर्वास की मांग उठाई थी। 1987 में उनके द्वारा जनता के लिए किये संघर्ष ने उन्हें और लोकप्रिय बना दिया। शिवमोग्गा जिले में भयानक सूखा होने के कारण उन्होंने राहत कार्य के लिए अगस्त 1987 में साईकिल यात्रा निकाली और सरकार से राहत कार्य शुरू करने का आग्रह भी किया था।
और एक समय जेडीएस में शामिल होना चाहते थे येदियुरप्पा
बीजेपी का झंडा में येदियुरप्पा कर्नाटक में बुलंद करते जा रहे थे लेकिन बीजेपी द्वारा उन्हें वैसा सम्मान नहीं दिया जा रहा था जिसकी वे अपेक्षा कर रहे थे। इसकी के चलते उन्होंने अंतत: जेडीएस में शामिल होने का निर्णय लिया था, लेकिन की महत्वाकांक्षा को समझते हुए बीजेपी केंद्रीय हाईकमान ने उन्हें 2004 के चुनाव में मुख्यमंत्री के रूप में पेश किया। फिर क्या 2004 में बीजेपी ने 79 सीटों पर जीत हासिल की और सबसे बड़ी पार्टी के रूप में ऊभरी। हालांकि कांग्रेस ने जेडीएस के साथ मिलकर सरकार बना ली और येदियुरप्पा विधानसभा में विपक्ष के नेता बने।
कुछ समय बाद जेडीएस ने अपना समर्थन वापस ले लिया और 2006 में बीजेपी के साथ सरकार बनाई। जिसमें येदियुरप्पा को उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री का कार्यभार दिया गया। जेडी (एस) और बीजेपी के बीच सत्ता-साझा समझौते के मुताबिक, 2007 में वे राज्य के मुख्यमंत्री के बने। यह केवल सात दिनों तक ही चल सका क्योंकि कुमारस्वामी मुख्यमंत्री पद की स्थिति छोड़ने के इच्छुक नहीं थे और जेडी (एस) गठबंधन से वापस ले लिया।
इसके लिए 2007 में बदल ली थी नाम की स्पेलिंग
येदियुरप्पा को धार्मिक माना जाता है। पूजा-पाठ में उनकी गहरी आस्था है। इस बार भी कर्नाटक चुनाव की वोटिंग से पहले उन्होंने पूजा की और उसके बाद ही वोट डालने निकले। अपनी इसी धार्मिक प्रवृति के चलते उन्होंने 2007 में एक ज्योतिषी के कहने पर अपने नाम की स्पेलिंग बदली थी। पहले वह अपने नाम को अंग्रेजी में Yediyurappa लिखते थे और बाद में बदलकर Yeddyurappa किया. ज्योतिषी के कहने पर उन्होंने अपने नाम में एक अतिरिक्त D जोड़ा और I को हटा दिया। इसका कारण ये माना जाता है कि 2007 में जब कर्नाटक में बीजेपी को अपनी पैंठ जमानी थी तो येदियुरप्पा ही वो चेहरा थे जिसमें पार्टी को आशा की किरण दिखाई दी। लेकिन, सफर आसान नहीं था। क्योंकि, लिंगायत फैक्टर होने के बावजूद येदियुरप्पा को आगे आने के लिए कई बड़े दिग्गजों को पीछे छोड़ना था। यही वो समय था जब एक ज्योतिषी के कहने पर बीएस येदियुरप्पा ने अपने नाम की स्पेलिंग बदल ली।

जीवन के शुरूआत से ही संघर्ष करते रहे येदियुरप्पा
येदियुरप्पा का जीवन शुरू ही संघर्ष मय रहा है। 4 साल की उम्र में उनकी मां का देहांत हो गया। इसके बाद पिता की भी जल्दी ही मृत्यु हो गई। येदियुरप्पा ने इसके बाद अपना समय चाचा के यहां गुजारा। ग्रेजुएशन की पढ़ाई के दौरान वह शेषाद्रिपुरम कॉलेज में इवनिंग क्लास करते थे और दिन में एक स्थानीय प्राइवेट कंपनी में 300 रुपए प्रति महीने की जॉब करते थे। इसके बाद भी वह राजनीति में संघर्ष करते रहे। विधायक के रूप में उन्होंने जनता के बीच में खूब संघर्ष किया। यही नहीं सत्ता तक पाने में उन्हें संघर्ष करना पड़ा।
2007 में महज सात दिनों के ही मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद जब 2008 में जीते लेकिन पूरा बहुमत नहीं मिला। इसके बाद उन्होंने ‘ऑपरेशन कमल’ नाम देकर सत्ता तक पहुंचने में कामयाबी पाई। 2011 में भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते उन्हें कुर्सी गंवानी पड़ी। जनार्दन रेड्डी बंधुओं की वजह से उन्हें जेल भी जाना पड़ा और वे जेल जाने वाले कर्नाटक के पहले मुख्यमंत्री बने। उन्हें भाजपा की प्राथमिक सदस्यता तक से इस्तीफा देना पड़ा था। उन्होंने कर्नाटक जनता पक्ष के रूप में पार्टी बनाई, लेकिन वे सफल नहीं रहे। 2013 में बीजेपी को मिली करारी हार के बाद एक बार फिर से उनकी घर वापसी हो गई। और अब फिर से वे सत्ता पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। 15 दिनों के अंदर उन्हें विधानसभा में बहुमत साबित करना ही होगा।
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