असल जिंदगी में भी जादूगर हैं राजस्थान के सीएम, स्कूली दिनों में दिखाते थे जादू

राजस्थान की सियासत में अशोक गहलोत का जादू कुछ इस तरीके से चला कि आलाकमान को एक बार फिर से सीएम की कुर्सी संभालने का जिम्मा उन्हें ही देना पड़ा। राजस्थान की सियासत में अहम चेहरे सचिन पायलट को पीछे छोड़कर तीसरी बार मुख्यमंत्री बने जा रहे अशोक गहलोत असल जिंदगी में भी जादूगर थे। सियासत में अपनी जादूगिरी का जलवा बिखेरने वाले अशोक गहलोत के पिता लक्ष्मण सिंह दक्ष देश के जाने-माने जादूगर थे।
पिता से उन्होंने भी जादूगिरी का फन सिखा और जीवन की शुरूआत में उनकी आय का जरिया भी बना। स्कूली दिनों में अशोक गहलोत जादू दिखाया करते थे और उससे होने वाली आय से पढ़ाई का खर्च निकालते थे। छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय हुए और बहुत ही जल्द वह संजय गांधी के खास बने गए। युवा अवस्था में सांसद बनकर संसद पहुंचे और 1982 में इंदिरा गांधी की कैबिनेट में मंत्री बने। राजस्थान की राजनीति में बड़े-बड़े नेताओं को पीछे करके पहली बार 1998 में मुख्यमंत्री बने और सियासत के असली जादूगर बनकर भी उभरें।
पिता बनाना चाहते थे अशोक गहलोत को डॉक्टर
अशोक गहलोत का जन्म जोधपुर जिले में एक सामान्य परिवार में हुआ था। 1951 को जन्में अशोक गहलोत के पिता लक्ष्मण सिंह देश के जाने-माने जादूगर थे। वे देश में घूम-घूमकर जादू दिखाते थे। उन्होंने बचपन में ही जादू के कई सारे फन सीखें। वह जेब की थैली से रूमाल निकालकर कबूतर बनाने में माहिर थे। जादू की कला जानने की वजह से संजय गांधी और उनके दोस्त ‘गिली-बिली‘ नाम से बुलाते थे। सरदारपुरा विधानसभा क्षेत्र के जैन वर्धमान स्कूल में उन्होंने पांचवीं तक की पढ़ाई की।इसके बाद सुमेर स्कूल में एडमिशन लिया। अशोक गहलोत के पिता उन्हें डॉक्टर बनाना चाहते थे, लेकिन उनकी किस्मत में राजयोग लिखा हुआ था। पढ़ाई के दौरान वह स्काउट और एनसीसी के जरिए होने वाली समाज सेवा में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया करते थे। बातचीत में निपुण होने के कारण उनका रूझान राजनीति की तरफ बढ़ा और छात्र जीवन से ही राजनीति शुरू कर दी। कॉलेज छात्रसंघ के चुनाव में जीतकर वह उपमंत्री बनें। इसके बाद उन्होंने जोधपुर विश्वविद्यालय में दाखिला लिया, लेकिन उन्हें यहां पर चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। बीएससी करने के बाद उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएशन में अर्थशास्त्र चुना। आज भी वह उस कमरे को बहुत लकी मानते हैं जिसमें वह पैदा हुए थे। वह मतदान पर जाने से पहले अपने पुश्तैनी घर जरूर जाते हैं।
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इंदिरा गांधी के कहने पर ज्वाइन की थी कांग्रेस

