72 सदस्यों के साथ 135 साल पहले हुई थी कांग्रेस की स्थापना

कांग्रेस का आज 135वां स्थापना दिवस है। 134 साल पहले बनीं इस पार्टी ने आजादी की लड़ाई से लेकर देश की सियासत में सबसे ज्यादा राज्य किया है। आजादी के बाद अधिकतम समय तक इस पार्टी की कमान गांधी परिवार के हाथ में रही है। महज 72 सदस्यों से स्थापित हुई इस पार्टी ने पूरे देश पर राज्य किया। यही नहीं, आजादी की लड़ाई में इस पार्टी का किस तरह का योगदान रहा, इसको देश भुला नहीं सकता है। आज ही के दिन 28 दिसंबर 1885 को महज 72 सदस्यों के साथ में कांग्रेस पार्टी की स्थापना हुई थी। आइए जानते हैं देश की सत्ता पर अधिकतम समय तक काबिज रहने वाले कांग्रेस के इतिहास और वर्तमान के बारे में...
एओ ह्यूम ने बनाई थी पार्टी

देश अस्थिरता के बीच में चल रहा और आजादी का नेतृत्व करने के लिए देश में कोई बड़ा संगठन नहीं था। ऐसे में एक सेवानिवृत्त आईसीएस अधिकारी के दिमाग में एक पार्टी का गठन करने का आइडिया और यही से बन गई कांग्रेस पार्टी। यह अधिकारी थे अवकाश प्राप्त आईसीएस अधिकारी स्कॉटलैंड निवासी ऐलन ओक्टोवियन ह्यूम (एओ ह्यूम)। जिन्होंने थियोसोफिकल सोसायटी के मात्र 72 राजनीतिक कार्यकर्ताओं के सहयोग से पार्टी की स्थापना की थी। इसमें सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार और वकीलों का दल भी शामिल था।
मुंबई में हुआ पहला अधिवेशन

कांग्रेस पार्टी की स्थापना के बाद 28 दिसंबर 1885 को कांग्रेस का पहला चार दिवसीय अधिवेशन मुंबई (तब बॉम्बे) के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज में हुआ था, जिसके अध्यक्ष तब के बैरिस्टर व्योमेश चंद्र बनर्जी थे। इस अधिवेशन के बाद दूसरा अधिवेशन ठीक एक साल बाद 27 दिसंबर 1886 को कोलकाता में दादाभाई नैरोजी की अध्यक्षता में हुआ था। तीसरा अधिवेशन मद्रास (वर्तमान चेन्नई) में हुआ और इसकी अध्यक्षता बदरुद्दीन तैयब रहे। चौथा अधिवेशन इलाहाबाद में 1888 में हुआ और इसकी अध्यक्षता जॉर्ज यूल ने किया।
कांग्रेस गठन का असली में सच

कांग्रेस का गठन जब हुआ उस समय न्याय मूर्ति रानाडे, दादा भाई नौरोजी, फिरोजशाह मेहता, जी0 सुब्रहमण्यम अय्यर और सुरेन्द्रनाथ बनर्जी जैसें नेता शामिल रहे। इसमें ह्यूम का पूरा सहयोग लिया, क्योंकि वह शुरूआत में ही सरकार से दुश्मनी नहीं मोल लेना चाहते थे। कांग्रेस पार्टी के नेताओं का सोचना था कि अगर कांग्रेस जैसे सरकार विरोधी संगठन का मुख्य संगठनकर्ता, ऐसा आदमी हो जो अवकाश प्राप्त ब्रिटिश अधिकारी हो तो इस संगठन के प्रति ब्रिटिश सरकार को संदेह नहीं होगा। इस कारण कांग्रेस पर सरकारी हमले की गुंजाइश कम होगी। इसी के बाद एओ ह्यूम की मदद से इसकी स्थापना की गई।
क्या ब्रिटिश सरकार की मदद के लिए बनी थी कांग्रेस?

कांग्रेस पर ऐसा आरोप लगता है कि कांग्रेस ब्रिटिश सरकार की मदद के लिए बनी थी। कांग्रेस के बारे में यह मिथक भी है कि एओ ह्यूम और उनके 72 साथियों ने अंग्रेज सरकार के इशारे पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की थी। जिस समय कांग्रेस की स्थापना हुई, उस समय भारत के वायसराय लॉर्ड डफरिन थे और उनके इशारे पर ही ये संगठन बना था। यह संगठन इसलिए बना था ताकि 1857 की क्रांति की विफलता के बाद भारतीयों में पनप रहे असंतोष को फूटने से रोका जा सके। इस मिथक को कई जगहों पर सेफ्टीवॉल्व का नाम दिया गया था।
गरमपंथी के नेताओं ने लिखी ये बात

