... तो 85 फीसदी जनता खड़ी है पीएम मोदी के नोटबंदी फैसले के साथ

काले धन के खिलाफ नरेंद्र मोदी सरकार ने बड़े नोटों की बंदी का फैसला क्या लिया कि कोहराम मच गया। सड़कों पर आम लोगों की लंबी लाइनें लग गईं। तो नेता सड़क पर मार्च करने लगे। राजनीतिक दलों ने इसे आर्थिक आपातकाल करार दे दिया। छोटे शहरों, कस्बों और गांवों में हालात सामान्य होने में थोड़ा और वक्त लगेगा लेकिन शहरों में स्थिति अब थोड़ा नियंत्रण में आ गई है। बावजूद इसके विपक्ष आक्रामक है और फैसला वापस लेने तक के कुतर्क कर रहा है। पर जनता उनका साथ नहीं दे रही है।
देश की 85 फीसद सामान्य जनता नरेंद्र दामोदर दास मोदी सरकार के फैसले से खुश है। जबकि संसद से सड़क तक विरोध कर रहे कांग्रेस नेता राहुल गांधी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और बसपा सुप्रीमो मायावती को आगाह भी किया है। जनता इन नेताओं के विरोध को खारिज करती है।
825 लोगों से संपर्क साधा गया
'दैनिक जागरण' ने सर्वे एजेंसी मार्केटिंग एंड डेवलपमेंट रिसर्च एसोसिएट (एमडीआरए) के साथ मिलकर लोगों की नब्ज परखी। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बेंगलुरु, लखनऊ, विजयवाड़ा जैसे शहरों व आसपास के गांवों में अलग-अलग वर्ग में 825 लोगों से संपर्क साधा गया। इसमें 18-25 आयु वर्ग के लोगों की मौजूदगी सबसे ज्यादा थी। पिछले दो दिनों में दिल्ली की राजनीति सिर्फ नोटबंदी के आसपास घूमती रही। संसद की कार्यवाही भी स्थगित रही। 'दैनिक जागरण' ने राजनीतिक रूप से गर्म रहे 17-18 नवंबर को ही सर्वे के लिए चुना। खुद जनता से सवाल किया और जो उत्तर आए वह विपक्षी दलों को परेशान कर सकते हैं।

जनता ने खुलकर मोदी के पक्ष में वोट दिया
एमडीआरए के प्रशिक्षित लोगों ने मेट्रो, नॉन मेट्रो और ग्रामीण इलाकों की नब्ज टटोली। सीधे सवाल पूछे और लगभग 85 फीसद ने केंद्र की मोदी सरकार को पूरे नंबर दिए। सात सवाल पूछे गए जिसमें काले धन पर लगाम, गरीबी उन्मूलन, सभी परेशानियों के बावजूद इस फैसले के पक्ष में होने या न होने, महंगाई घटने जैसे प्रश्न तो थे ही। यह भी जानने की कोशिश हुई कि इसका राजनीतिक नफा-नुकसान क्या होगा? जनता ने खुलकर मोदी के पक्ष में वोट दिया। बड़ी बात यह दिखी कि फैसले को लेकर जनता में असमंजस नहीं है। वह या तो हर मुद्दे पर सरकार के साथ खड़ी है या फिर विरोध में है। अशिक्षित और किसानों को छोड़ दें तो अधिकतर सवाल पर ऐसे लोगों का प्रतिशत 0.4 से 6-7 फीसद तक रहा जो उत्तर देने में असमर्थ थे।
उससे भी ज्यादा रोचक तथ्य यह निकला कि इस मुद्दे पर चर्चा के साथ समर्थकों की संख्या बढ़ रही है। मसलन, सर्वे में पहला सवाल पूछा गया कि क्या सरकार ने बड़े नोट बंद करने का सही कदम उठाया है? पक्ष में 84.8 फीसद लोगों ने वोट दिया। महंगाई, कालाधन, नकली नोट आदि के बाबत पूछे गए सवाल के बाद जब उन्हीं लोगों से पूछा गया कि क्या इस कदम से होने वाली परेशानी के बावजूद वह नोटबंदी के फैसले के साथ है? तो विपक्षी खेमे में खड़े 37 लोगों ने पाला बदल लिया था। अब इनकी संख्या 84.8 से बढ़कर 86.1 फीसद हो गई थी। यानी कि समर्थकों में लगभग डेढ़ फीसद की बढ़ोतरी। यह पूरी बढ़ोतरी उस खेमे से हुई जो पहले सवाल में नकारात्मक वोट डाल चुके थे।
(दैनिक जागरण से साभार)
सोसाइटी से
अन्य खबरें
Loading next News...
