अनुच्छेद 370 के बारे में वह सबकुछ जो आपके लिए जानना जरूरी है

अभी तक जो अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देता था, सोमवार को केंद्र सरकार ने हटा दिया। सोमवार को गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में अनुच्छेद 370 को हटाने का संकल्प पेश किया। इसके बाद इसको राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई और इसकी अधिसूचना भी जारी हो गई। अब इस बात का रास्ता साफ हो गया है कि जम्मू-कश्मीर में भी भारत का ही संविधान लागू होगा।
अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद से कई सवाल लोगों के दिमाग में उठ रहे हैं। मसलन, सिर्फ राष्ट्रपति के अधिसूचना जारी करने से ऐसा कैसे हो सकता है? इसके बाद देश और कश्मीर की सत्ता पर क्या फर्क पड़ेगा? यह अनुच्छेद कब लागू हुआ था, इसमें क्या है और इस अनुच्छेद के खत्म होने का प्रभाव कब से लागू हो जाएगा। हम इन सारे सवालों के जवाब लेकर आए हैं।
1. अनुच्छेद 370 क्लॉज 3 के मुताबिक, राष्ट्रपति को जम्मू-कश्मीर के लिए फैसले लेने और आदेश जारी करने का अधिकार है। जो प्रावधान राष्ट्रपति को यह अधिकार देता है, उसे छोड़कर बाकी खंडों को निष्प्रभावी किया गया है। हालांकि, राष्ट्रपति यह अधिसूचना जारी करे इसके लिए उनके पास राज्य की विधानसभा की सिफारिश होना जरूरी है, लेकिन कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू था, इसलिए राष्ट्रपति ने केंद्र की अनुशंसा के आदेश पर हस्ताक्षर कर दिए और यह अनुच्छेद 370 कश्मीर से खत्म कर दिया गया।
2. अब सवाल यह कि अनुच्छेद 370 लागू कब हुआ था? दरअसल, जब जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय हुआ था, उस वक्त तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की सरकार के वक्त संविधान में अनुच्छेद 370 जोड़ा गया था। इस अनुच्छेद ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा और कुछ खास अधिकार दिए थे। अनुच्छेद 370 के तहत ही अनुच्छेद 35-ए को जोड़ा गया था, जिससे राज्य के लोगों को कुछ विशेषाधिकार मिले हुए थे। अनुच्छेद 370 के प्रभावी रहने पर राज्य का पुनर्गठन नहीं किया जा सकता था।
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अब जानिए कि आखिर कश्मीर को अनुच्छेद 370 के तहत क्या-क्या विशेष अधिकार मिले थे -
3. अनुच्छेद 370 के कारण जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती थी।
4. इस अनुच्छेद की वजह से राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं था।
5. जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता (भारत और कश्मीर) होती है थी।
6. भारत की संसद जम्मू-कश्मीर के सम्बन्ध में अत्यन्त सीमित क्षेत्र में कानून बना सकती थी।
7. जम्मू-कश्मीर का राष्ट्रध्वज अलग था। वहां के नागरिकों द्वारा भारत के राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करना अनिवार्य नहीं था।
8. इसके तहत भारतीय नागरिक को विशेष अधिकार प्राप्त राज्यों के अलावा भारत में कहीं भी भूमि खरीदने का अधिकार था। यानि भारत के दूसरे राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते थे।
9. भारतीय संविधान की धारा 360 जिसके अन्तर्गत देश में वित्तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान है, वह भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होती थी।
10. जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्षों का होता था जबकि भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्ष का होता था।
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11. भारत के उच्चतम न्यायालय के आदेश जम्मू-कश्मीर के अन्दर मान्य नहीं होते थे।
