तस्वीरों में देखें आम आदमी के खास हीरो अमोल पालेकर की अदाकारी


पेंटर बनने की ख्वाहिश में बन गए एक्टर
24 नवंबर को वेटरन बॉलीवुड एक्टर अमोल पालेकर का जन्मदिन है। 2015 में वह 71 साल के हो गए। अभी वह एक पेंटर की जिंदगी गुजार रहे हैं। उनका कहना है कि पेंटिंग उनका पहला प्यार था। उन्होंने जेजे स्कूल ऑफ फाइन आर्ट्स से पोस्ट ग्रैजुएशन करने के बाद करियर की शुरुआत बतौर पेंटर ही की थी। वह अक्सर कहते रहे हैं, ”मैं प्रशिक्षण पाकर पेंटर बना, दुर्घटनावश एक्टर बन गया, मजबूरी में प्रोड्यूसर बना और अपनी पसंद से डायरेक्टर बना।”

स्टारडम : दस में से नौ फिल्में कर देते थे मना
1970 के दशक में अमोल पालेकर की बॉलीवुड में अपनी पहचान थी। शायद इसलिए कि वह काफी सोच-समझ कर फिल्में करते थे। उन्होंने इंटरव्यू में कहा है कि वह दस में से नौ फिल्में रिजेक्ट कर देते थे। 1970 के दशक में बासु चटर्जी-अमोल पालेकर की जोड़ी वैसी ही बन गई, जैसी उसी दौर में मनमोहन देसाई-अमिताभ बच्चन की बनी थी।

अमोल की फिल्में आज भी लगती हैं रोचक
अमोल के फिल्मों की कहानियां उस ज़माने की ज्यादातर फिल्मों से हटकर होती थी। अमोल पालेकर की एक्टिंग में एक ताजगी, सादापन और वास्तविकता नज़र आती थी। इसीलिए उनकी गोलमाल, बातों-बातों में जैसी फिल्में दसों बार देखने के बाद आज भी अच्छी लगती हैं।

और बदल गया जीवन, छा गए बड़े पर्दे पर
अमोल पालेकर ने 1974 में ‘रजनीगंधा’ फ़िल्म से डेब्यू किया था। इसके बाद उनकी दो फ़िल्में 1975 में 'छोटी सी बात' और 1976 में ‘चितचोर’ प्रदर्शित हुई थीं। इन तीनों फ़िल्मों ने मुंबई में सिल्वर जुबली मनायी।

ऐसे शुरू हुआ एक्टिंग का करियर
अमोल पालेकर की गर्लफ्रेंड थिएटर में दिलचस्पी रखती थीं। जब वह थिएटर में रिहर्सल के लिए जातीं तो अमोल वहां उनका इंतजार किया करते। इसी सिलसिले में एक दिन थिएटर में सत्यदेव दुबे की नजर उन पर पड़ी। दुबे ने उन्हें मराठी नाटक ‘शांताता! कोर्ट चालू आहे’ में ब्रेक दिया।

नहीं देते थे किसी को ऑटोग्राफ
अमोल पालेकर शुरू से तड़क-भड़क से दूर रहने वाले हैं। वह ऑटोग्राफ देने से भी मना कर दिया करते थे। उनकी छोटी बेटी इसके लिए उन्हें डांटती भी थीं। अमोल ने दो शादियां कीं। पहली पत्नी चित्रा पालेकर से बेटी शलमाली हुईं। वह आजकल ऑस्ट्रेलिया की एक यूनिवर्सिटी में पढ़ाती हैं।

छोटे पर्दे पर भी कमाया नाम
बड़े पर्दे के साथ ही छोटे पर्दे के लिए ‘कच्ची धूप’ और ‘नकाब’ जैसी धारावाहिकों का निर्देशन भी किया। दायरा, अनाहत, कैरी, समांतर, पहेली , अक्स रचनात्मकता के हर रंग-रूप में ख़ास नजर आते हैं। भाषा, देश, संस्कृति किसी भी आधार पर सिनेमा के विभाजन को नहीं मानते।

मिला कई बार सर्वोच्च सम्मान
बेहतरीन अभिनय और निर्देशन के लिए अमोल पालेकर को कई पुरस्कार और सम्मान मिले। इनमें शामिल है- फ़िल्म ‘दायरा’ (1996) के लिए पहला राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार और पारिवारिक उत्थान के क्षेत्र में निर्देशित फ़िल्म ‘कल का आदमी’ के लिए सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार। इसके अतिरिक्त ‘गोलमाल’ में अपने रोल के लिए अमोल को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्मफेयर पुरस्कार भी मिला।

अच्छे एक्टर और बेहतरीन निर्देशक भी हैं
अमोल एक अच्छे अभिनेता तो थे ही अच्छे निर्देशक भी हैं। उनकी पहली फ़िल्म निर्देशित फ़िल्म मराठी भाषा की ‘आकृएत’ (1981) थी। इस फ़िल्म में इन्होंने अभिनय भी किया। किसी मनोरोग से पीडि़त व्यक्ति जो हत्याएं करता फिरता है का अभिनय निश्चित ही चुनौतीपूर्ण भूमिका थी। उनकी पहली निर्देशित हिन्दी फ़िल्म ‘अनकही’ (1984) थी।
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