मधुबाला की हंसी से कैंसिल हो जाती थी फिल्म की शूटिंग

दिल्ली के एक पश्तून परिवार में जन्मी मधुबाला का असली नाम मुमताज जहां देहलवी था। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत साल 1942 में फिल्म बसंत से की थी। हिन्दी फिल्मों के क्रिटिक मधुबाला के अभिनय काल को बॉलीवुड का ‘स्वर्ण युग’ कहते हैं। कुछ दिनों पहले ही दिल्ली के मैडम तुसाद म्यूजियम में उनका मोम का पुतला लगाया गया है। मधुबाला की मुस्कुराहट के लाखों दीवाने आज भी हैं जिन्होंने उन्हें कभी सामने से नहीं देखा तो सोचिए उन लोगों को हंसती हुई मधुबाला कितनी अच्छी लगती होंगी जो उनके सामने होते होंगे।
मधुबाला की बहन मधुर भूषण ने इस बात का खुलासा अपने एक इंटरव्यू में किया था। उन्होंने बताया कि मधुबाला को बी-टाउन में अपनी हंसी खुशमिजाज और चुलबुली अदाओं के लिए जाना जाता था। उनकी हंसी किसी का भी दिल जीत लेती थी। कई बार वह हंसती थीं तो हालात ऐसे हो जाते थे कि उनके ठहाके न रुक पाने की वजह से शूटिंग तक कैंसल करनी पड़ जाती थी।

लेकिन मधुबाला की हंसी जितनी जिंदादिल थी उनका दिल अंदर से उतना ही नर्म था। उनका पसंदीदा गाना था देवानंद की फिल्म ‘ज्वेल थीफ’ का फेमस गाना ‘रुलाके गया सपना मेरा…’था , जिसे सुनते हुए वह अक्सर अकेले में रोती थीं। कहते हैं कि, जो भी मधुबाला के साथ काम करता था उन्हें अपना दिल दे बैठता था।
इस लिस्ट में प्रेमनाथ, केदार शर्मा, से लेकर दिलीप कुमार, किशोर कुमार का नाम शामिल है लेकिन बावजूद इसके जब उन्होंने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कहा था तो उस दौरान उनके साथ कोई नहीं था। एक तमन्ना है... यूसुफ साहब को देखूं... ये बात 105 डिग्री बुख़ार से तड़प रही मधुबाला ने अपने मरने से पहले अपनी बहन कनीज़प्पा से कही थी। असल में मधुबाला को दिल की बीमारी थी और उनका 1950 से ही इलाज चल रहा था, लेकिन उन्होंने ये बात सभी से छुपा कर रखी थी। उनकी इसी बीमारी के चलते सिर्फ 36 साल की उम्र में उनका निधन हो गया था।
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