12. जम्मू-कश्मीर की कोई महिला अगर भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से विवाह कर ले तो उस महिला की नागरिकता समाप्त हो जाती थी। इसके विपरीत अगर वह पकिस्तान के किसी व्यक्ति से विवाह कर ले तो उसे भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जाती थी। ऐसा इसलिए होता था क्योंकि जम्मू-कश्मीर और पाकिस्तान दोनों का संविधान दोहरी नागरिकता की इजाजत देता है, जबकि भारत का संविधान सिर्फ एक नागरिकता की इजाजत ही देता है।
13. अनुच्छेद 370 की वजह से कश्मीर में आरटीआई और सीएजी (CAG) जैसे कानून लागू नहीं होते थे।
14. कश्मीर में महिलाओं पर शरियत कानून लागू था।
15. कश्मीर में पंचायत को अधिकार प्राप्त नहीं था।
16. अनुच्छेद 370 की वजह से ही कश्मीर में रहने वाले पाकिस्तानियों को भी भारतीय नागरिकता मिल जाती थी।

17. अब सवाल यह है कि अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद जम्मू-कश्मीर की अभी तक की सत्ता पर क्या असर पड़ेगा? अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद, जम्मू-कश्मीर के जो तीनों, सत्ता परिवार हैं, अब्दुल्ला परिवार, मुफ्ती परिवार और तीसरा कांग्रेस परिवार, उनके हाथ में कुछ नहीं रह जाएगा।
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18. अनुव्छेद 370 खत्म होने के बाद देशभर के लोगों के कश्मीर में बसने और वहां बिजनेस करने का रास्ता खुल जाएगा। खासकर, होटल इंडस्ट्री में बड़ा बूम आएगा। इसके पहले होटल इंडस्ट्री पर कई तरह के प्रतिबंध थे। ऐसा माना जा रहा है कि बाकी देश के लोग जब यहां उद्योग-धंधे खोलेंगे तो आतंकवाद में कमी आएगी।

19. ये भी कहा जा रहा है कि अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद जम्मू-कश्मीर में कोई भी आतंकवादी गतिविधियों को आश्रय नहीं देगा इससे सेना की वहां उपस्थिति और उस पर खर्च धीरे-धीरे कम होता जाएगा। लद्दाख के अलग होने से वहां विकास तेजी से होगा। अभी तक घाटी के नेता इस ओर ध्यान नहीं देते थे।
20. अब यह जानिए कि अनुच्छेद 370 पूरी तरह से कब खत्म होगा और कश्मीर कब केंद्र शासित प्रदेश बनेगा। अनुच्छेद 370 का शिथिलीकरण तो राष्ट्रपति के नोटिफिकेशन के साथ ही तुरंत लागू हो गया है। अब संसद में सिर्फ पुनर्गठन विधेयक पारित होना है, जिसमें जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाना है। यह बिल्कुल वैसा ही होगा जैसे उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड बना था, मध्य प्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ बना था, बिहार से अलग होकर झारखंड बना था और आंध्र प्रदेश से अलग होकर तेलंगाना बना था। हालांकि, ये सभी राज्य हैं जबकि कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश होगा।
क्यों पड़ी थी अनुच्छेद 370 की जरूरत
भारतीय संविधान में जम्मू-कश्मीर के लिए विशेष अनुच्छेद 370 जोड़ने की क्यों जरूरत पड़ी ये जानने के लिए इसके इतिहास के बारे में जानना जरूरी है। इसकी कहानी 1822 से शुरू होती है, जब गुलाब सिंह को जम्मू का राजा बनाया गया था। 1809 में गुलाब सिंह महाराजा रंजीत सिंह की सेना में शामिल हुए थे और साल 1822 में उन्हें पुरस्कार के तौर पर जम्मू का राजा बनाया गया था। वह जम्मू के डोगरा राजा था। 1846 तक वह सिर्फ जम्मू के राजा था। इस साल उन्होंने अंग्रेज सरकार से अमृतसर संधि की और इस संधि के तहत 75 लाख रुपये में कश्मीर घाटी को अंग्रेज सरकार से खरीद लिया। राजा गुलाब सिंह ने अंग्रेजों के साथ जो अमृतसर संधि की थी, उसके मुताबिक, अंग्रेज सरकार ने हमेशा के लिए कश्मीर को महाराजा गुलाब सिंह और उनके पुरुष उत्तराधिकारी को स्वतंत्र कब्जे में दे दिया। इसी के साथ जम्मू-कश्मीर में डोगरा वंश की शुरुआत हुई।
हरि सिंह बने जम्मू-कश्मीर के राजा
