यूपी के इस गांव में दर्ज है हर घर के दरवाजे पर बेटियों का नाम, जाने क्यों

बेटियों का अनुपात बढ़ाने के लिए हरियाणा राज्य में जींद जनपद के बीबीपुर ग्रामसभा के प्रधान सुनील जगलान की ‘सेल्फी विद डॉटर’ की पहल को तो हम सभी जानते हैं, आज हम आपको यूपी के मुजफ्फरनगर जिले के लोहादा गांव के प्रधान सत्येंद्र पाल की कहानी बताने जा रहे हैं। जिन्होंने घर की लाडो को परिवार का मुखिया होने व एक खास पहचान होने का एहसास कराने की पहल शुरू की है। उन्होंने घर के सामने की दीवार पर बडे़-बडे़ अक्षरों में बेटियों का नाम लिखवाना शुरू किया है। उनकी इस पहल से पूरे गांव की 700 बेटियों को गर्व है कि आखिरकार उनका नाम घर के दरवाजे पर लिखा गया है।
पुरुष वर्चस्व के आगे आसान नहीं था बेटियों का नाम लिखना
मुजफ्फरनगर जिले के लोहादा गांव में बेटियों के कम लिंगानुपात को बढ़ाने के लिए यह पहल 2015 में शुरू की गई थी। हर घर के बाहर बेटियों का नाम लिखने का सुझाव दिया गया। बता दें कि 2011 की जनगणना के अनुसार यहां पर लिंगानुपात 671 हैं जो कि पूरे उत्तर प्रदेश के 902 से बहुत कम है। बेटियों का अनुपात कम होने के कारण उनकी संख्या बढ़ाने के लिए प्रधान सत्येंद्र पाल ने यह पहल शुरू की। उन्होंने यह पहले सरकार द्वारा शुरू किए गए ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ से अभिप्रेरणा लेकर शुरू की गई। उनकी तरफ से शुरू इस पहल का शुरूआत में विरोध भी हुआ। पुरुष वर्चस्व के समाज में इतना आसान नहीं था कि बेटियों का नाम दरवाजे पर लिखा जाए। लेकिन गांव के प्रधान सत्येंद्र पाल के आग्रह पर लोग मान गए और गांव के 700 घरों के सामने बेटियों का नाम लिखा गया। इनकी इस पहल की कहानी दूसरे गांवों में भी तेजी के साथ फैली और आखिरकार गांव में बेटियों के नाम की इस पहचान देने की पहल को प्रशासन ने भी माना।
अपने घर से मिली बेटियों को बढ़ाने की प्रेरणा
कहा जाता है कि सीख लोगों को अपनों से मिलती है तो कुछ ऐसे ही प्रेरणा सत्येंद्र पाल को अपने घर से ही मिली। सत्येंद्र पाल के अनुसार एमएससी पास मेरी भाभी एक दिन घर में केक बना रही थी तो मैंने इसका विरोध किया। इसके बाद मेरे परिवार के सदस्यों ने कहा कि महिलाओं के कार्य में हस्तक्षेप न करें। बस यही से मुझे प्रेरणा मिली और मैंने महिलाओं को पहचान देने का निर्णय लिया। उन्होंने कहा कि यह मौका मुझे 2015 में मिला जब मैं गांव का मुखिया के तौर पर निर्वाचित हुआ। मैंने पंचायत में इस प्रस्ताव को रखा और प्रतिरोधों के बीच आखिरकार मेरा प्रस्ताव पास हो गया। उन्होंने कहा कि सरकारी मद्द भी मेरे इस काम के लिए मिली। ग्राम पंचायत सचिव जितेंद्र वर्मा ने नारों की पेंटिंग के लिए 10,000 रुपये मंजूर किए और लड़कियों के नाम लिखवाने के लिए उन्होंने 20,000 रुपये की मदद अलग से की।
‘मेरे गांव की यही पहचान, बेटी को मिला सम्मान’
लोहादा गांव में हर घर के सामने यह लिखा हुआ वास्तव में बहुत ही गर्व सा महसूस बेटियों को करता है। इसकी उपज देने वाले सुरेश पाल के अनुसार काफी सोच समझकर अभियान के लिए यह नारा दिया ‘मेरे गांव की यही पहचान, बेटी को मिला सम्मान’ इसके बाद बेटी का नाम फिर पिता का नाम और अंतिम लाइन बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ लिखा। वही, प्राथमिक विद्यालय सैथेरी जहां पर लोहादा गांव की अधिकतर बेटियां पढ़ने के लिए आती है। स्कूल की प्रधानाचार्य अनुराधा मौर्य कहती है कि ‘कभी-कभी एक छोटा कदम भी कई लोगों को छूता है, लोगों में व्यवहारिक परिवर्तन लाता है।’ उन्होंने कहा कि इस कदम के बाद गांव में परिवर्तन आया है। इसी गांव की एक छात्रा कक्षा दो में पढ़ती है और जिसका नाम उसके घर के बाहर लिखा है। उसका कहना है कि ‘मैं अपनी कक्षा की निगरानी कर रहा हूं।’ खतौली गांव के एक कॉलेज की छात्रा 18 वर्षीय रश्मी शर्मा का नाम घर पर लाल रंग से पेंट लिखा हुआ है। उन्होंने कहा कि जब पहली बार मेरा नाम लिखा गया वास्तव में मेरे लिए यह गर्व महसूस करने जैसा था। मुझे स्वामित्व की भावना महसूस हुई।
सत्येंद्र की पहल को मिल रहा विस्तार
सत्येंद्र की इस पहल को अब विस्तार मिल रहा है। आसपास के गांवों में सठेरी, सिकंदरपुर कलान और रामपुर ने भी लोहादा गांव के उदाहरण का पालन किया है और इसी तरह नामों को हर दरवाजों पर लिखवाया है। इस संबंध में खतौली के तहसीलदार अमित कुमार ने कहा, ‘मैं गांव के प्रधान सत्येंद्र पाल को जानता हूं उनके द्वारा शुरू की गई की पहल वास्तव में काफी सराहनीय हैं उन्होंने कहा कि 120 पंचायत के प्रमुखों से अगली बैठक में इसका उदाहरण शुरू कराने के लिए कहा है। एसडीएम कुमार धर्मेंद्र का कहना है कि घर के बाहर लड़कियों के नामों को दर्ज करने का नया विचार प्रशंसनीय है। उन्होने कहा कि इस पहल को जल्द ही और विस्तार देने के लिए मैं कहूंगा।
संबंधित खबरें
सोसाइटी से
अन्य खबरें
Loading next News...
