परिसीमन और राजनीति: उत्तर भारत को फायदा, दक्षिण भारत को नुकसान?

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने परिसीमन को लेकर केंद्र सरकार की मंशा पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा,

भाजपा दक्षिणी राज्यों को चुप कराने के लिए परिसीमन को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है।

गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में बयान दिया था कि परिसीमन के कारण दक्षिणी राज्यों की लोकसभा सीटें कम नहीं होंगी। लेकिन सिद्धारमैया और अन्य दक्षिणी राज्यों के नेता इसे लेकर आश्वस्त नहीं हैं।

परिसीमन क्या है?

परिसीमन का अर्थ है लोकसभा या विधानसभा सीटों की सीमा तय करना। परिसीमन के लिए आयोग बनाया जाता है, जो यह तय करता है कि जनसंख्या के अनुसार किन क्षेत्रों में सीटों की संख्या बढ़ेगी या घटेगी।

अब तक भारत में 1952, 1963, 1973 और 2002 में परिसीमन आयोग का गठन हो चुका है। परिसीमन को 1977 में फ्रीज किया गया था, लेकिन 2026 से इसे डिफ्रीज करने की योजना बनाई जा रही है।

दक्षिणी राज्यों की आपत्ति क्यों?

दक्षिणी राज्य जनसंख्या के आधार पर परिसीमन के खिलाफ हैं, क्योंकि इससे उनकी लोकसभा सीटें कम हो सकती हैं। दक्षिण भारत के राज्य परिवार नियोजन और जनसंख्या नियंत्रण में अग्रणी रहे हैं। ऐसे में यदि लोकसभा सीटों का निर्धारण जनसंख्या के आधार पर हुआ, तो इन राज्यों की सीटें घट सकती हैं।

परिसीमन से सीटों में संभावित बदलाव

राज्यमौजूदा लोकसभा सीटेंसंभावित सीटें (परिसीमन के बाद)
कर्नाटक2826
आंध्र प्रदेश4234
केरल2012
तमिलनाडु3931
उत्तर प्रदेश8091
बिहार4050
मध्य प्रदेश2933

उत्तर भारत को फायदा, दक्षिण को नुकसान?

अगर जनसंख्या के आधार पर सीटों का पुनर्गठन होता है, तो उत्तर भारत के राज्यों को अधिक लोकसभा सीटें मिलेंगी, जबकि दक्षिण भारत को नुकसान होगा। यह राजनीतिक संतुलन में बड़ा बदलाव ला सकता है, क्योंकि दक्षिण भारत के राज्यों की राजनीतिक आवाज़ कमजोर हो जाएगी।

सरकार की संभावित रणनीति: समानुपातिक प्रतिनिधित्व

केंद्र सरकार समानुपातिक प्रतिनिधित्व” के मॉडल पर विचार कर रही है। इस मॉडल के तहत, अगर उत्तर प्रदेश में 14 सीटें बढ़ती हैं, तो तमिलनाडु-पुडुचेरी में भी 7 सीटें बढ़ाई जा सकती हैं। इस तरह, केवल जनसंख्या ही नहीं, बल्कि अन्य मानकों को भी ध्यान में रखा जाएगा।

महिला आरक्षण और परिसीमन

महिला आरक्षण बिल पास होने के बाद लोकसभा और विधानसभा में 33% सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। इससे परिसीमन की आवश्यकता और बढ़ जाएगी, क्योंकि महिला आरक्षण लागू करने के लिए सीटों का पुनर्गठन जरूरी होगा।

अल्पसंख्यक बहुल सीटों का क्या होगा?

देश में 85 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां अल्पसंख्यक आबादी 20% से 97% के बीच है। परिसीमन के दौरान इन सीटों को भी नए सिरे से ड्रा किया जा सकता है, ताकि जनसांख्यिकी संतुलन बना रहे।

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