देश को यूपी से मिलेगा पहला राष्ट्रपति, पढ़िए रामनाथ कोविंद का अब तक सफर

देश की राजनीति की दशा और दिशा तय करने में हमेशा उत्तर प्रदेश की भूमिका अहम रही है। इसीलिए ये कहावत काफी मशहूर है कि दिल्ली का रास्ता लखनऊ से होकर जाता है। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश ने देश को अब तक नौ प्रधानमंत्री दिए हैं।
उप्र से नरेंद्र मोदी (वाराणसी), जवाहरलाल नेहरू, लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, चौधरी चरण सिंह, राजीव गांधी, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर और अटल बिहारी वाजपेयी (लखनऊ) प्रधानमंत्री बने हैं। यह संभवत: पहला मौका होगा, जब इस राज्य से रामनाथ कोविंद के रूप में देश को पहला राष्ट्रपति मिलेगा। हालांकि लखनऊ में जन्मे मोहम्मद हिदायतुल्लाह 20 जुलाई 1969 से 24 अगस्त 1969 तक कार्यवाहक राष्ट्रपति रहे हैं।
कोविंद का जीवन परिचय
रामनाथ कोविंद घर के बाहर चबूतरे पर बैठकर पढ़ा करते थे। बचपन के दोस्त वीरेंद्र सिंह बताते हैं, दोस्तों में रामनाथ पढ़ाई में सबसे तेज थे। जब हम खेलते थे, तो वह घर के बाहर बने चबूतरे पर बैठ पढ़ते थे। उस समय गांव में स्कूल न के बराबर थे। इस कारण गांव के ज्यादातर बच्चे 5वीं के बाद पिता के काम-धंधों में हाथ बंटाने लगते थे। रामनाथ 5 भाइयों में सबसे छोटे हैं। पिता मैकूलाल गांव में ही एक प्राचीन मंदिर के पुजारी थे। वह खेती-किसानी भी करते थे। लेकिन पूजा-पाठ और किसानी से कम ही जीविका चलती थी। कोविंद घर से 8 किमी दूर स्कूल पढ़ने जाते थे। 8वीं तक पढ़ाई ऐसे ही पूरी की। इसके बाद कानपुर के बीएनएसडी शिक्षा निकेतन से 12वीं की। डीएवी लॉ कॉलेज से ग्रेजुएशन किया।
सिविल सेवा की नौकरी छोड़ बने वकील
कोविंद देश की सर्वोच्च सिविल सेवा में जाना चाहते थे, इसके लिए उन्होंने सिविल सर्विसेज की परीक्षा दी। पहले और दूसरे प्रयास में असफल रहे। तीसरी बार में पास हुए। लेकिन नौकरी ठुकरा दी, क्योंकि उन्हें एलाइड सेवा में नौकरी मिल गई थी। कानपुर से ग्रैजुएशन करने के बाद रामनाथ कोविंद ने दिल्ली हाई कोर्ट में वकालत की प्रैक्टिस शुरू की। सुप्रीम कोर्ट के जूनियर काउंसलर के पद पर रहे। इसके बाद घाटमपुर लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में रखा कदम। 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के निजी सचिव बने। इसके बाद भाजपा के संपर्क में आए।
दो बार हारे चुनाव
पार्टी ने साल 1990 में घाटमपुर लोकसभा सीट से उतारा, लेकिन हार गए। इसके बाद साल 2007 में भोगनीपुर सीट से चुनाव लड़ाया गया। इस बार भी उनकी किस्मत ने धोखा दिया। 1994 से 2000 तक उप्र से राज्यसभा सदस्य रहे। पेशे से एडवोकेट कोविंद 1994 से 2006 के बीच दो बार राज्यसभा के लिए चुने जा चुके हैं। कोविंद 1998 से 2002 के बीच भाजपा दलित मोर्चा के अध्यक्ष और अखिल भारतीय कोली समाज के अध्यक्ष भी रहे। परौख गांव में कोविंद अपना पैतृक मकान बारातशाला के रूप में दान कर चुके हैं। बड़े भाई प्यारेलाल व स्वर्गीय शिवबालक राम हैं।
राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए जरूरी मत
किसी भी दल को राष्ट्रपति बनाने के लिए 50 फीसदी वोटशेयर यानी 5,49,442 वोट की जरूरत होती है। एनडीए के पास 5,32,019 वोट मूल्य हैं। राष्ट्रपति बनाने के लिए 17,423 वोट और चाहिए। एनडीए के समर्थन का एलान कर चुकी वाईएसआर कांग्रेस के पास 17,666 वोट हैं। टीआरएस के पास 22,480 वोट हैं। टीआरएस और वाईएसआर कांग्रेस के वोट जोड़ दें तो एनडीए उम्मीदवार के पास वोट का आंकड़ा 5,72,165 के पार हो जाएगा, जो जीत के लिए काफी है।
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