गरमपंथी नेता लाला लाजपत राय ने ‘यंग इंडिया’ में प्रकाशित अपने लेख में सेफ्टीवॉल्व की इस धारणा का इस्तेमाल कांग्रेस के नरमपंथी नेताओं पर प्रहार करने के लिए किया था। कांग्रेस ने 1905 में बंगाल विभाजन के बाद अंग्रेजों के खिलाफ असल तरीके से आंदोलन शुरू किया था। गरम दल के नेताओं ने जिस तरह से काम किया, उसके बारे में कोई सवाल भी नहीं उठ सकते हैं। 1939 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संचालक एमएस गोलवलकर ने भी कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता के कारण उसे गैर-राष्ट्रवादी ठहराने के लिए सेफ्टीवॉल्व की धारणा का प्रयोग किया गया था।
आजाद भारत के पहले अध्यक्ष रहे आचार्य कृपलानी

आजाद भारत के बात देश में जिन बड़े नेताओं की चर्चा सबसे ज्यादा थी, उनमें महात्मा गांधी, मदन मोहन मालवीय और जवाहरलाल नेहरू जैसे दिग्गज नेता शामिल हैं। लेकिन आजादी के बाद कांग्रेस के पहले अध्यक्ष आचार्य कृपलानी बने। आजाद भारत के पहले आम चुनाव में कांग्रेस ने जवाहर लाल नेहरू के दम पर चुनाव लड़ा और जबरदस्त जीत हासिल की थी और वह देश के पहले प्रधानमंत्री बने।
राहुल गांधी कांग्रेस के 60वें अध्यक्ष हैं

कांग्रेस पार्टी के वर्तमान समय में अध्यक्ष की कमान सोनिया गांधी के पास है, लेकिन राहुल गांधी पार्टी के 60वें अध्यक्ष रहे। आजादी के बाद वह कांग्रेस पार्टी के 19वें अध्यक्ष हैं। उनसे पहले 59 लोग कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष पद संभाल चुके हैं। राहुल, गांधी परिवार की पांचवीं पीढ़ी के पाचवें ऐसे शख्स हैं जो कि इस कुर्सी पर बैठे हैं। राहुल से पहले उनके परदादा जवाहरलाल नेहरू, दादी इंदिरा गांधी, पिता राजीव गांधी ने करीब पांच-पांच साल और मां सोनिया गांधी ने 19 साल तक कांग्रेस का अध्यक्ष पद संभाला है।
आज मनाया गया 135वां स्थापना दिवस

135वां स्थापना दिवस दिल्ली स्थित अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी कार्यालय में मुख्य कार्यक्रम आयोजित किया गया। आज एक बार फिर से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी का तिरंगा फहराया। इस मौके पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, राहुल गांधी, पार्टी के वरिष्ठ नेता एके एंटनी, अहमद पटेल और कई अन्य नेता मौजूद थे। पार्टी ने ट्वीट कर कहा कि देश के लिए बलिदान कांग्रेस पार्टी के लिए सबसे ऊपर है। हमारी स्थापना के बाद से, स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान और आगे भी हमेशा सबसे पहले भारत है। स्थापना दिवस के मौके पर पार्टी शनिवार को देश के अलग-अलग हिस्सों में 'संविधान बचाओ, भारत बचाओ' के संदेश के साथ फ्लैग मार्च निकाल रही है।
कांग्रेस के अतीत पर एक नजर

1. वर्तमान अध्यक्ष राहुल गांधी पार्टी के 60वें अध्यक्ष हैं और आजादी के बाद पार्टी के 19वें अध्यक्ष हैं।
2. महात्मा गांधी, मोतीलाल नेहरू, मदन मोहन मालवीय, सुभाष चंद्र बोस जैसे क्रांतिकारियों से लेकर अब 59 लोग पार्टी के अध्यक्ष पद की कमान संभाल चुके हैं। अब इसकी कमान सोनिया गांधी के पास है।
3. 1939 में हरिपुरा में हुए अधिवेशन में सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर पनपे पहले विवाद के बाद इस्तीफा दे दिया था।
4. आजादी के बाद पार्टी के 18 अन्य अध्यक्षों में से 14 गांधी या नेहरू परिवार से नहीं बने, हालांकि इसके बाद भी पार्टी पर आरोप लगते रहते हैं।
5. आजादी के बाद सोनिया गांधी पार्टी अध्यक्ष पद पर सबसे लंबे समय तक 19 वर्ष रही हैं। उनकी सास इंदिरा गांधी अलग-अलग कार्यकाल में सात वर्ष तक पार्टी अध्यक्ष रही हैं। राहुल गांधी के इस्तीफा देने के बाद फिर से सोनिया गांधी के हाथों मे कमान है।
6. 1996 में मिली हार के बाद सोनिया गांधी ने वर्ष 1997 में पार्टी की सदस्यता ली थी और अगले साल 1998 में पार्टी की अध्यक्ष बन गईं थीं।
7. लाल बहादुर शास्त्री और मनमोहन सिंह कांग्रेस के दो ऐसे नेता रहे हैं, जो प्रधानमंत्री तो बने लेकिन पार्टी अध्यक्ष कभी नहीं रहे।
कांग्रेस के कुछ महत्त्वपूर्ण अधिवेशन

