काबुलीवाला: टैगोर की कहानियों से इस तरह भारत का हिस्सा बन गए 'पश्तून'

रवींद्रनाथ टैगोर की कहानी 'काबुलीवाला' के किरदार आज भी कोलकाता की गलियों में हैं। वो केवल काबुलीवाला ही नहीं, वे अब पूरी तरह भारतीय बन चुके हैं। उनके सीने में जो दिल धड़क रहा है वो पूरी तरह हिंदुस्तानी है, लेकिन अतीत और उनका चेहरा अभी भी उस काबुल की याद दिलाते हैं जो रवींद्रनाथ टैगोर की कहानियों में था।
आज हम आपको उन उस काबुलीवालों की कहानी बताने जा रहे हैं जो सदियों पहले भारत आए तो थे व्यापार करने, लेकिन आज वो पूरी तरह इस देश का हिस्सा बन चुके हैं। कोलकाता की नसों में उनका प्यार दौड़ रहा है, यहां के लोग भी उन्हें खूब प्यार करते हैं और वो भी यहां पर हर धर्म के लोगों के साथ पूरे भाईचारे के साथ रह रहे हैं।
रवींद्रनाथ टैगोर का 'काबुलीवाला'
कंधे पर मेवों की झोली लटकाए, हाथ में अंगूर की पिटारी लिए एक लंबा सा काबुली धीमी चाल से सड़क पर जा रहा था। जैसे ही वह मकान की ओर आने लगा, मिनी जान लेकर भीतर भाग गई। उसे डर लगा कि कहीं वह उसे पकड़ न ले जाए। उसके मन में यह बात बैठ गई थी कि काबुलीवाले की झोली के अंदर तलाश करने पर उस जैसे और भी दो-चार बच्चे मिल सकते हैं। काबुली ने मुस्कुराते हुए मुझे सलाम किया। मैंने उससे कुछ सौदा खरीदा। फिर वह बोला, 'बाबू साहब, आप की लड़की कहां गई? मैंने मिनी के मन से डर दूर करने के लिए उसे बुलवा लिया। काबुली ने झोली से किशमिश और बादाम निकालकर मिनी को देना चाहा पर उसने कुछ न लिया। डरकर वह मेरे घुटनों से चिपट गई। काबुली से उसका पहला परिचय इस तरह हुआ। कुछ दिन बाद, किसी ज़रुरी काम से मैं बाहर जा रहा था। देखा कि मिनी काबुली से खूब बातें कर रही है और काबुली मुसकराता हुआ सुन रहा है। मिनी की झोली बादाम-किशमिश से भरी हुई थी। मैंने काबुली को अठन्नी देते हुए कहा, 'इसे यह सब क्यों दे दिया? अब मत देना।' फिर मैं बाहर चला गया। कुछ देर तक काबुली मिनी से बातें करता रहा। जाते समय वह अठन्नी मिनी की झोली में डालता गया। जब मैं घर लौटा तो देखा कि मिनी की मां काबुली से अठन्नी लेने के कारण उस पर खूब गुस्सा हो रही है। काबुली प्रतिदिन आता रहा। उसने किशमिश बादाम दे-देकर मिनी के छोटे से ह्रदय पर काफ़ी अधिकार जमा लिया था। दोनों में बहुत-बहुत बातें होतीं और वे खूब हंसते। रहमत काबुली को देखते ही मेरी लड़की हंसती हुई पूछती, 'काबुलीवाले, ओ काबुलीवाले! तुम्हारी झोली में क्या है?'
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आज का 'काबुलीवाला'
करीब 100 साल पहले काबुल से व्यापारी के रूप में ये लोग यहां काजू, किश्मिस, पिस्ते लेकर आए। हालांकि शुरू में ये लोग एक विदेशी, अप्रवासी की तरह यहां रहते थे, लेकिन आज ये लोग कोलकाता में बड़े व्यापारी बन चुके हैं और यहीं के हो गए हैं। कोलकाता में काबुलीवाला से रहने वाले ये लोग जहां रहते हैं उसे 'खान कोठी' के नाम से जाना जाता है। 101india.com ने इन काबुलीवालों पर एक स्टोरी की जिसे हम यहां शेयर कर रहे हैं।
एक परिचय: काबुलीवाला
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