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समाज में हमेशा ही दिव्यांगों (Disability Person) को कमजोर नजर से देखा जाता रहा है। शारीरिक रूप से कमजोर होने की वजह से दिव्यांगों (Disability) पर कुछ अलग ही नजरिया लोगों का रहा है। अगर कोई व्यक्ति कान और आंख से दिव्यांग (Disability) है तो उसके प्रति लोगों का व्यवहार ही पूरी तरह से बदल जाता है। लोगों की तरफ से अक्सर यही सुनने को मिलता है कि अब तो यह कुछ भी नहीं कर सकता है। एक ऐसे ही युवा को समाज से ताने सुनने को मिलते थे क्योंकि वह कानों से कुछ सुन ही नहीं सकता है आखिर यह आगे चलकर क्या करेगा। यानी कानों से न सुन पाने वाले दिव्यांग (Disability) को समाज यह मानकर बैठ गया है कि जब यह पढ़ लिख ही नहीं सकता है तो फिर क्या करेगा।
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इस युवक ने समाज के इन्हीं तानों को स्वीकार किया और अपनी इस कमजोरी को शस्त्र मानकर पढ़ाई-लिखाई शुरू की। शुरुआत में उस युवक को दिक्कत हुई लेकिन फिर धीरे-धीरे नित क्रिया में आ जाने की वजह से वह युवक अभ्यस्त हो गया। उसने पढ़ाई के साथ-साथ में ऐसी कामयाबी पाई है कि अब वह गांव और समाज के लोगों के लिए आइना बन गया है। उस युवक ने उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (UPPSC) की परीक्षा पास करके न सिर्फ अपने गांव का नाम रोशन किया बल्कि समाज में भी अपनी एक अलग पहचान बनाई है। यही नहीं, यूपी के चुनिंदा श्रवण बाधित अधिकारियों में से एक अफसर बन गया है।
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यह और कोई नहीं बल्कि राज्य विकलांग पुरस्कार प्राप्त लखनऊ के आलमनगर क्षेत्र के भपतामऊ (Bhaptamau) के निवासी आदर्श कुमार (Adarsh Kumar) है। आज आदर्श (Adarsh Kumar) भले ही कामयाब हो गए हैं, लेकिन शुरुआती दौर में इन्हें भी समाज के इन्हीं तानों का सामना करना पड़ा था। वर्तमान में हरदोई जिले के संडीला ब्लाक के जामू (Jaamu) गांव में प्राइमरी अध्यापक आदर्श कुमार (Adarsh Kumar) की कामयाबी वास्वत में हम लोगों को प्रेरणा देने वाली है।
यूपी के चुनिंदा श्रवण बाधित अधिकारियों में से एक आदर्श सिर्फ श्रवण बाधित ही नहीं बल्कि पैर से भी दिव्यांग (Disability) हैं। एक साथ शरीर में दो-दो शारीरिक परेशानियां होने के बाद भी आदर्श ने इस कमजोरी को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। उन्होंने अपनी कमजोरी को ही मजबूती देने का पूरा प्रयास किया, उनकी एक चेष्टा हमेशा से रही कि वह बेहतर से बेहतर मुकाम हासिल करें। यूपी पीसीएस 2018 (UPPCS Result 2018) के आए परिणाम में श्रम प्रवर्तक अधिकारी का पद पाने वाले आदर्श बताते हैं कि मेरी कमजोरी और असफलताओं को देखकर मेरे प्रति लोग हमेशा ही नकारात्मक विचार रखते थे।
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उन्होंने (Adarsh Kumar) कहा कि जब मुझे शुरुआती दौर में सफलता नहीं मिली तो लोगों ने कहा कि आखिर इतना पढ़ लिखकर क्या करोंगे। तुम्हें अगर नौकरी मिल भी गई तो आखिर कैसे करोंगे। इससे अच्छा है कि कुछ काम सीख लो, जिससे भविष्य में परिवार को चलाने में तुम्हें आसानी होगी। आदर्श (Adarsh Kumar) कहते हैं कि मैंने समाज की इन नकारात्मक विचारों पर कभी ध्यान ही नहीं दिया मैंने अपनी कमजोरी को मजबूती देने का प्रयास किया, जिसका नतीजा आज सबके सामने हैं।
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पांच साल की उम्र में हुआ था पोलियो
