रेलवे ट्रैक पर पड़े घायल की मदद के लिए इस आदमी ने रूकवा दी ट्रेन
अगर हम सभी अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को सही से निभाएं तो कई बार दूसरों की जिंदगी तक बच जाती है। ऐसा ही कुछ किया मुंबई के श्रवण तिवारी ने। एक आदमी की जान बचाने के लिए वो पूरे सिस्टम से लड़े जबकि वो उनके लिए अजनबी था।
दस फरवरी की रात बजे जब मैं मुंबई के चरनी रोड रेलवे स्टेशन से अपने घर लौट रहा था, मैंने देखा एक आदमी प्लेटफॉर्म नम्बर 2 के ट्रैक पर पड़ा है। उसका आधा शरीर ट्रैक पर था अगर ट्रेन उस ट्रैक पर आ जाती तो उसका शरीर टुकड़ों टुकड़ों में कट जाता। बहुत से लोग उस ट्रैक से गुजर रहे थे लेकिन हर कोई इसे नजरअंदाज कर रहा था। मैं हैरान था जब उसके पास गया मैंने देखा कि उसके सिर, नाक और हाथ से खून निकल रहा था। मैंने सोचा कि शायद ये मर चुका है लेकिन जब मैंने उसके सांसें चेक की तो वो चल रही थी। दूसरे की क्षण मैंने से फैसला किया कि मैं कैसे भी करके उसकरी जान बचाऊंगा।
मुझे इस बात से बहुत तकलीफ हो रही थी किसी ने भी उसे अब तक ट्रैक से क्यों नहीं उठाया था। मैं ट्रेन के सामने खड़ा हो गया और मैंने कहा कि मैं तब तक कोई ट्रेन नहीं जाने दूंगा जब तक ट्रैक से इस आदमी का उठाया नहीं जाएगा। मैं यात्रियों पर चिल्लाया कि आओ मेरी मदद करो। कुछ लोग उनमें से आए भी जिन्होंने मेरी मदद की। मैं कुछ लोगों से कहा कि वो ट्रैक के पास खड़े हो जाए और ट्रेन को प्लेटफॉर्म पर आने से रोकें। ये सब करते हुए न ही कोई आरपीएफ का और न ही कोई दूसरा रेलवे स्टॉफ का कर्मचारी वहां चेक करने के लिए आया कि हो क्या रहा है। 15 मिनट बाद हम उसे वहां से निकाल पाए और अस्पताल ले गए।
पुलिस ने भी नहीं की मदद
इमरजेंसी में उसे एडमिट किया गया और प्राथमिक उपचार देने के बाद डॉक्टरों ने हमें पास के पुलिस स्टेशन में सूचना देने के लिए कहा। डॉक्टर ने कहा, मरीज अब खतरे से बाहर है, अगर आपने 5 मिनट भी और देर की होती तो हम इन्हें न बचा पाते। जब मैंने डॉक्टर से पूरा इलाज करने को कहा तो उन्होंने कहा कि इसका पूरा खर्च कौन उठाएगा। मैंने सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का हवाला देते हुए कहा कि ऐक्सीडेंट में मरीज का मुफ्त में इलाज करना अस्पताल की जिम्मेदारी है। 45 मिनट बाद पुलिस घर आई, मरीज के बारे में कुछ पूछने के बजाय वो मुझसे ही सवाल करने लगी।
- तुम उसके पास क्यों गए।पुलिस का इंतजार क्यों नहीं किया। आरपीएफ वाले आने वाले थे।बॉडी का क्यों टच किया, क्यों ला यहां पर।अब तुमको हमारे साथ चलना पड़ेगा और भी कई फर्जी के सवाल।
मैं पुलिस को बताने की कोशिश की लेकिन मेरी वो मेहनत खराब गई। अस्पताल के अंदर उपद्रव मच चुका था, जो पुलिस मुझसे पूछताछ कर रही थी उसने सीनियर ऑफिसर को फोन किया। मुझे लगा था कि सीनियर ऑफिसर कुछ सेंस वाली बात करेगा। लेकिन उसने भी मुझे गलत साबित करने की पूरी कोशिश की। तब तक लगभग 100 पुलिस वाले वहां इकट्ठा हो गए और पुलिस के इस बर्ताव पर वो नाराज होने लगे। बाद में पुलिस ने अपनी गलती स्वीकारी। मैं मरीज के घर वालों से मिलने के बाद बाहर आ गया।
पंजाब की एक महिला ने मुझे बुलाया और कहा, जब मेरा दस साल का बेटा एक एक्सीडेंट के बाद मिला था तो उसे भी लोगों ने घंटों सड़क पर पड़ा रहने दिया था किसी ने उसकी मदद नहीं की थी। प्लीज आप आगे अइए और दुनिया को बताइए कि पुलिस से डरने की जरूरत नहीं है। ये मुख्य कारण थी कि मैंने टीवी चैनलों को इंटरव्यू देने से शुरू किए। मेरा मकसद लोगों तक ये मैसेज पहुंचाना था कि पुलिस से न डरें, ऐक्सीडेंट में घायल की मदद करें।
दो दिन बाद मुझे चर्चगेट पुलिस स्टेशन से एक सीनियर पुलिस ऑफिसर की कॉल आई। ऑफिसर ने मेरी प्रशंसा की और दूसरे पुलिस वालों के बर्ताव के लिए माफी मांगी। मैंने उनसे जिम्मेदार ऑफिसरों के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा जिससे उन्हें अपनी गलती का एकसास हो। दूसरे दिन हम पुलिस स्टेशन गए और उन पुलिस वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई जिन्होंने अपनी ड्यूटी के साथ न्याय नहीं किया। मैं सबसे ये विनती करता हूं कि ऐक्सीडेंट के दौरान घायल व्यक्ति की तुंरत मदद करें इससे किसी की जान बच सकती है।
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