इंजीनियरिंग छोड़कर किसान बना ये युवा, 300 से ज्यादा देसी सब्जियों की करता है खेती
तमिलनाडु के डिंडिगुल जिले के कुटियागौंडनपुडुर गांव में अधियागई परमेश्वरन का 6 एकड़ का खेत है। यह जगह यहां के ओडनचत्रम क्षेत्र में आती है, जहां खेत की सिंचाई के लिए पानी की बहुत कमी है, लेकिन एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग छोड़कर खेती को चुनने वाले 29 साल के परमेश्वरन को इस बात का पूरा भरोसा था कि वो खेती में कुछ अच्छा करेंगे। उनका ये भरोसा पूरा भी हुआ क्योंकि वह यहां ऐसी फसल उगा रहे हैं जो इस क्षेत्र की देसी किस्में हैं और यहां सूखे की स्थिति में भी आसानी से उग सकती हैं।
परमेश्वरन का जन्म एक किसान परिवार में हुआ और बचपन से ही उन्होंने अपने परिवार को सूखे से जूझते हुए देखा। हालांकि, उनके माता-पिता ने उनकी पढ़ाई में कोई कमी नहीं रखी और उन्हें इंजीनियरिंग करवाई, लेकिन परमेश्वरन को अपनी मिट्टी से प्यार था और वो वैसा ही बना रहा। बेटर इंडिया से बात करते हुए परमेश्वरन कहते हैं कि जींस, वातावरण और मेरे पैशन की वजह से मैंने इंजीनियरिंग के चौथे साल में पढ़ाई छोड़ दी और एक फुल टाइम ऑर्गेनिक फार्मर बन गया।
उनके परिवार के ज्यादातर लोग उनके इस फैसले से परेशान थे। वह नहीं चाहते थे कि उनका बेटा पढ़ने के बाद भी आरामदायक जिंदगी को छोड़कर मिट्टी में जूझता रहे। वह कहते हैं कि शुरुआत में मेरे परिवार ने बिल्कुल वैसे ही बर्ताव किया, जैसा शायद किसी भी बच्चे का परिवार करता, लेकिन अब जब वो मेरी इस यात्रा को देखते हैं तब वे खुश होते हैं और उन्हें मेरे फैसले पर गर्व होता है। परमेश्वरन बताते हैं कि मेरे माता-पिता के अलावा मेरी बीवी कायर भी इस पूरे सफर में एक मजबूत खंभे की तरह मेरे साथ खड़ी रही।
यह भी पढ़ें: कभी पैसों की कमी के चलते कैंब्रिज में न पढ़ पाने वाले आनंद कुमार, अब देंगे लेक्चर
2014 में परमेश्वरन ने 6 एकड़ जमीन पर जैविक खेती करना शुरू किया। वह कृषि वैज्ञानिक, एनवॉरमेंटल एक्टिविस्ट और जैविक किसान जी नम्मालवर से बहुत प्रेरित थे। उन्होंने खेती शुरू करने से पहले करूर के वनगम में एक वर्कशॉप भी अटैंड की। वहां एक्सपर्ट्स से उन्होंने कई चीजें सीखें। इत्तेफाक से यह वह वक्त तक जब बीटी बैंगन खबरों में चर्चा का विषय था। इसके बाद उन्होंने देसी बीजों को इकट्ठा करने का सफर शुरू किया। इसके लिए वे तमिलनाडु के कई गांवों में गए। किसानों और खेती के एक्सपर्ट्स से मिले और अपने साथ ढेर सारी जानकारी वापस लेकर आए। रसायन मुक्त फसल उगाने के साथ ही परमेश्वरन ने आधियागई (तमिल में इसका मतलब पहली बहार होता है) नाम से एक बीजों का बैंक बनाया, जिसमें 300 से ज्यादा देसी फलों और सब्जियों की प्रजातियों के बीज हैं। पिछले पांच से वो इन्हें इकट्ठा कर रहे हैं और इनके बारे में जानकारी जुटा रहे हैं। अब उन्होंने इन बीजों को तमिलनाडु के बाकी किसानों को बांटना भी शुरू किया है।