इसके बाद 1925 में हरि सिंह को जम्मू-कश्मीर का राजा बनाया गया, लेकिन उनके सामने कई चुनौतियां थीं। जम्मू-कश्मीर मुस्लिम बाहुल्य राज्य था, जबकि राजा हरिसिंह हिंदू थे। उस वक्त मुसलमानों को लगता था कि महाराजा की ज्यादातर नीतियां कश्मीरी मुसलमानों के खिलाफ हैं। इतिहासकार एलेस्टेर लैंब ने अपनी किताब 'कश्मीर-ए डिस्प्यूटेड लेगसी' में लिखा है कि उस वक्त राज्य में मुस्लिम बहुसंख्यक आबादी से लोग भेदभाव करते थे। ज्यादातर कानून हिंदुओं के पक्ष में बनते थे। प्रशासनिक स्तर पर भी हर जगह कश्मीरी पंडितों की मनमानी होती थी। घाटी में किसी मुसलमान को हथियार रखने का अधिकार नहीं था, सिर्फ हिंदुओं को ही लाइसेंस मिलते थे। सशस्त्र सेनाओं में डोगरा राजपूतों के लिए सभी बड़े पद आरक्षित थे और मुसलमानों को इनसे दूर रखा जाता था।

शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने छेड़ा विद्रोह
साल 1946 में जम्मू-कश्मीर में डोगरा राजाओं के हाथ में सत्ता गए 100 साल हो चुके थे। यही वह समय था जब शेख मोहम्मद अबदुल्ला ने मुस्लिम कांफ्रेंस पार्टी की शुरुआत की और महाराजा हरिसिंह के खिलाफ कश्मीर छोड़ो आंदोलन शुरू कर दिया। इसी बीच 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हो गया और पाकिस्तान इससे अलग हो गया। ब्रिटिश इतिहासकार विक्टोरिया शोफील्ड ने एक किताब लिखी है 'कश्मीर इन कॉनफ्लिक्ट'। इस किताब के मुताबिक, उस वक्त भारत में 565 रियासतें थीं, वो भारत के 40 प्रतिशत इलाके में फैली हुई थीं। इन रियासतों में लगभग 10 करोड़ लोग रहते थे। उस वक्त शाही राज्यों को तीन विकल्प दिए गए- या तो वो आज़ाद रहें, या वो भारत में शामिल हों या फिर पाकिस्तान में। तीन राज्यों को छोड़कर बाकी सभी राज्यों ने अपना फैसला सुना दिया और वह तीन राज्य थे - जूनागढ़, हैदराबाद और जम्मू-कश्मीर।
महाराजा हरिसिंह न ही भारत के साथ जाना चाहते थे और न ही पाकिस्तान के साथ। वह जम्मू-कश्मीर को आजाद रखना चाहते थे। ऐसे माहौल में महाराजा हरि सिंह ने पाकिस्तान के साथ एक 'स्टैंडस्टिल समझौते' पर हस्ताक्षर किए 'ताकि व्यापार, यात्रा, आवागमन आदि बिना रुकावट जारी रहें, लेकिन भारत ने इस समझौते में उनका साथ नहीं दिया और हस्ताक्षर नहीं किए।

1947 के बाद बदली कश्मीर की स्थिति
1947 के अक्टूबर महीने में परिस्थतियां बदल गईं। पाकिस्तान के हथियारबंद पश्तून कबायलियों ने कश्मीर पर हमला बोल दिया। पाकिस्तान को लगता था कि कश्मीर में मुस्लिम आबादी ज्यादा है, ऐसे में वह महाराजा हरिसिंह के विरोध में खड़ी हो जाएगी और कश्मीर पाकिस्तान को मिल जाएगा। महाराजा हरि सिंह के लिए ये चुनौती भरा समय था। एक तरफ बिगड़ती क़ानून व्यवस्था और दूसरी तरफकबायली घुसपैठियों की ओर से हमला। ऐसे में उन्होंने भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन से संपर्क किया और भारत से मदद मांगी। महाराजा हरिसिंह को उस वक्त भारत का हिस्सा बनना पड़ा। मदद का आधार बनाने के लिए 'इंस्ट्रूमेंट ऑफ ऐक्सेशन' दस्तावेज यानि भारत में आने से जुड़े दस्तावेज पर हस्ताक्षर हुए जिसे गवर्नर जनरल ने स्वीकार कर लिया। इस दस्तावेज के आधार पर रक्षा, विदेश विभाग और संचार व्यवस्था पर कानूनी अधिकार भारत को हस्तांतरित हुआ जबकि बाकी के विभाग जम्मू और कश्मीर राज्य के पास रहे, जहां जम्मू और कश्मीर संवैधानिक कानून लागू था।
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अनुच्छेद 370 था इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन की शर्तों की पहचान