1888 ई. में इलाहबाद में जॉर्ज यूल के नेतृत्व में मुख्य मांगे थी- 'नमक कर' में कमी एवं शिक्षा पर व्यय में वृद्धि। इस अधिवेशन में संविधान निर्माण पर बल दिया गया। इसमें कुल सदस्यों की संख्या 1,248 थी।
1889 ई. में बम्बई में विलियम वेडरबर्न के नेतृत्व में मताधिकार की आयु सीमा 21 वर्ष निर्धारित की गई। सदस्यो की संख्या 1,889 थी।
1891 ई. में नागपुर में पी. आनन्द चारलू के नेतृत्व में कांग्रेस का एक और नाम 'राष्ट्रीयता' रखा गया।
1895 ई. में पूना में सुरेन्द्रनाथ बनर्जी के नेतृत्व में संविधान पर दुबारा विचार-विमर्श प्रारम्भ हुआ।
1896 ई. में कलकत्ता में रहीमतुल्ला सयानी के नेतृत्व में पहली बार बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा 'वंदेमातरम' गाया गया।
1916 ई. में अम्बिकाचरण मजूमदार के नेतृत्व में 'लखनऊ अधिवेशन' में कांग्रेस और मुस्लिम लीग का पुनर्मिलन हुआ।
1918 ई. में दिल्ली में पंडित मदनमोहन मालवीय के नेतृत्व में अधिवेशन सम्पन्न हुआ। इसमे 'गरम दल' के सदस्य अधिक थे, इसलिए बाल गंगाधर तिलक अध्यक्ष चुने गये। उन्हे 'शिरोल केस' के तहत इंग्लैड जाना पड़ा। अन्ततः मालवीय जी अध्यक्ष हुए। अधिवेशन में आत्म निर्णय के अधिकार की मांग की गई।
1920 ई. में नागपुर में विजय राघवाचार्य के नेतृत्व में अधिवेशन हुआ। इसमें भाषा के आधार पर देश को प्रान्तों में विभाजित किया गया। कांग्रेस की सदस्यता हेतु वार्षिक चन्दा चार आना किया गया। लोकमान्य तिलक के नाम 'लोकमान्य तिलक स्वराज्य फण्ड' की स्थापना की गयी।
1924 में महात्मा गांधी बने कांग्रेस अध्यक्ष

1921 ई. में अहमदाबाद में अध्यक्षता पद हेतु चितरंजन दास का चुनाव किया गया, मगर उनके जेल में होने के कारण अध्यक्षता हकीम अजमल खां ने की।
1924 ई. में बेलगांव में 'कांग्रेस अधिवेशन' की अध्यक्षता राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने की।
1926 ई. में गुवाहाटी में श्रीनिवास आयंगर की अध्यक्षता में सम्पन्न अधिवेशन में खद्दर पहनना अनिवार्य घोषित कर किया गया।
1927 ई. में मद्रास में एम.ए. अंसारी के नेतृत्व में अधिवेशन में पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पास किया गया।
1929 ई. में लाहौर के इस ऐतिहासिक अधिवेशन में अध्यक्ष जवाहर लाल नेहरु थे। इस अधिवेशन में भारत की पूर्ण स्वाधीनता का लक्ष्य पारित हुआ। 1936 में लखनऊ में इन्हीं के नेतृत्व में 'कांग्रेस पार्लियामेंटरी बोर्ड' की स्थापना हुई।
1937 ई. में फ़ैजपुर में प्रान्तीय स्वशासन के प्रस्ताव के साथ जवाहर लाल नेहरु ने अध्यक्षता की।
1938 ई. में हरिपुरा गांव में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की अध्यक्षता में गाँधी जी के विरोध के बाद भी स्वराज्य का प्रस्ताव पास हुआ।
आजाद भारत के बाद कांग्रेस के अध्यक्ष

नेता वर्ष
आचार्य कृपलानी (1947-1948)
पट्टाभि सीतारमैया (1948-1950)
पुरषोत्तम दास टंडन (1950-1951)
जवाहरलाल नेहरू (1951-1955)
यू. एन. धेबर (1955-1959)
इंदिरा गांधी (1959-1960 और 1978-84)
नीलम संजीव रेड्डी (1960-1964)
के. कामराज (1964-1968)
एस. निजलिंगप्पा (1968-1969)
पी. मेहुल (1969-1970)
जगजीवन राम (1970-1972)
शंकर दयाल शर्मा (1972-1974)
देवकांत बरआ (1975-1977)
राजीव गांधी (1985-1991)
कमलापति त्रिपाठी (1991-1992)
पी. वी. नरसिंह राव (1992-1996)
सीताराम केसरी (1996-1998)
सोनिया गांधी (1998-2017)
राहुल गांधी (2017-2019)
सोनिया गांधी (मई 2019 से अब तक)
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