100 के नोटों के साथ इन्होंने जो किया, वह आप सोच नहीं सकते

'सोच नहीं सकते' शायद एक ऐसा टर्म है, जिसे आक्रोश, जनसैलाब और ऐसे ही न जाने कितने शब्दों की तरह हम पत्रकार इस्तेमाल करते रहे हैं। यकीन मानिए, इस बार हमने इसका इस्तेमाल सही जगह और बहुत सोच समझकर किया है। आगे की कहानी पढ़िए, आपको वजह खुद-ब-खुद मालूम पड़ जाएगी।
इलाहाबाद के एक नामचीन आई सर्जन हैं डॉ. आरएन मिश्रा। उनके पास पैसे थे, अच्छी तादाद में। देशभर के तमाम नेक लोगों की तरह, उन्हें भी आम लोगों की परेशानी देखकर दिक्कत हो रही थी। बैंकों में कैश की किल्लत की खबरें उन्हें और ज्यादा परेशान कर रही थीं। बाजार से लेकर बैंकों तक में 100 के नोटों का तो मानो अकाल सा पड़ रहा था। जिनके पास 100 के नोट हैं, वे खुशकिस्मत भी हैं और अमीर भी । डॉक्टर मिश्रा के पास भी 10 और 100 के नोटों की भरमार थी।
उन्होंने अपने दबाए नहीं, उनपर कुंडली लगाकर बैठ नहीं गए। कैश की कमी को देखते हुए एक सराहनीय कदम उठाया। उन्होंने गुरुवार को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की मेडिकल कालेज ब्रांच में 1,70,000 कैश जमा कराया। खास बात यह है कि रकम ऐसे नोटों में जमा की गई, जिनकी लोगों को जरूरत है। 10 और 100 रुपये के नोटों में जमा की गई यह रकम उन्हें प्रैक्टिस के दौरान मरीजों से मिली थी।
इसी तरह, मुरादबाद के एक कारोबारी अवधेश गुप्ता ने भी लोगों की मदद के लिए बैंक में एक लाख 55 हजार रुपये जमा कराए। उन्होंने यह राशि 10, 50 और 100 के नोटों में जमा कराई है। उन्होंने यह कदम ऐसे समय में उठाया है जब, लोग छोटे नोटों के लिए सुबह से शाम तक लाइन में लग रहे हैं।
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के ब्रांच मैनेजर अनिल कुमार ने बताया, 'हमने अपने ग्राहकों से अपील की थी कि ऐसे लोग जिनके पास अपनी जरूरतों से अधिक छोटे नोट हों वे बैंकों में जमा कर लोगों की मदद करें।' इसका असर किसी पर नहीं पड़ा, पर अवधेश ने अपनी रेजगारी समेटी और पहुंच गए बैंक। अवधेश ने कहा, 'मैंने यह रुपया नोटबंदी के बाद लोगों को हुई परेशानी को कम करने के लिए जमा कराया है। हम देख रहे हैं कि लोग एटीएम और बैंकों के बाहर लंबी कतारों में हैं।'
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