Home /
politics /
chandrashekhar azad ravan next option after Mayawati for Dalit voters in Uttar Pradesh politics
'दलितों की देवी' के बाद क्या रावण 'दलितों के नए देवता' है?
Posted By: Ashutosh Ojha
Last updated on : March 16, 2020

उत्तर प्रदेश में राजनीति जिन पिचों पर खेली जाती रही है आज कल उन पिचों पर नये खिलाड़ी टेस्ट मैच खेलने की जुगत में है। ताजा मामला दलितों की पिच पर नए कप्तान के खेलने का है, और अब नए कप्तान का नाम है चंद्र शेखर आजाद उर्फ़ 'रावण'।
भीम आर्मी संगठन को राजनीतिक पार्टी का रूप देने के लिए चंद्र शेखर आज़ाद ने 15 मार्च की तारिख सोच समझकर तय की। आपको बता दें कि 15 मार्च को कांशीराम की जंयती पूरे भारत में मनाई जाती है। कांशीराम बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक थे। गौरतलब है कि कांशीराम 90 के दशक में देश में दलितों के प्रमुख नेता और चेहरा बनकर उभरे थे।
चंद्र शेखर ने अपनी पार्टी का नाम 'आज़ाद समाज पार्टी' रखकर दलितों की राजनीति करने वाली बसपा प्रमुख मायावती की नींद उड़ा दी है। राजनीतिज्ञ विशेषज्ञों की बात करें तो अब उत्तर प्रदेश की राजनीति में और मजा आने वाला है। जहाँ एक तरफ बीजेपी के साथ सपा और बसपा सभी इस ख़ास वर्ग को लुभाने के लिए तरह तरह के राजनीतिक प्रलोभन दिया ही करती है उसमें रावण का ऐसे निकल कर आना एक बहुत ट्विस्ट पैदा करता है।
उत्तर प्रदेश में यदि मायावती की बात करें तो दलितों का वोट उन्हें एकतरफा मिलता रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में दलितों ने बसपा को जितने प्रतिशत वोट दिए उससे बसपा की सरकार तो नहीं बन पाई लेकिन बसपा को ये विश्वास बनाये रखा कि दलित अभी भी उनके ही साथ खड़ा है। लोकसभा की 80 में से 73 सीटें भले ही बीजेपी ने पाई हो लेकिन बसपा ने अपना वोट जरूर पाया।
उत्तर प्रदेश में 20 फीसदी दलित, 19 फीसदी मुसलमान और 27.5 फीसदी पिछड़ी जातियां है, जिनपर हर चुनाव में सभी राजनैतिक दल टकटकी लगाये देखते रहते है। रावण की पार्टी बनने के बाद रावण के युवा जोश और नई सोच के साथ भारी भरकम युवा वोटरों का जाना निश्चित माना जा रहा है। उसका मुख्य कारण मायावती का हिटलर शाही अंदाज भी है। कोऑर्डिनेटर्स के बल पर राजनीति करने वाली मायावती के लिए रावण उस मुश्किल की तरह है जिसमें आप अपने बगल की लकीर को मिटा नहीं सकते और न ही उस लकीर से आगे की लकीर खींच सकते है।
चंद्रशेखर का अंदाज, रैली करने की दक्षता, जनता को सीधे सीधे खुद से जोड़ने जैसी कला चंद्रशेखर को मायावती से काफी अलग करती है। पार्टी बनाने के बाद अब रावण की भी पहुँच उन वोटरों तक ज्यादा होगी जहाँ मायावती का वोट बैंक है। वोटरों के साथ भी अब असमंजस की स्थिति बनी हुयी है।
उत्तर प्रदेश के दलित वोटरों के सामने जो सबसे बड़ा असमंजस है वो ये है कि एक तरफ मायावती की गिरती राजनीतिक चहलकदमी है लेकिन वो बसपा की सुप्रीमों है, दूसरी तरफ युवा जोश के साथ नई उम्मीदों वाला चंद्रशेखर है लेकिन वो अनुभवहीन नेता है। अब आखिर दलित वोटर किसके साथ जाए ये अब बड़ा सवाल है। चन्द्रशेखर के साथ पार्टी में आये अनुभवी नेताओं के साथ ये नई नवेली पार्टी कितने चुनाव जीत पाएगी ये तो आने वाला समय बताएगा। राजनितिक पंडितों की मानें तो, बीते दिनों की रावण की जेल यात्राएं साथ ही रावण का पब्लिक एप्रोच इस बात को दिखाता है कि रावण दलितों का नया देवता बनने की दक्षता रखता है।
सोसाइटी से
अन्य खबरें
Loading next News...
