13 साल की उम्र में 30 रुपए लेकर पहुंचे थे मुंबई, आज सचिन भी इनके रेस्रां के खाने के दीवाने
कर्नाटक के कुंडापुरा में जन्मे नारायण को मुंबई की चमक धमक बचपन से ही लुभाती थी। उनके दिमाग में चलता रहता था कि मुझे मुंबई जाकर वहीं काम करना है। 1967 में जन्मे नारायण जब 13 साल के थे, तभी उन्होंने पढ़ाई छोड़कर मुंबई जाने का फैसला कर लिया और इस काम में उनका साथ दिया उनकी दादी ने।
मिला वेटर का काम
नारायण का परिवार आर्थिक रूप से बहुत अच्छा नहीं था। घर का खर्च खेती से ही चलता है। वेबसाइट वीकेंड लीडर के मुताबिक, नारायण बताते हैं, ऐसे में जब मैंने मुंबई जाकर काम करने की इच्छा जताई तो मेरी दादी तैयार हो गईं और उन्होंने मुझे 30 रुपये दिए। वो पैसे लेकर मैंने मुंबई की बस पकड़ ली। वहां सांताक्रूज में मेरी बुआ रहती थीं इसलिए रहने का ठिकाना मिल गया। एक रिश्तेदार की मदद से नारायण को दक्षिण मुंबई के बलार्ड एस्टेट स्थित एक ऑफ़िस कैंटीन में वेटर की नौकरी मिल गई।
खोला अपना रेस्त्रां
नारायण बताते हैं कि मेरे जिस रिश्तेदार ने मुझे यह नौकरी दिलवाई थी, वो नहीं चाहते थे कि मैं अपनी पढ़ाई छोड़ दूं। इसीलिए उन्होंने कैंटीन मालिक से बात कर यह सुनिश्चित कर लिया था कि मैं एक रात्रि स्कूल में पढ़ाई कर सकूं। सुबह 9 से शाम के 6 बजे तक मैं वहां काम करता था और महीने में इसके मुझे 40 रुपये मिलते थे। कुछ महीनों बाद उन्होंने अपनी पहली नौकरी छोड़ दी और लोक निर्माण विभाग की कैंटीन में काम करने लगे। वहां उन्होंने दो साल काम किया। तब तक वो दसवीं में आ चुके थे। तभी उन्हें कफ़ परेड क्षेत्र में 25,000 रुपए के निवेश से अपनी कैंटीन खोलने का मौका मिला, जिसमें 20 लोगों के बैठने की व्यवस्था थी।अगले कुछ सालों तक कैंटीन चलाने के साथ-साथ उन्होंने महेश लंच होम रेस्तरां के मालिक सुरु करकेरा के लिए भी काम किया।
आइस्क्रीम की दुकान ने बदल दी जिंदगी
साल 1990 में उनकी जिंदगी को एक नई दिशा मिली और फिर सबकुछ बदल गया। बाघुभाई पटेल नामक शख़्स ने नारायण को दक्षिण मुंबई के कैम्प्स कॉर्नर की अपनी आइसक्रीम दुकान चलाने का प्रस्ताव दिया, क्योंकि वो उसे अच्छी तरह नहीं संभाल पा रहे थे। उस दुकान का नाम था शिव सागर। नारायण ने दुकान संभालने के लिए बाघुभाई के साथ साझेदारी कर ली। दोनों के बीच समझौता हुआ कि दुकान से होने वाले फ़ायदे का 25 प्रतिशत नारायण रखेंगे और 75 प्रतिशत हिस्सा बाघुभाई को जाएगा।
3 लाख से 1 करोड़ पर पहुंचा टर्नओवर
नारायण बताते हैं कि वह दुकान बड़ी थी और काफी अच्छा व्यवसाय भी कर रही थी, इसीलिए मैंने उसी दुकान में पाव-भाजी बेचना भी शुरू कर दिया, जिसे लोग पसंद करने लगे। बहुत जल्द हम एक पूर्ण शाकाहारी रेस्तरां बन गए, हमारे अधिकतर ग्राहक गुजराती थे। पहले शिव सागर का सालाना कारोबार जो महज 3 लाख रुपए था, वह नारायण के व्यवसाय संभालने के बाद साल भर में 1 करोड़ रुपए पहुंच गया। साल 1990 से 1994 के बीच का समय उनके लिए बेहद खास रहा। उन्होंने शिव सागर में बड़ी हिस्सेदारी खरीद ली थी। हालांकि बाघुभाई के पास अब भी थोड़ी हिस्सेदारी थी, लेकिन नारायण शिव सागर के मालिक बन चुके थे। चर्चगेट में अपनी नई शाखा खोलने के लिए वे रोज़ लगभग 16 घंटे काम किया करते थे। साल 1994 में ही उन्होंने शादी भी कर ली।
सचिन तेंदुलकर और जैकी श्रॉफ को पसंद है यहां का खाना
आज मुंबई शहर और उपनगरों में उनके रेस्तरां 16 शाखाएं हैं। साथ ही महेश लंच होम (एमएलएच) के संस्थापक व उनके पिता-तुल्य सुरु करकेरा के लिए भी वो उसमें 50 प्रतिशत का निवेश कर चुके हैं। नारायण कहते हैं, “मेरा ध्यान मुख्य रूप से खाने के स्वाद पर केंद्रित रहता है। खाने की अच्छी गुणवत्ता बनाए रखने के लिए हमारे पास पेशेवर, कॉर्पोरेट रसोइये हैं और कई हस्तियों को शिव सागर का खाना पसंद है, जैसे सचिन तेंडुलकर हमारे यहां पाव-भाजी स्पेशल ऑर्डर करते हैं, तो जैकी श्रॉफ को इडली व चटनी पसंद है। मुंबई की रणजी टीम भी चर्चगेट स्थित शिव सागर आकर खाना खाती है।” साल 1990 से शुरू हुई नारायण की कंपनी शिव सागर फूड्स ऐंड रिज़ॉर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड का सालाना कारोबार इस बार 20 करोड़ रुपए का आंकड़ा पार कर चुका है।
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