सुबह 3 बजे उठती थी और 24 किमी का सफर तय करके स्कूल जाती थी ये टॉपर

हम और आप अपने बच्चों को पढ़ाई के लिए ज्यादा से ज्यादा समय देना चाहता है। बच्चों का समय बर्बाद न हो इसके लिए भी बच्चों को आने-जाने की बेहतर से बेहतर सुविधा उपलब्ध कराने की कोशिश करते हैं। ताकि बच्चे अधिक से अधिक नंबर पा सके। लेकिन सोचिए अगर प्रतिदिन साइकिल से 24 किमी जाना और आना हो तो कितना समय बर्बाद होता है। अाने जाने में समय बर्बाद करने के बाद भी उस बेटी ने इतिहास रच दिया है। हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड की टॉपर दिव्यांशी राज की।
अपने प्रदेश में टॉप करके दिव्यांशु राज ने यह साबित कर दिया कि अगर हौसला हो तो मुश्किलें चाहे जितनी भी क्यों न हो, लेकिन इतिहास रचा दिया। प्रतिदिन 24 किलोमीटर स्कूल जाने का सफर तय करने वाली स्कूल जाने की तैयारी के लिए सुबह 3 बजे उठ जाती थी। पहाड़ों की वादियों से होकर प्रतिदिन वह अपने भाई के साथ स्कूल जाती थी और उसकी मेहनत रंग लाई और उसने 98.40 प्रतिशत अंक हासिल करके 12वीं बोर्ड में प्रदेश में टॉप किया है। दिव्यांशी की इस कामयाबी पर उसकी हर तरफ तारीफ हो रही है। पूर्व विधायक डॉ. शैलेंद्र मोहन सिंघल ने विद्यालय पहुंचकर इंटर की प्रदेश टॉपर छात्रा दिव्यांशी राज को बधाई दी। उन्होंने कहा कि यदि भविष्य में छात्रा कोचिंग करना चाहे तो वह एक लाख रुपये की सहायता देंगे।
भाई के साथ साईकिल से जाती थी दिव्यांशी
ऊधमनगर जिले के रामलाल सिंह चौहान सरस्वती विद्या मंदिर महुवाडाबरा की छात्रा दिव्यांशी राज ने उत्तराखंड में टॉप किया है। अब उसका आगे का सपना राज प्रशासनिक अधिकारी बनकर देश सेवा करना है। दिव्यांशी के पिता सुरेंद्र सिंह ग्राम असालतपुर टांडा, ठाकुरद्वारा, मुरादाबाद (उप्र) के निवासी हैं। वह स्यौहारा, बिजनौर चीनी मिल में आइटी विभाग में लिपिक हैं। माता सरिता देवी कुशल ग्रहणी हैं। छात्रा असालतपुर से अपने भाई मनीष कुमार के साथ साइकिल से 24 किमी का सफर कर रोजाना महुआडाबरा स्थित स्कूल आती हैं। मनीश इसी विद्यालय में कक्षा आठ का छात्र है। छात्रा ने सफलता का श्रेय माता-पिता व गुरुजनों को दिया। बता दें कि दिव्यांशी ने हाईस्कूल की परीक्षा में भी प्रदेश की मेरिट में सूची में 93.06 प्रतिशत अंकों के साथ 13वां स्थान हासिल किया था।

गांव में पढ़ाई करके तोड़ा ये मिथक
अक्सर ये कहा जाता है कि गांव में रहकर पढ़ाई नहीं की जा सकती है। गांव में पढ़ाई का बेहतर माहौल नहीं होता है, लेकिन आपको बता दें कि दिव्यांशी ने गांव में ही रहकर पढ़ाई की और पूरे प्रदेश में टॉप किया है। असालतपुर टांडा की दिव्यांशी पहले सुबह स्कूल जाती थी। इसके बाद वह तीन कोचिंग करती थी। दिव्यांशी ने बताया कि उसने रोजाना छह घंटे बिना तनाव के पढ़ाई की। मैं पढ़ने के लिए व समय से स्कूल जाने के लिए हर दिन सुबह साढ़े तीन बजे उठ जाती थीं। दिव्यांशी बताती हैं कि घरवालों ने भी उसे काफी सपोर्ट किया। पढ़ाई की खातिर घर में टीवी तक नहीं लगवाया। दिव्यांशी ने भी सोशल मीडिया फेसबुक और व्हाट्सएप से दूरी बनाकर रखी। दिव्यांशी अपने गांव से स्कूल और कोचिंग आने जाने के लिए साइकिल का इस्तेमाल करती थीं। दिव्यांशी ने बताया कि वे रोजाना करीब 24 किलोमीटर साइकिल चला स्कूल और कोचिंग क्लास अटेंड करने जाती थीं। गांव में पढ़ाई के दौरान कुछ समस्या आई लेकिन उन समस्याओं के बीच में भी अपनी कामयाबी का रास्ता दिव्यांशी ने निकाल लिया। गांव में बिजली की समस्या रहती थी तो वह बैट्री से पढ़ाई करती थीं।
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