गांव में नहीं था कोई स्कूल तो इस व्यक्ति ने अपने घर में खोल दी पाठशाला
जब इंसान कुछ करने की ठान ले तो रास्ते उसे अपने आप ही दिखने लगते हैं। ऐसा ही कुछ हुआ एक यूपी के रामपुर गाँव के रहने वाले केशव के साथ। केशव का सपना था कि उनके गाँव के बच्चे भी पढ़ें और आगे बढ़ें लेकिन गाँव में कोई स्कूल नहीं था। इस सपने को पूरा करने के लिए केशव अकेले ही निकल पड़े।
वर्ष 1989 में एक व्यक्ति उत्तर प्रदेश के रामपुर गाँव के हर घर में एक उद्देश्य के साथ जाता है। गाँव वालों से बातचीत करके उन्हें शिक्षा के महत्व के बारे में बताता है। ये उस गाँव की कहानी है जहां कोई स्कूल नहीं था लेकिन उसके बाद भी गाँव वालों ने उसकी बात में कोई दिलचस्पी ने जताई और न ही शिक्षा जरूरी है वाले विचार का समर्थन किया। लेकिन फिर भी केशव सरन ने हार नहीं मानी, गाँव में स्कूल का उनका सपना जिंदा रहा और उन्होंने वो कर दिखाया जो शायद ही किसी ने सोचा हो।
आज अपने बेटे अैर बहू के साथ वो रामपुर में एक स्कूल चला रहे हैं जिसमें इस समय 1,320 बच्चे पढ़ने आते हैं और इनमें से भी 670 लड़कियां हैं। केशव ने इस स्कूल को बनाने के लिए बहुत संघर्ष किया लेकिन आखिरकार वो सफल हुए। जब उन्हें गाँव का प्रधान चुना गया था तभी उनके दिमाग मे गाँव के विकास को लेकर कई सारी योजनाएं थीं जिसमें स्कूल के और आगे बढ़ाना भी एक था।
केशव ने सोचा क्यों न वो अपने घर में ही बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दें। शाम को केशव अपने घर के कमरों में कक्षाएं चलाने लगे,पहले कुछ दिन तो दो, चार बच्चे ही पढ़ने आते थे। लेकिन धीरे धीरे इनकी संख्या बढ़ने लगी। और अब धीरे धीरे कुछ युवा भी रूचि लेने लगे वो बच्चों को पढ़ाने लगे। जब छात्रों की संख्या धीरे धीरे बढ़ने लगी तो घर इस स्कूल के लिए छोटा पड़ने लगा। धीरे धीरे ये क्लास पास के चौपाल में लगने लगी, बच्चे और टीचर दोनों की संख्या अब बढ़ चुकी थी। स्कूल अपनी गति तेज पकड़ रहा था और इसी बीच सरकार का ध्यान इस स्कूल की तरफ गया और उन्होंने स्कूल को 'जूनियर हाई स्कूल' का टैग दे दिया गया, जो कि आज केशव इंटर कॉलेज के रूप में प्रसिद्ध है।
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