आदर्श (Adarsh Kumar) जब पांच साल के थे तब उन्हें पोलियो हो गया, जिसकी वजह से एक पैर से वह चलने में अक्षम (Disability) हो गए। इसके बाद जब क्लास छह में थे तब उन्हें श्रवण दोष हुआ। आदर्श (Adarsh Kumar) ने अपनी इन कमजोरियों को दूर करने के लिए किताबों को दोस्त बनाया और उन्हें शिक्षक मानकर पढ़ाई लिखाई शुरू की। तीन भाईयों में सबसे छोटे आदर्श अपने पैरों पर स्वयं ही खड़ा होना चाहते थे। उन्हें आखिरकार उसमें सफलता मिली भी। आदर्श के पिता शिवमंगल सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त है और माता रामकुमारी गृहणी है। आदर्श के भाई राहुल कुमार और अमित कुमार ने अपने भाई को कभी कमजोर महसूस नहीं होने दिया। भाईयों ने उनका हर कदम पर साथ दिया और बहन अनुराधा भी उनका सहयोग किया।
आदर्श ने पढ़ाई को बनाया अपना हथियार
पढ़ाई में शुरू से ही अव्वल रहे आदर्श ने पढ़ाई को ही अपना हथियार बनाया। उन्होंने अपनी पढ़ाई अब भी जारी रखी है। आदर्श (Adarsh Kumar) बताते हैं कि मैं शुरू से पढ़ने में अच्छा था। क्लास 6 में मैं जब था तब मेरे साथ ऐसा हादसा हुआ कि मेरी कानों की आवाज ही चली गई। उन्होंने बताया कि एक समय ऐसा लगा कि अब कुछ नहीं हो सकता था, लेकिन इसके बाद भी मैंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और मैं अपनी क्लास में हमेशा ही प्रथम आता था। आदर्श (Adarsh Kumar) ने बताया कि मैंने वर्ष 2007 में कॉमर्स से ग्रेजुएशन किया और वर्ष 2009 में कॉमर्स से ही पोस्टग्रेजुएशन किया।
इसके बाद वर्ष 2010 में डॉ. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय से स्पेशल एजुकेशन से बीएड पूरा किया और वर्ष 2011 में एमएड स्पेशल एजुकेशन से ही किया। उन्होंने बताया कि इसके बाद मैं बालागंज स्थित सेंट फ्रांसिक स्कूल में विशेष शिक्षक के तौर पर पढ़ाने लगा और मैंने यहां पर तीन सालों तक पढ़ाया। उन्होंने बताया (Adarsh Kumar) कि वर्ष 2013 में मैंने नेट जेआरएफ किया। वर्ष 2015 में शिक्षक के रूप में नियुक्ति मिली और इसके बाद प्रशासनिक सेवाओं की तैयारी शुरू की। प्रशासनिक सेवाओं की तैयारी करते हुए आखिर उन्हें अब सफलता मिली ही गई है।
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कई नौकरियों में दिव्यांगता बनी बाधा
आदर्श (Adarsh Kumar) बताते हैं कि कुछ नौकरियों में दिव्यांगता मेरे लिए बाधा बनी। उन्होंने बताया कि वर्ष 2009 में मैंने एसएससी (SSC) मैट्रिक लेवल की पास की, लेकिन श्रवण बाधित होने की वजह से मैं सुनन नहीं सकता था, इसकी वजह से मुझे इस नौकरी से बाहर होना पड़ा। वह बताते हैं कि जब नौकरी आने के बाद हाथ से निकल गई तो बहुत दु:ख हुआ था।
आदर्श (Adarsh Kumar) बताते हैं मैंने हार नहीं मानी इसके बाद स्पेशल एजुकेशन के ही क्षेत्र में ने बीएड (B.ED) और एमएड (M.ED) किया, जिसका नतीजा रहा कि मैं वर्ष 2015 में बेसिक शिक्षा विभाग में आ गया। उन्होंने (Adarsh Kumar) बताया कि मैंने प्रशासनिक सेवा की तैयारी नौकरी में आने के बाद ही शुरू की और पीसीएस 2016 और 2017 (UPPCS Mains) के मेंस लिखे, लेकिन साक्षात्कार तक ही नहीं पहुंच सका। उन्होंने (Adarsh Kumar) बताया कि मैंने वर्ष 2017 में मैंने यूपीएससी (UPCS) की सिविल सेवा परीक्षा (CSE) का मेंस भी दिया, लेकिन श्रवण बाधित होने की वजह से भाषा में छूट न होने के कारण अंग्रेजी विषय को पास नहीं कर सका।
उन्होंने बताया कि मैंने इसके बाद हार नहीं मानी। मैं तैयारी में निरतंर लगा रहा और पीसीएस 2018 (UPPCS Result 2018) मैं अंतिम रूप से चयनित हुआ। आदर्श को वर्ष 2014 में बेहतर कर्मचारी के रूप में राज्य कर्मचारी विकलांग पुरस्कार भी मिल चुका है।
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सामान्य बच्चों के साथ में पढ़ते हैं आदर्श