इस दस्तावेज के क्लॉज 5 में लिखा था कि इस इंस्ट्रुमेंट ऑफ ऐक्सेशन के दस्तावेज में दी गई शर्तों पर 1935 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया कानून में या इंडियन इंडिपेंडेंस कानून, 1947, में किसी बदलाव का कोई असर उस वक्त तक नहीं पड़ेगा जब तक खुद हरि सिंह उस बदलाव को स्वीकार करें। इसके क्लॉज 7 में लिखा गया कि 'इंस्ट्रुमेंट ऑफ एक्सेशन' दस्तावेज़ में दर्ज "कोई भी बात किसी भी प्रकार से भारत के किसी भावी संविधान की स्वीकृति को लेकर मेरी प्रतिबद्धता नहीं दर्शाती, न ही भविष्य में ऐसे किसी संविधान के तहत भारत सरकार के साथ समझौता करने के मेरे अधिकार पर रोक लगाती है। अनुच्छेद 370 इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन में दी गई इन्हीं शर्तों की संवैधानिक पहचान थी। अनुच्छेद 370 में एक शर्त ये थी कि राज्य में किसी भी बदलाव के लिए संविधान सभा की सहमति जरूरी थी।

कश्मीर में हुआ जनमत संग्रह
जनवरी 1948 में भारत, कश्मीर मामले को संयुक्त राष्ट्र ले गया जहां जनमत संग्रह की बात उठी और इस मामले को संयुक्त राष्ट्र ले जाया गया। संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता के कारण जम्मू और कश्मीर पर दोनो पक्षों का जिन इलाक पर कंट्रोल था, वो कंट्रोल जारी रहा। जुलाई 1949 में महाराजा हरि सिंह ने अपने बेटे कर्ण सिंह को गद्दी दे दी तो दूसरी ओर शेख अब्दुला और उनके साथी भारतीय संविधान सभा में उस वक्त शामिल हुए जब भारतीय संविधान को तैयार करने का काम जारी था।
किसने बनाया था अनुच्छेद 370
आर्टिकल 370 को जब बनाया जा रहा था, उस वक्त भारतीय संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी के हेड और पहले कानून मंत्री बाबा साहब भीमराव आंबेडकर इसके खिलाफ थे। उन्होंने अनुच्छेद 370 का मसौदा तैयार करने से भी मना कर दिया था। बाबा साहब के मना करने के बाद शेख अब्दुल्ला के पास कोई रास्ता नहीं बचा और वह जवाहरलाल नेहरू के पास इस समस्या को लेकर गए। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री के कहने पर गोपलस्वामी अयंगर ने अनुच्छेद 370 का मसौदा तैयार किया। गोपाल स्वामी आयंगर भारतीय संविधान सभा के सदस्य थे। भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद उन्हें रेलवे और यातायात मंत्री बनाया गया था। भारत की रेलवे प्रणाली को बेहतर करने में उनका बड़ा योगदान था। 1950 में जब सरदार पटेल की मृत्यु हो गई तब उनकी जगह गोपाल स्वामी अयंगर को नियुक्त किया गया और उन्होंने पटेल के अधूरे कामों को पूरा किया। कुछ समय तक वह देश के रक्षा मंत्री भी रहे।
नेहरू को भी अनुच्छेद 370 खत्म होने की थी उम्मीद
भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के कहने पर ही अनुच्छेद 370 का मसौदा तैयार किया गया था और इसे भारतीय संविधान में जोड़ा गया था, लेकिन उस वक्त उन्हें भी पूरी उम्मीद थी कि यह अनुच्छेद जल्द ही संविधान से हट जाएगा। इस बारे में उन्होंने एक खत भी लिखा था। 21 अगस्त 1962 को उन्होंने जम्मू-कश्मीर के नेता पंडति प्रेमनाथ बजाज को ये खत लिखा था, जिसमें नेहरू ने लिखा -
‘‘वास्तविकता तो यह है कि संविधान का यह अनुच्छेद, जो जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा दिलाने के लिये कारणीभूत बताया जाता है, उसके होते हुए भी कई अन्य बातें की गई हैं और जो कुछ और किया जाना है, वह भी किया जाएगा। मुख्य सवाल तो भावना का है, उसमें दूसरी और कोई बात नहीं है। कभी-कभी भावना ही बड़ी महत्त्वपूर्ण सिद्ध होती है।’’

अनुच्छेद 370 में क्या-क्या संशोधन हुए
17 अक्टूबर 1949 को राष्ट्रपति के आदेश पर अनुच्छेद 370 को संविधान में जोड़ा गया था। तब से लेकर अभी तक इसमें कई बदलाव हुए।
1952 में जम्मू-कश्मीर में संविधान सभा की बैठक हुई और भारत के साथ जम्मू-कश्मीर के रिश्तों पर 'दिल्ली समझौते' पर सहमति बनी। इस 'दिल्ली समझौते' में कहा गया कि केंद्र सरकार राज्य के अलग झंडे पर सहमत है और ये झंडा भारतीय झंडे का प्रतिद्वंदी नहीं होगा। इसके अलावा इस 'दिल्ली समझौते' में सदर-ए-रियासत के ओहदे और राज्य में सुप्रीम कोर्ट के पास अपील संबंधी अधिकार का भी जिक्रहै।
