UPPCS 2020: शिक्षक से जेल अधीक्षक बनें सचिन, आसान नहीं रहा बचपन में सफर

एक सफलता आपके पीछे के सारे संघर्ष को सामने ला देती है तो वहीं असफलता आपके सारे संघर्ष को छिपा देती है। कई बार असफलता के बाद सफलता मिलती है तो उसका मजा ही कुछ और होता है। आखिरकार हो भी क्यों न, जिसका सपना बचपन से ही देखा जाता है, जिसके पीछे सालों की कड़ी मेहनत होती है, जिसके पीछे परिवार को बड़ी आशा होती है, वह आखिरकार जब पूरा होता है, तो खुशी होती ही है।
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ऐसा ही कुछ हुआ है सीतापुर के रहने वाले सचिन वर्मा के साथ में जो कि उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की पीसीएस 2020 को पास करके जिला कारागार अधीक्षक (जेलर) बने हैं। जेल अधीक्षक के रूप में तैनाती पाने वाले सचिन का सफर यहां तक आसान नहीं रहा है। इंटर में ही पिता को खो देने के बाद आगे की राह एक समय कठिन लग रही थी, लेकिन उनके बाबा और चाचा ने हौसला दिया और सचिन को बेहतर से बेहतर पढ़ाई कराई। अपने बाबा रामलाल रत्नाकर और स्वर्गीय पिता सोमेश्वर शरण वर्मा के सपनों को पूरा करने के लिए सचिन वर्षों से लगे रहे। तीन बार मेंस और साक्षात्कार तक पहुंचें, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। असफलताओं के बाद भी वे लगे रहें और आखिरकार अब अफसर बन ही गए है।
सीतापुर जिले के महोली क्षेत्र के उरदौली गांव निवासी सचिन वर्मा का चयन जिला कारागार अधीक्षक पद पर हुआ है। वर्तमान सीतापुर के ही बिसवा ब्लाक के प्राथमिक विद्यालय पिपराकलां में सहायक अध्यापक कार्यरत सचिन का सफर यहां तक आसान नहीं रहा है। जब वे इंटर में थे तब उन्होंने अपने पिता को खो दिया। सबसे खास बात यह है जिस दिन सचिन का गणित का पेपर था, उसी दिन उनके पिता जी की मृत्यु हुई थी। पिता जी की अचानक मृत्यु के बाद सचिन और उनके परिवार की सारी उम्मीदें समाप्त हो गई थी, लेकिन इस कठिन दौर में उनका साथ बाबा रामलाल रत्नाकर ने दिया और उनकी पढ़ाई लिखाई उन्होंने ही कराई। सचिन के बाबा रामलाल रत्नाकर गांव में ही रहकर खेती करते हैं। उन्होंने अपने पौत्र की पढ़ाई का पूरा जिम्मा उठाते हुए उसकी शुरुआती पढ़ाई गांव में कराने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए लखनऊ भेज दिया।
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यहां पर रहते हुए सचिन ने लखनऊ विश्वविद्यालय से बीएससी किया। इसके बाद फिर आगे नौकरी के लिए बीएड कर लिया। बीएड करते ही उन्होंने साल 2015 में सहायक अध्यापक के तौर पर नौकरी मिल गई। नौकरी के साथ ही उन्होंने सिविल सेवा की तैयारी जारी रखी। शुरुआती परिणाम उनके अनुरूप नहीं आए, लेकिन विगत वर्ष से शिक्षक टीएन कौशल सर के सानिध्य में आने के बाद उनको अपनी पढ़ाई करने में मजबूती मिली। अब परिणाम के तौर सचिन वर्मा जिला कारागार अधीक्षक के पद पर कार्यरत है। सचिन के पिता स्व. सोमेश्वर वर्मा भी कृषक थे, उनकी मां चंद्रकाती वर्मा गृहणी हैं। सचिन की छोटी बहन स्मृति वर्मा का चयन पिछले साल यूपी पुलिस में उप निरीक्षक के पद पर हुआ, वे इस समय मेरठ में प्रशिक्षण प्राप्त कर रही है। सचिन वर्मा के चाचा संत शरण वर्मा सुमित्रा पब्लिक इंटर कालेज में शिक्षक हैं, जिन्होंने सचिन को आगे पढ़ाई का गाइडेंस दिया।
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गांव में ही हुई सचिन की प्रारंभिक पढ़ाई
सीतापुर जिले के महोली ब्लाक के क्षेत्र के उरदौली गांव निवासी सचिन वर्मा की शुरुआती पढ़ाई लिखाई गांव में स्थित बाल भारती मांटेसरी स्कूल से की। इंटरमीडिएट उन्होंने सरस्वती विद्या मंदिर महोली से किया था। इसके बाद स्नातक की डिग्री लेने के लिए उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और यहां से बीएससी की। बीएससी करने के बाद उन्होंने अपने गृह जनपद से बीएड किया। इसके बाद उन्होंने कानपुर विश्वविद्यालय से प्राचीन इतिहास में परास्नातक किया। बीएड होने की वजह से उन्हें 72 हजार शिक्षकों की आई भर्ती में उन्हें बेसिक शिक्षा विभाग ज्वाइन करने का मौका मिलया गया। सचिन ने बेसिक शिक्षा विभाग में सहायक अध्यापक के पद ज्वाइन करने के बाद अपनी पढ़ाई जारी रखी और अब परिणाम आपके सामने हैं। सचिन ने इतिहास से ही नेट क्वालीफाइ किया है।

'मंजिल' ने सचिन को दिलाई मंजिल ?
