कैबिनेट मंत्री अरविंद सावंत ने दिया इस्तीफा, जानें शिवसेना की क्या है मजबूरी

महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए प्रयास कर रही शिवसेना ने बीजेपी से वर्षों पुराना रिश्ता तोड़ दिया है। मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे शिवसेना के मंत्री अरविंद सावंत ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। अरविंद सावंत के इस्तीफा देते ही बीजेपी और शिवसेना की दशकों पुरानी दोस्ती में रार आ गई है। बता दें एनसीपी और कांग्रेस ने शिवसेना के साथ गठबंधन करने से पहले यह शर्त रखी थी कि अगर गठबंधन बनाना है, तो शिवसेना को बीजेपी के साथ में गठबंधन तोड़ना होगा। शिवसेना ने उसी तरफ कदम बढ़ाया और एकमात्र केंद्रीय मंत्री अरविंद सावंत ने आज दोपहर में इस्तीफा दे दिया हैं।
आखिर टूट गया शिवसेना-बीजेपी का 30 साल पुराना गठबंधन!
गठबंधन तोड़ने के साथ ही दोनों दलों ने एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाना शुरू कर दिया है। बता दें बीजेपी के साथ शिवसेना का गठबंधन एनडीए में सबसे पुराना रहा है। दोनों ही दल महाराष्ट्र में लगभग 30 साल से एक साथ रहे और केंद्र में सरकार बनाने में शिवसेना की भी बहुत बड़ी भूमिका रही। इन दोनों ही दलों में रार तो रही है, लेकिन गठबंधन टूट जाएगा इसकी उम्मीद शायद विपक्ष को भी नहीं थी। अब ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए 50-50 फार्मूले पर बात न बनने के कारण गठबंधन टूटा गया है? अगर यही वजह है तो मोदी सरकार-2 में सिर्फ एक मंत्री पद मिलने पर भी शिवसेना को गठबंधन से बाहर हो जाना चाहिए था। उस समय शिवसेना ने बीजेपी के साथ में मिलकर चुनाव लड़ा, लेकिन अब गठबंधन टूटने के बाद फिर से चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है।
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शिवसेना ने चलाया इस बार ब्रह्मास्त्र
बाला साहब ठाकरे के निधन के बाद शिवसेना को उनका अस्तित्व बचाने की सबसे बड़ी चुनौती थी। बीजेपी के मुकाबले शिवसेना लगातार कमजोर होती चली गई। बीजेपी से कमजोर होने की वजह से 2014 में ही सामने आ गई, जब 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के मुकाबले शिवसेना को कम सीटे मिली। यही नहीं विधानसभा चुनाव में बीजेपी की सीटें भी कम आई। विधानसभा चुनाव की गणित कुछ ऐसी बैठी कि बीजेपी के सामने शिवसेना की हैसियत कमतर होती गई। अब बीजेपी यहां पर अपनी शर्तों पर शिवसेना के साथ रहने को तैयार हुई। विधनसभा चुनाव के बाद ऐसा पहली बार हुआ है जब शिवसेना लगातार बीजेपी से मोलभाव कर रही है। वहीं, बीजेपी इस बार शिवसेना के साथ बिल्कुल ही मोलभाव नहीं कर रही है। शिवसेना इस बार मौके का फायदा उठाना चाहती है। शिवसेना के नेताओं का मानना है कि पार्टी भले ही विधानसभा चुनावों में सीटों के आधार पर नम्बर दे रही हो, लेकिन अगर गठबंधन में मुख्यमंत्री पद उसके पास आ जाता है तो वह एक बार फिर बड़े भाई की भूमिका में आ जाएगी। अब मामला काफी आगे बढ़ चुका है शिवसेना सरकार बनाने के बाद अपने अस्तित्व को बचाने की कोशिश कर रही है।
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आखिर क्या हैं एनसीपी और कांग्रेस के सामने मजबूरी
महाराष्ट्र में अगर शिवसेना का कांग्रेस और एनसीपी समर्थन नहीं करती है, तो फिर उसके विधायक भविष्य में बीजेपी के साथ में जा सकते हैं। राज्य में सरकार बनाने का जितना संकट इस समय शिवसेना के सामने हैं, तो उससे कम संकट एनसीपी और कांग्रेस के सामने भी नहीं है। अगर राज्य में विधानसभा निलंबित होती है, तो राज्य में राष्ट्रपति शासन लग जाएगा और बाद में गेंद बीजेपी के ही पाले में रहने वाली है। तीनों ही पार्टियों के पास में बाद में सरकार बनाने के लिए मौका नहीं रहने वाला था। बीजेपी बाद में फिर सरकार बनाने के लिए विधायकों की खरीद-फरोख शुरू करेगी। राज्य में इस स्थिति को देखते हुए कांग्रेस ने एक हफ्ते पहले ही अपने विधायकों को भेज दिया था, यही नहीं शिवसेना ने अपने विधायकों को होटल में रखा है। ऐसे में साफ है कि बीजेपी और शिवसेना की सरकार न बनने के बाद विधायकों को बचाने के लिए एनसीपी और कांग्रेस के पास एक ही चारा था कि वह लोग राजनीतिक दल में शामिल हो जाएं।
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