1954 में अनुच्छेद 370 में हुए बदलाव के तहत चुंगी, केंद्रीय आबकारी, नागरिक उड्डयन और डाकतार विभागों के कानून और नियम जम्मू-कश्मीर पर लागू हुए।
1958 में इस अनुच्छेद में एक और संशोधन हुआ और उसके मुताबिक, केंद्रीय सेवा के आईएएस और आईपीएस अधिकारियों की नियुक्तियां जम्मू-कश्मीर में होना शुरू हो गईं।
1959 से पहले भारतीय जनगणना का कानून कश्मीर में लागू नहीं होता था। अनुच्छेद 370 में बदलाव करके 1959 से यह कानून जम्मू-कश्मीर में भी लागू कर दिया गया।
1960 में सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट के फैसलों के खिलाफ अपीलों को स्वीकार करना शुरू किया।
1964 में संविधान के अनुच्छेद 356 और 357 भी जम्मू-कश्मीर में लागू किए गए। इन अनुच्छेदों के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में संवैधानिक व्यवस्था के गड़बड़ा जाने पर राष्ट्रपति का शासन लागू करने के अधिकार भारतीय राष्ट्रपति को मिले।
1965 में श्रमिक कल्याण, श्रमिक संगठन, सामाजिक सुरक्षा और सामाजिक बीमा सम्बन्धी केन्द्रीय कानून जम्मू-कश्मीर में लागू हुए।
1966 में लोकसभा में प्रत्यक्ष मतदान से निर्वाचित अपना प्रतिनिधि भेजने का अधिकार दिया गया। इसके साथ ही इसी साल जम्मू-कश्मीर की विधान सभा में भी कुछ सुधार हुए। वहां ‘प्रधानमंत्री’ की जगह पर ‘मुख्यमन्त्री’ और ‘सदर-ए-रियासत’ की जगह पर ‘राज्यपाल’ पदनामों का इस्तेमाल करने को अनुमति दी गई। इससे पहले तक 'सदर-ए-रियासत' का चुनाव विधानसभा के जरिए होता था, लेकिन पदनामों के बदलाव के साथ ही राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति के जरिए होने लगी।
1968 में उच्चतम न्यायाल को यह अधिकार भी मिल गया कि वह जम्मू-कश्मीर के उच्च न्यायालय की चुनाव संबंधी अपीलों को सुनकर उनपर फैसला दे सके।
1971 में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत विशिष्ट प्रकार के मामलों की सुनवाई करने का अधिकार उच्च न्यायालय को दिया गया।
1986 में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 149 के प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर लागू हुए। इस धारा में ही उसके सम्पूर्ण समाप्ति की व्यवस्था बताई गयी है। अनुच्छेद 370 का खंड 3 बताता है कि ‘पूर्ववर्ती प्रावधानों में कुछ भी लिखा हो, राष्ट्रपति प्रकट सूचना द्वारा यह घोषित कर सकते है कि यह अनुच्छेद कुछ अपवादों या संशोधनों को छोड दिया जाए तो खत्म किया जा सकता है।
अनुच्छेद 370 पर ज्यादातर देश भारत के साथ
जब से जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया है, पाकिस्तान पूरी कोशिश में है कि वह दुनिया के बड़े देशों से सहानुभूति ले सके और उन्हें अपने पक्ष में कर सके, लेकिन पाकिस्तान को यहां भी शिकस्त मिल रही है। यूएन, अमेरिका और चीन के बाद अब रूस भी इस मामले में भारत सरकार के साथ आ गया है। रूस ने कहा कि भारत ने जम्मू-कश्मीर को लेकर जो भी फैसला लिया, वह भारतीय संविधान के मुताबिक है।
रूस ने दिया भारत का साथ
रूस के विदेश मंत्रालय ने शनिवार को एक बयान में कहा कि भारत ने जम्मू-कश्मीर का दर्जा अपने संविधान के दायरे में रहते हुए बदला है और उसे दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटा है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि तथ्यों की गहन पड़ताल करने के बाद ही मॉस्को इस फैसले पर पहुंचा है। बयान में कहा गया कि हमें उम्मीद है कि दोनों द्विपक्षीय आधार पर राजनीतिक और राजनयिक प्रयासों से अपने मतभेद सुलझा लेंगे।

चीन ने भी नहीं दिया पाकिस्तान का साथ