सचिन वर्मा के साथ में असफलताओं का दौर जारी रहा है। शिक्षा विभाग में ज्वाइन करने के बाद ही उन्होंने पहली बार यूपीपीसीएस का मेंस लिखा था, लेकिन उस समय उनका चयन नहीं हुआ। सचिन ने बताया कि उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की तरफ से निकाली गई यूपीपीसीएस 2015, 2017 और 2018 का भी मेंस लिखा था, लेकिन मेरा चयन नहीं हो पाया था। सचिन बताते हैं कि मैं हर बार मुख्य परीक्षा से ही बाहर हो जा रहा था, इसके बाद मैंने यूपीपीसीएस 2020 की परीक्षा को देने से पहले मंजिल कोचिंग के संचालक टीएन कौशल के मार्गदर्शन में तैयारी शुरू की और मैं मेंस के साथ ही इंटरव्यू तक पहली बार पहुंचा। पहली ही बार में मैंने बड़ी सफलता अर्जित कर ली।सचिन अपनी इस कामयाबी का श्रेय अपने गुरु और अफसर रहे टीएन कौशल जी को देते हैं। उन्होंने कहा कि सर के मार्गदर्शन में मुझे पढ़ाई करने का मौका मिला और मैंने पहली ही बार में बड़ी सफलता अर्जित कर ली। अपनी इस कामयाबी के पीछे अपने गुरूजनों, माता, बहन, चाचा और मित्रों को देते हैं। वहीं, इस कामयाबी के लायक बनाने के लिए यहां तक पहुंचाने सबसे बड़ा अहम रोल अदा करने बाबा रामलाल रत्नाकर को याद करते हुए वह रो पड़ते हैं। सचिन ने कहा कि पिता जी के न रहने पर मेरे बाबा और चाचा ने ही मुझे आगे पढ़ने के लिए हमेशा प्रोत्साहित किया, जिसकी वजह से मैं आज यहां तक पहुंचा हूं।
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सचिन ने इस तरह की प्री और मेंस की तैयारी?
सचिन ने प्री और मेंस की तैयारी की रणनीति के बारे में इंडिया वेव को बताया कि उन्होंने अपना बेस मजबूत करने के लिए सबसे पहले एनसीईआरटी की बुकों का सहारा लिया। इसके बाद में जीएस को मजबूत करने के लिए एक-एक बेसिक बुक को पढ़कर इस पार्ट को मजबूत किया। उन्होंने कहा कि अभ्यर्थियों को अपने बेस को मजबूत करने के लिए जीएस में हर विषय की अलग-अलग किताबों को पढ़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि किताबों को पढ़ने के साथ ही रिवीजन भी बहुत जरूरी होता है। अगर आप रिजीवन करते रहेंगे, तो सबकुछ आसानी के साथ में याद होता चला जाएगा।
उन्होंने कहा कि मैंने यही रणनीति अपना लगातार मेंस की परीक्षा को दिया है। उन्होंने कहा कि टाइम टेबल के हिसाब से ही तैयारी करनी चाहिए और अभ्यर्थियों को अपने टाइमटेबल में रिजीवन को शेड्यूल में डालना चाहिए। सचिन कहते हैं कि इस परीक्षा को देने से पहले ही वैकल्पिक विषय को तैयार कर लेना चाहिए ताकि फिर प्री निकलने के बाद में ज्यादा दिक्कत न हो। उन्होंने कहा कि मेरा खुद का हिन्दी साहित्य विषय था जबकि मैंने बीएससी की है, लेकिन इसके बाद भी मैंने इस विषय को चुना। इंटरव्यू के लिए मॉक इंटरव्यू बहुत ही जरूरी है। इससे अपको अपने अंदर की कमी को जानने और बोर्ड के सामने जाने से पहले सुधारने का अच्छा मौका मिल जाता है।
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बदले पैटर्न में कोचिंग जरूरी है या फिर नहीं?