परमेश्वरन कहते हैं कि मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि तमिलनाडु में सिर्फ बैंगन की ही 500 से ज्यादा प्रजातियां हैं। इसी तरह भिंडी और बाकी कई सब्जियों की भी यहां कई प्रजातियां हैं। हमारी कोंगू बेल्ट में गुलाबी रंग की भिंडी होती है, लेकिन दुर्भाग्य से इनमें से ज्यादा प्रजातियां गायब हो रही हैं, क्योंकि लोगों ने इनकी खेती करना छोड़ दिया है। इसीलिए मैंने इन्हें संजोने के बारे में सोचा।
यह भी पढ़ें: इंजीनियरिंग पढ़ाने वाला टीचर कैसे बना भारत का अरबपति, पढ़ें पूरी स्टोरी
फिलहाल परमेश्वरन के सीड बैंक में 13 प्रजातियों के भिंडी के बीज, 30 प्रजातियों के बैंगन, 30 प्रजातियों की लौकी, 10 प्रजातियों का मक्का और क्लोव बींस, विंग्ड बीन्स, स्वॉर्ड बींस जैसी कई अनजानी प्रजातियों के बीज हैं। इनमें से कई प्रजातियों की सब्जी की खेती किसान सिर्फ अपने खाने के लिए करते हैं, वे उन्हें बेचते नहीं हैं। परमेश्वरन बताते हैं कि वह अपने खेत के तीन एकड़ हिस्से में मूंगफली की खेती करते हैं और बाकी के तीन एकड़ में देसी टमाटर, मिर्च, विंग्ड बींस, क्लोव बींस, स्वॉर्ड बींस, भिंडी, लौकी, बैंगन, करेला जैसे सब्जियों की कई प्रजातियों की खेती करते हैं।
देसी सब्जियां उगाने के लिए उन्हें खाद की भी जरूरत नहीं पड़ती। वह कहते हैं कि हमारा खेत सूखाग्रस्त एरिया में आता है। देसी बीजों में खुद में इतनी क्षमता होती है कि वे बीमारियों और कीड़ों से खुद को बचा सकें। इसके अलावा उन्हें खाद की भी जरूरत नहीं पड़ती। कभी-कभी थोड़ी पानी के छिड़काव से ही अच्छी फसल पैदा हो जाती है।
वह कहते हैं कि सिर्फ एक फसल उगाने की बजाय हम कई फसलें एक साथ उगाते हैं, इसलिए फसलों पर कीड़े लगना का खतरा भी कम हो जाता है और पेस्ट कंट्रोल की जरूरत नहीं पड़ती। परमेश्वरन खेती से कमाई करने के साथ ही लोगों को टेरेस गार्डन लगाना भी सिखाते हैं। वह 200 से ज्यादा जगह बागवानी की वर्कशॉप्स कर चुके हैं।
यह भी पढ़ें: 12 साल की उम्र में इस बच्चे ने लिखी 135 किताबें, सीएम योगी की जीवनी भी शामिल
वह कहते हैं कि चेन्नै और मदुरै जैसे शहरों के भीड़-भाड़ वाले गांवों में भी हम लोगों को बगीचा लगाने के लिए प्रेरित करते हैं। हमारी वर्कशॉप में लोगों को घर के पीछे या छत पर गार्डन लगाने के बारे में सिखाया जाता है। हम लोगों को अपने बीज बैंक से बीज देते हैं और जब वे उनका इस्तेमाल कर लेते हैं तो हम उनसे कुछ बाद उसी फसल के बीज लेकर फिर अपने बीज बैंक में जमा कर लेते हैं।वह कहते हैं कि मेरे माता-पिता के पास अपना खेत नहीं था। वह 40 साल से किराए पर खेत लेकर तमिलनाडु की 20 से ज्यादा जगहों पर खेती करते रहे। मेरा सिर्फ एक सपना है कि मेरा अपना खेत हो, जिसमें मैं सीड बैंक खोल सकूं। मुझे उम्मीद है कि जल्द ही ये सपना पूरा होगा।
अगर आप परमेश्वरन से किसी भी तरह की जानकारी चाहते हैं उनके फेसबुक पेज पर उनसे संपर्क कर सकते हैं।
इस सेक्शन की और खबरें पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें
संबंधित खबरें
सोसाइटी से
अन्य खबरें
Loading next News...