55 प्रतिशत श्रवणबाधित आदर्श कुमार (Adarsh Kumar) सामान्य बच्चों के साथ में ही शुरू से पढ़ाई करते आए हैं। आदर्श कुमार (Adarsh Kumar) कहते हैं कि मैंने अपने को कभी दूसरे बच्चों से कमजोर नहीं समझा। मैं शुरू से ही इसको मजबूती देने का प्रयास करता रहा ताकि कुछ बेहतर से बेहतर कर सकूं। उन्होंने बताया कि जब भी क्लास में शिक्षक पढ़ाते हैं तो मैं उनके ओठ और फिजिकल एक्सप्रेशन से समझने का प्रयास करता था।
इसके अलावा शिक्षकों की तरफ से जो लिखाया जाता था मैं उसको अच्छी तरह से याद करता था। आदर्श (Adarsh Kumar) ने बताया कि मैं शुरू से ही नॉमर्ल बच्चों के साथ पढ़ा हूं इसीलिए मुझे ऐसी कोई दिक्कत नहीं आई। उन्होंने बताया कि अगर कभी भी मुझे कोई दिक्कत होती थी तो स्कूल, कॉलेज और कोचिंग के शिक्षकों से पूछकर क्लियर कर लेता था। आदर्श (Adarsh Kumar) ने बताया कि मेरी पढ़ाई और तैयारी में मेरा साथ मेरे सहपाठियों ने हमेशा ही दिया। उनकी ही वजह से मैं कुछ बेहतर से बेहतर कर पाया हूं।
टीएन कौशल और मृत्युंजय सर मेरे 'मसीहा'
आदर्श (Adarsh Kumar) अपनी कामयाबी का पूरा श्रेय एक कोचिंग संचालक और केंद्र और राज्य सेवा में प्रशासिनक अफसर रह चुके टीएन कौशल (TN Kaushal) और डॉ. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. मृत्युंजय मिश्रा (Dr. Mrityunjaya Mishra) को देते हैं। आदर्श कहते हैं कि इन शिक्षकों का अगर साथ न होता तो शायद मैं यहां तक नहीं पहुंच पाता। मेरी शारीरिक कमजोरी को इन लोगों ने कभी महसूस नहीं होने दिया। मृत्युंजय (Dr. Mrityunjaya Mishra) सर ने जहां विश्वविद्यालय में मुझे एक के बाद एक करके कोर्स को करने की प्रेरणा दी तो वहीं मेरी तैयारी में मार्गदर्शक टीएन कौशल (TN Kaushal) सर बने।
उन्होंने (Adarsh Kumar) बताया कि जब मैं टीएन कौशल (TN Kaushal) सर से मिला था तो उन्होंने मेरी कमजोरी को देखते हुए मेरे ऊपर खास ध्यान दिया। आदर्श (Adarsh Kumar) कहते हैं कि मेरी कमजोरियों को पकड़कर सर ने इंटरव्यू में मेरी मदद की और मैंने सर के मार्गदर्शन में ही अपनी कमजोरियों में सुधार किया। वहीं, डॉ. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. मृत्युंजय मिश्रा (Dr. Mrityunjaya Mishra) सर मेरा सदैव ही मार्गदर्शन करते रहे और मेरा उत्साहवर्धन भी किया जिसका नतीजा अब सब लोगों के सामने हैं।
आदर्श (Adarsh Kumar) बताते हैं कि दोनों ही शिक्षक मुझे अलग से विशेष करके लिख-लिखकर बताते थे ताकि मैं बेहतर तरीके से समझ सकूं। वहीं, मेरे दोस्त सतीश गुप्ता और बृजेश गुप्ता ने भी मेरी तैयारी में पूरा सहयोग किया ताकि मैं बेहतर से बेहतर रिजल्ट ला सकूं।
दिव्यांगों (Disability) की मदद करना चाहते हैं आदर्श
आदर्श (Adarsh Kumar) कामयाबी के रूप में एक अफसर का पद पा गए हैं। आदर्श (Adarsh Kumar) कहते हैं कि समाज में दिव्यांगों को कभी कमजोर नहीं समझना चाहिए। उन्होंने कहा कि दिव्यांगों (Disability Person) के साथ इस कठिन परिस्थितियों में किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि समाज के लोगों को उनके प्रति अपना नजरिया अच्छा रखना चाहिए।
आदर्श (Adarsh Kumar) कहते हैं कि मैं अब एक बेहतर सर्विस में आ गया हूं और अब दिव्यांगों (Disability) की मदद करूंगा। उन्होंने (Adarsh Kumar) कहा कि मैंने अब उनकी सेवा करने का निश्चिय लिया है। आदर्श (Adarsh Kumar) ने कहा कि इस समय मैं खुद भी कई अभ्यर्थियों को सिविल सेवा की तैयारी में मार्गदर्शन कर रहा हूं। आदर्श कहते हैं कि मेरा सपना है कि मैं आईएएस (IAS) अफसर बनकर समाज के सामने प्रेरणा का स्त्रोत बनूं। मैं जिस वजह से आईएएस (IAS) मेंस से बाहर हुआ था उसे मैंने बेहतर कर लिया है और आगे अभी मेरा संघर्ष जारी है।
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