कभी पंक्चर बनाते थे ये सांसद, इस बार बनेंगे प्रोटेम स्पीकर
17वीं लोकसभा में प्रोटेम स्पीकर को लेकर लगाए जा रहे कयासों पर विराम लग गया है। मेनका गांधी के साथ ही प्रोटेम स्पीकर बनने की रेस में चल रहे भाजपा सांसद डॉक्टर वीरेंद्र कुमार यह पद दिया गया है। प्रोटेम स्पीकर के तौर पर वह नवनिर्वाचित सांसदों को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाएंगे। वह सात बार सांसद बन चुके हैं। वीरेंद्र कुमार चार बार टीकमगढ़ लोकसभा सीट और तीन बार सागर सीट से सांसद चुने गए हैं। डॉक्टर वीरेंद्र कुमार इस बार फिर से टीकमगढ़ लोकसभा सीट से सांसद चुने गए हैं।
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कौन हैं डॉक्टर वीरेंद्र कुमार
वीरेंद्र कुमार का जन्म मध्य प्रदेश के सागर शहर में 27 फरवरी 1954 को हुआ था। डॉक्टर वीरेंद्र कुमार पहली बार 1996 में सागर संसदीय सीट से वह सांसद चुने गए थे। उन्होंने अर्थशास्त्र विषय से एमए और बाल श्रम संबंधी विषय पर पीएचडी की है। आरएसएस से उनका बचपन से लगाव रहा है। वह राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय कार्यकर्ता और पदाधिकारी भी रहे हैं। वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, विश्व हिंदू परिषद सहित भाजपा में विभिन्न पदों पर रह चुके हैं। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था। इस बार उन्हें नहीं शामिल किया गया था, जिसकी वजह से यह कयास लगाए जा रहे थे कि भाजपा मेनका गांधी या फिर वीरेंद्र कुमार में से किसी एक को प्रोटेम स्पीकर बना सकती है।
पिता के साथ बनाते थे पंक्चर
सांसद डॉक्टर वीरेंद्र कुमार का बचपन बहुत ही संघर्ष में बीता है। वह बचपन में परिवार का भरण-पोषण करने के लिए अपने पिता के साथ साइकिल की दुकान पर पंक्चर बनाया करते थे। हालांकि इस दौरान उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। वीरेंद्र कुमार के बारे में कहा जाता है कि अपने संसदीय क्षेत्र के दौरे के दौरान जब उन्हें कोई पंक्चर सुधारता हुआ मिलता है तो वह उसके पास पहुंच जाते हैं। कई बार वह उनकी मदद कर देते हैं तो कभी पंक्चर सुधारने के टिप्स भी दे देते हैं।
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क्या होता है प्रोटेम स्पीकर
प्रोटेम स्पीकर संसद में उन्हें कहा जाता है, जो चुनाव के बाद पहले सत्र में स्थायी अध्यक्ष अथवा उपाध्यक्ष का चुनाव होने तक संसद या विधानसभा का संचालन करते हैं। यह कामचलाऊ और अस्थायी अध्यक्ष ही प्रोटेम स्पीकर होते हैं। लोकसभा अथवा विधानसभाओं में इनका चुनाव बेहद कम समय के लिए होता है। प्रोटेक स्पीकर की जिम्मेदारी सदन के वरिष्ठतम सदस्य को दे दी जाती है। प्रोटेम स्पीकर तब तक अपने पद पर बने रहते हैं, जब तक सदस्य स्थायी अध्यक्ष का चुनाव न कर लें। यही नहीं प्रोटेम स्पीकर की जरुरत लोकसभा और विधानसभा में तब पड़ती है जब सदन में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, दोनों का पद खाली हो जाता है। यह स्थिति तब पैदा हो सकती है, जब अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, दोनों की मृत्यु हो जाए अथवा वे अपने-अपने पदों से इस्तीफा दे दें। प्रोटेम स्पीकर की कोई भी पावर नहीं होती है जो कि स्थायी अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के पास होती है।
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