छात्र जीवन से राजनीति में आने की इच्छा रखने वाले अशोक गहलोत को समाजसेवा का बेहतर मौका जोधपुर के गांधी शांति प्रतिष्ठान से मिला। यहां पर उन्होंने गांधी जी के विचारों को पढ़ा और सेवावाली कांग्रेस को ज्वाइन कर लिया। 1971 में युद्ध के दौरान भारत आएं शरणार्थियों की उन्होंने जमकर सेवा की और मशहूर गांधीवादी डॉ. सुब्बाराव के साथ काम करने लगे। शिविर के लोगों से मिलने के लिए एक बार जोधपुर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पहुंचीं और 20 वर्षीय अशोक गहलोत के काम को देखकर उन्होंने उनसे कांग्रेस ज्वाइन करने के लिए कहा। कांग्रेस ज्वाइन करने के बाद ही वह संजय गांधी के करीबी हो गए। साल 1973 में अशोक गहलोत को एनएसयूआई का राज्य अध्यक्ष बना दिया गया है। इस दौरान उन्होंने जोधपुर विश्वविद्यालय से चुनाव लड़ा, लेकिन उनको पराजय मिली। आपातकाल के दौरान संजय गांधी ने युवा कांग्रेस का काम किया। गांव-गांव जाकर उन्होंने बीस सूत्री कार्यक्रम का प्रचार किया।
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बिजनेस में भी अजमाया था भाग्य

राजनीति में आने के बाद अशोक गहलोत ने रोजी-रोटी चलाने के लिए बिजनेस में भी हाथ अजमाया था। अशोक गहलोत ने 1972 में खाद की दुकान खोली। जोधपुर से पचास किलोमीटर दूर उन्होंने खाद की दुकान खोली। लेकिन दुकान ज्यादा नहीं चली। पढ़ाई के दौरान ही धंधा न चलने के कारण उन्हें बहुत बड़ा झटका लगा। उन्हें डेढ़ साल के अंदर ही अपना कारोबार समेटना पड़ा। बिजनेस समेटने के बाद वह पूरी तरह से वह राजनीति में ही सक्रिय हो गए। आपातकालीन के दौरान उन्हें बेहतर मौका मिला और उन्होंने अपनी किश्मत को अजमाया। कांग्रेस नेता इस दौरान अपनी हार पर काफी चिंतित थे। लेकिन उन्हें जीत हासिल मिली।
मोटरसाइकिल बेचकर लड़ा था पहला चुनाव

आपातकाल के दौरान 1977 के विधानसभा में जब उन्हें कांग्रेस से टिकट मिला तो उन्होंने लाल रंग की येजडी बाइक को बेच डाला। उससे मिली राशि से चुनाव लड़ा। वह अपना चुनाव-प्रचार खुद ही करते थे और पोस्टर भी लगाते थे। विधानसभा चुनाव के दौरान उन्हें लगभग 4000 वोटों से हारना पड़ा। उन पर भरोसा करते हुए कांग्रेस ने आपातकाल के दौरान ही 1980 में लोकसभा चुनाव का टिकट दिया। अशोक गहलोत लगभग 52,000 वोटों से जीतकर जोधपुर से सांसद बनकर वह संसद पहुंचे। गहलोत ने पांच बार जोधपुर का प्रतिनिधित्व संसद में किया। 1982 में पहली बार इंदिरा गांधी की मंत्रिपरिषद में उन्हें उपमंत्री बनाया गया। शपथ लेने के लिए वे तिपहिया में बैठकर गए थे। गहलोत 1984 में राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सबसे युवा अध्यक्ष बने। इसके बाद राजस्थान में गहलोत ने पार्टी में जान फूंकने के लिए जमीनी स्तर पर काफी काम किया और इंदिरा गांधी के बाद राजीव गांधी के भी करीबी रहे। इसके बाद 1991 में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में उन्हें कपड़ा मंत्री बनाया गया था हालांकि बाद में टकराव होने के कारण राव ने उन्हें पद से हटा दिया। उसके बाद 1998 में राजस्थान की कमान उन्हें कांग्रेस नेतृत्व ने सौंपी। इसके बाद 2008 में और अब फिर 2018 में वह राजस्थान की कमान संभालने जा रहे हैं।
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