अनुच्छेद 370 हटाने के मामले में चीन ने भी पाकिस्तान का साथ नहीं दिया। चीन के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने शुक्रवार को कहा कि चीन, भारत को पड़ोसी मित्र मानता है। उन्होंने कहा कि दोनों देश शिमला समझौते और संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के जरिए कश्मीर मुद्दे को सुलझाएंगे। पाकिस्तान को इस मामले में पड़ोसी मित्रों की जरूरत थी, लेकिन कोई भी पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के साथ खड़ा नहीं दिख रहा है।
अमेरिका ने भी पाक को दी नसीहत
कश्मीर मामले पर अमेरिका ने भी पाकिस्तान का साथ नहीं दिया और कहा कि वह इस मामले में अपने पुराने रुख पर कायम है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मॉर्गन ओर्टागस ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि अमेरिका की नीति यह रही है कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच एक द्विपक्षीय मुद्दा है और दोनों देशों को ही इस मुद्दे पर बातचीत की गति और गुंजाइश को लेकर फैसला करना है। अगर नीति में कोई बदलाव हुआ तो निश्चित तौर पर मैं यहां घोषणा करूंगी, लेकिन ऐसा नहीं है। उन्होंने कहा कि हमने सभी पक्षों से शांति एवं संयम बरतने का आह्वान किया है। हम मुख्यत: शांति एवं स्थिरता चाहते हैं और हम जाहिर तौर पर कश्मीर तथा अन्य संबंधित मुद्दों पर भारत और पाकिस्तान के बीच सीधे संवाद का समर्थन करते हैं।
यूएन ने दिया शिमला समझौते का हवाला
संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुतारेस ने भारत और पाकिस्तान के बीच 1972 में हुए शिमला समझौते का हवाला देते हुए, कश्मीर में तीसरे पक्ष की मध्यस्थता से इनकार किया गया है। जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा हटाने के भारत के फैसले के बाद पाकिस्तान ने गुतारेस से उचित भूमिका निभाने के लिए कहा जिसके बाद उनका यह बयान आया है। गुतारेस के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक ने एक नियमित संवाददाता सम्मेलन में कहा कि महासचिव जम्मू कश्मीर में स्थिति पर गंभीरता से नजर रख रहे हैं और उन्होंने इस पर अधिकतम संयम बरतने की अपील की है। शिमला समझौते में कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर की अंतिम स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के अनुसार शांतिपूर्ण तरीकों से निर्णय लिया जाएगा।
कश्मीर में सबकुछ ठीक है : अमित शाह
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने 20 नवंबर, बुधवार को राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर के हालात पर बयान दिया। गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि कश्मीर में स्थिति सामान्य हो चुकी है। 5 अगस्त के बाद घाटी में एक भी व्यक्ति की पुलिस फायरिंग से मौत नहीं हुई है। इसके अलावा 195 पुलिस स्टेशन में जो प्रतिबंध लगे थे वो हट गए हैं, पत्थरबाजी की घटनाएं भी कम हुई हैं। इसके अलावा सभी स्कूल खुल रहे हैं, परीक्षा सुचारू रूप से हो रही है। गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि इंटरनेट आज सूचना के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि पूरे देश में मोबाइल 1995-96 में आया लेकिन कश्मीर में मोबाइल बीजेपी सरकार 2003 में लेकर आई। अमित शाह ने कहा कि इंटरनेट जरूरी है लेकिन देश की सुरक्षा का सवाल है, आतंकवाद के खिलाफ की लड़ाई का सवाल तो हमें सोचना पड़ेगा और जब जरूरी लगेगा तो हम इसे जरूर बहाल करेंगे। इसी के बाद अमित शाह से जम्मू-कश्मीर के हालात पर सवाल पूछा गया, जिसमें स्कूल-मेडिकल सुविधा के बारे में विस्तार से जवाब मांगा गया। इसपर अमित शाह ने कहा कि घाटी में दवाइयों की उपलब्धता पर्याप्त है, दुकान-अस्पताल में भरपूर दवाई हैं। इस दौरान गृह मंत्री ने कश्मीर में स्वास्थ्य के मसले के आंकड़े भी जारी किए।
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