अगर बाद बदले पैटर्न की जाए तो यूपीपीएससी और यूपीएससी का सिलेब्स लगभग अब सामान ही हो गया है। अब यूपीएससी की तैयारी करने वाला छात्र भी यूपीपीएससी की परीक्षा को आसानी के साथ में दे सकता है। अब बाहरी प्रदेशों के छात्रों के अधिक से अधिक इस परीक्षा में चयन होने की असली वजह यही है कि अब यूपीएससी की तैयारी करने वाले छात्रों का चयन भी यूपीपीसीएस में आसानी के साथ में हो जाता है। कोचिंग के बारे में सचिन कहते हैं कि कोचिंग आपका चयन सुनिश्चित नहीं करती है बल्कि कम समय में अधिक से अधिक से जानकारी देने का प्रयास करती है। कोचिंग के बारे में उन्होंने कहा कि जहां अच्छा मार्ग दर्शन मिले सकें, इसके लिए सीनियर्स की मदद (या सेलेक्टेड छात्रों से) लेनी चाहिए।
मीडियम का आप क्या महत्व समझते है?
देखिए, अगर बात मीडियम की जाए तो यह ज्यादा मायने नहीं रखता है। मायने रखता है कि आप किताब में क्या लिखकर आए हैं। परीक्षक आपका कटेंट देखता है। अब आयोग की तरफ से शब्द की लिमिट भी दे दी गई है, इसकी वजह से अंग्रेजी माध्यम के अभ्यर्थी बाजी मार ले जा रहे हैं। वे कहते हैं कि हिन्दी माध्यम के अभ्यर्थियों को भी कटेंट पर अधिक जोर देना चाहिए। उन्होंने कहा कि आयोग के परिणाम पर अगर नजर डाली जाए तो अभी भी हिन्दी माध्यम के अभ्यर्थी ही आगे चल रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह ऐसी परीक्षा है कि इसमें माध्यम से कहीं ज्यादा मायने रखता है कि आप कापी में क्या कटेंट लिखकर आ रहे हैं।
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छात्रों को कैसे तैयारी करनी चाहिए, कुछ सुझाव दें?
अब सिविल सेवा की परीक्षा आपसे समय मांगती है इसीलिए आप अपने शुरुआती असफलता वाले परिणामों से निराश न हो। असफलता की सड़क से गुजरने के बाद ही सफलता आती है, इसीलिए बहुत ही जल्द ही परेशान नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसे अभ्यर्थी जो लगातार असफल हो रहे हैं, वे अपनी तैयारी को मजबूती देने के लिए ऑनलाइन क्लॉस के साथ ही चयनित अभ्यर्थियों का भी सहारा ले सकते हैं। व्यक्ति को सदैव ही उच्चतर लक्ष्य के लिए प्रयास करते रहना चाहिए। सफलता (चयन) एक सीढ़ी है मंजिल नहीं।
तैयारी के बारे में मेरा यही सुझाव है कि इस समय जीएस का बहुत अधिक महत्व बढ़ गया है, इसकी वजह से अच्छी किताबों से अध्ययन करना चाहिए। बेसिक अभ्यर्थी एनसीआरटी से मजबूत कर सकते हैं। इसके बाद भारत का स्वतंत्रता संघर्ष-विपिन चंद्रा, भारत की राजव्यवस्था-लक्ष्मीकांत, भूगोल के लिए महेण वर्णवाल, अर्थव्यवस्था-संजीव शर्मा या रमेश सिंह को पढ़कर मजबूत किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि मेंस में तैयारी का दायरा बढ़ा है, इसके लिए वर्तमान परिवेश में गाइडेंस का बहुत ही अधिक बढ़ गया है।
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