PM मोदी के इस फैसले से 'संकट' में फंसे कारोबारी, फिर भी समर्थन में खड़े

8 नंवबर 2016 को भारत में पुराने 500 और 1000 के नोट के बंद होने के बाद इसके परिणामों पर लोगों की अलग-अलग राय सामने आई। अब जब इस फैसले के दो महीने से ज्यादा बीत चुके हैं सही तस्वीर सामने आने लगी है।
वैसे तो पहली नजर में नोटबंदी का फैसला एक साहसिक मगर कष्टकारी था। कष्टदायक इसलिए, क्योंकि सबको अपने पैसे बदलवाने के लिए बैंकों की कतार में लगना पड़ा। इन सभी दिक्कतों के बीच भी लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी के इस फैसले को सराहा है। एक सर्वे के मुताबिक 58 फीसदी किराना दुकानदारों ने मोदी के प्रति समर्थन जाहिर किया।
छोटे कारोबार बंदी की कगार पर
एक आकंड़े के मुताबिक भारत में 1.2 करोड़ से 1.4 करोड़ तक छोटी-मोटी किराने की दुकाने हैं, लेकिन नोटबंदी के बाद से इनमें से अधिकांश मंदी की मार झेल रही हैं और बंदी के कगार पर पहुंच गई हैं। इन छोटी-मोटी दुकानों पर देश की बड़ी आबादी निर्भर है, जिसकी संख्या फ्रांस या थाईलैंड की आबादी के लगभग बराबर है।
नोटबंदी के बाद 54वें और 55वें दिन इंडियास्पेंड ने छोटे कारोबार पर नोटबंदी के प्रभाव को समझने के उद्देश्य से मुंबई के उपनगरीय और ग्रामीण इलाकों में 24 ऐसे किराना दुकानों का दौरा किया। पालघर, ठाणे और मुंबई महानगर क्षेत्र में आने वाले जिलों में हमने इस सर्वेक्षण में जो पाया वह इस प्रकार है...
1 - करीब 80 फीसदी दुकानदारों ने नोटबंदी के कारण 50-60 प्रतिशत या उससे भी अधिक नुकसान की बात कही।
2- नगरीय इलाकों में स्थित 38 फीसदी दुकानदारों ने डिजिटल भुगतान या मोबाइल वॉलेट सेवा अपना ली हैं, जबकि ग्रामीण इलाकों के दुकानदार अभी भी नकदी में ही भुगतान ले रहे हैं।
भारत का खुदरा बाजार 600 अरब डॉलर का
डेमोग्राफिया वर्ल्ड अर्बन एरियाज की 2016 की एक रपट के अनुसार, मुंबई की आबादी 1.83 करोड़ है, जो इसे दुनिया का छठा सबसे बड़ा नगर बनाता है। भारत की सवा अरब की आबादी में मुंबई में सिर्फ 1.5 फीसदी आबादी ही रहती है, लेकिन देश के कुल खुदरा उपभोग का 29 फीसदी खर्च करती है। खुदरा उपभोग के मामले में दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र 25 फीसदी और बेंगलुरू 15 फीसदी खर्च करता है। भारत का खुदरा बाजार 600 अरब डॉलर का है और 5.8 फीसदी की वार्षिक दर से वृद्धि कर रहा है। दुनिया के प्रमुख विकासशील देशों के खुदरा बाजार में यह सबसे तेज वृद्धि दर है। ए. टी. किर्नी की 2015 में आई रपट के अनुसार, वैश्विक खुदरा विकास सूची में भारत 15वें स्थान पर था।
सबसे बड़ी समस्या
दुकानदारों के सामने सबसे बड़ी समस्या ग्राहकों के 2,000 रुपये के नोट का छुट्टा देना है। इससे बचने के लिए दुकानदार अपने नियमित ग्राहकों को अधिक से अधिक उधारी दे रहे हैं, लेकिन इससे उनकी परेशानी खत्म नहीं हो रही। जहां तक नकदी रहित लेन-देन की बात है तो शहरी इलाकों के दुकानदार जहां इसे अपनाने को लेकर हिचकिचाहट में हैं, वहीं ग्रामीण इलाकों के दुकानदारों को इसकी ज्यादा जानकारी ही नहीं है।
नकदी-रहित लेन-देन अपनाने के सरकार के आह्वान पर आठ फीसदी दुकानदारों ने स्वीकार किया कि उन्होंने अपने नियमित ग्राहकों से चेक के जरिए भुगतान स्वीकार किए। 17 फीसदी दुकानदारों ने कहा कि वे पीओएस मशीन का इस्तेमाल करने लगे हैं, जबकि 21 फीसदी दुकानदारों ने कहा कि वे इसके लिए बैंक में आवेदन करेंगे।
मोबाइल वॉलेट का इस्तेमाल करने वाले 20 फीसदी दुकानदारों ने कहा कि ग्राहक मोबाइल वॉलेट के जरिए भुगतान से कतराते हैं। 60 फीसदी दुकानदारों का मानना है कि उनका कारोबार इतना छोटा है कि मोबाइल वॉलेट या पीओएस मशीन लगवाने का कोई मतलब नहीं है।
पारंपरिक तौर पर छोटे कारोबारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के मुख्य मतदाता हैं और नोटबंदी के बाद से उनका कारोबार संकट के दौर से गुजर रहा है। इसके बावजूद वे नोटबंदी के फैसले को सही मानते हैं और उन्हें विश्वास है कि भ्रष्टाचार करने वाले अमीर लोगों को दंडित करने के लिए उठाए गए इस कठिन कदम के लिए उन्हें थोड़ी कीमत तो चुकानी ही होगी।
सोसाइटी से
अन्य खबरें
Loading next News...
