अनाथालय में रहकर की पढ़ाई, चपरासी से बने आईएएस
वैसे तो हर वर्ष यूपीएससी में परीक्षा पास करने वाले अभ्यर्थियों में से कई की कहानी हम सबके लिए प्रेरणा होती है, लेकिन इस कहानी में कुछ अलग है। ये कहानी बिल्कुल वैसी ही है जैसी बचपन में हमें हमारे पापा-मम्मी सुनाते थे। एक ऐसे बच्चे की कहानी जो तमाम अभावों से जूझते हुए सफलता की इबारत लिखता है। जिसके पास न मां-बाप का साया होता है और न अपने सपनों को पूरा करने के लिए कोई सहूलियत। जो हालातों से जूझता है, उनसे लड़ता है, छोटी-छोटी चीजों को सहेज कर उनसे अपने लिए तरक्की के रास्ते बनाता है। यह कहानी है नागालैंड कैडर के आईएएस अफसर मोहम्मद अली शिहाब की।
2011 बैच में आईएएस परीक्षा पास करने वाले मोहम्मद अली शिहाब को जब कुछ पढ़ने लिखने की समझ आई तो जिंदगी अनाथालय में गुजर रही थी। यहां वह आठ बजे सो जाते और रात में उठकर चादर ओढ़ करके टाॅर्च की रोशनी में पढ़ाई करते थे ताकि दोस्तों की नींद में कोई खलल न पड़े। मोहम्मद अली शिहाब में चाह थी तभी तो सरकारी स्कूल में पढ़ाई करने के बाद चपरासी की नौकरी मिली तो आगे बढ़ने की ललक जगी और फिर ग्राम पंचायत में क्लर्क बन गए। क्लर्क की नौकरी के दौरान ही उन्होंने संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा की तैयारी करना शुरू कर दिया। लगातार तीन बार असफल होने के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। आखिरकार वह दिन आया जब उन्होंने एक दिन अकाल्पनिक पद हासिल कर लिया।
मोहम्मद अली शिहाब का जन्म केरल के मल्लापुरम जिले के कोंडोट्टी के पास एडवन्नाप्परा के एक गांव में हुआ था। पढ़ाई से घरबाने वाले बच्चों में वह भी शामिल थे। एक मस्तमौला बच्चे की तरह वह भी कोई न कोई बहाना ढूंढ ही लेते थे कि स्कूल न जाना पड़े। पिता जी के धंधे में शिहाब भी हाथ बंटाते थे और 80 के दशह में उन्होंने भी यही सपना देखा था कि गांव में उनकी अपनी एक दुकान हो। पिता जी के अस्थमा से पीड़ित होने के कारण वह उनकी पान की दुकान तो कभी बांस की टोकरी बेचने के लिए जाते।
जब वह 11 साल थे तभी उनके पिता कोरोत अली की मौत हो गई और पांच बच्चों के लालन-पालन की सारी जिम्मेदारी मां फातिमा पर आ गई। घर की आर्थिक स्थिति सही न होने के कारण उन्होंने अपने एक बेटे और दो बेटियों को कोज़हिकोडे के एक अनाथ आश्रम में छोड़ने के लिए मजबूर हो गईं। शिहाब यहीं पर रहने लगे और अपनी जिंदगी के दस साल उन्होंने यहीं पर बिताए।
एक न्यूज वेबसाइट को दिए गए साक्षात्कार में उन्होंने बताया कि कैसे एक अनाथालय में रहने से लेकर भारत के एक पिछड़े जिले में कार्यरत होना उनके जीवन में एक सर्कल जैसा है। शिहाब ने बताया कि जब वे अनाथालय गए जीवन में बहुत बदलाव आया, उनके जीवन में जिस अनुशासन की कमी थी वह आया। संसाधन और अवसर सीमित थे, लेकिन चुनौतियां काफी थीं। बस अब एक ही चारा था और वह थी पढ़ाई।
वह पढ़ाई में लगातार आगे बढ़े और एसएसएलसी को अच्छे अंक के साथ पास किया। उसके बाद वे एक पूर्व-डिग्री शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में शामिल हो गए। शिहाब अच्छे कॉलेज से रेगुलर ग्रेजुएशन करना चाहते थे और लेकिन परिवार के साथ रहने के लिए वह गांव चले और यहां पर एक प्राथमिक स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया। अपनी सीमित शिक्षा में भी उन्होंने 21 राज्य स्तरीय लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं को पास किया। इसी दौरान उनकी नौकरी केरल जल प्राधिकरण में चपरासी के रूप में लग गई और उन्होंने नौकरी के दौरान ही कालीकट विश्वविद्यालय से बीए की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने बताया कि जब उनका ग्रेजुएशन पूरा हुआ तो उनकी उम्र 27 वर्ष हो चुकी थी। जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने सिविल सर्विस क्यों नहीं चुनी तो उन्होंने कहा कि उन्हें सिविल सर्विस के बारे में ज्यादा नहीं पता था और वे निश्चित नहीं थे जब तक उन्होंने अपनी तैयारी शुरू नहीं की थी।
भाई के कहने पर शुरू की यूपीएससी की तैयारी
शिहाब के भाई डॉक्टर गफूर जो कि आयुर्वेद के डॉक्टर हैं उन्होंने मुझसे सिविल सर्विस का टेस्ट देने के लिए कहा। शिहाब की मानें तो इसमें आने से पहले उन्हें पता ही नहीं था कि मैं क्या कर रहा हूँ।” जब एक स्थानीय दैनिक अखबार ने उनके पीएससी पास करने की खबर को छापा और उनसे पूछा कि आपका उद्देशय क्या है? तो उनके पास कोई जबाव नहीं था और जब लगातार यही सवाल उनसे पूछा जाने लगा तो वे कहते कि वे सिविल सर्विस करना चाहते हैं।
वह कहते हैं कि लगातार अखबारों में छपने वाली मेरी खबरों के बारे में जानकारी उनके अनाथालय के अफसरों को हुई थी उन्होंने मेरी पूर्ण रूप से आर्थिक मदद देने की बात कही। उन्होंने बताया कि इस दौरान ही नई दिल्ली स्थित ज़कात फाउंडेशन ने केरल में उन प्रतिभागियों की परीक्षा रखी, जिनमें से चयनित होने वाले छात्रों को वे यूपीएससी की मुफ्त में तैयारी करवाते। मैंने भी परीक्षा पास की और नई दिल्ली में तैयारी करने चला आया।
30 वर्ष निकल गए परीक्षा को समझते-समझते
जब उन्होंने ग्रुजेशन किया तो उनकी उम्र 27 साल की थी और 2007 और 2008 में प्रीलिम्स टेस्ट दिया तो उनकी उम्र 30 साल के पार कर गई। इसी दौरान जब शिहाब को पता था कि उनके पास ज्यादा मौके नहीं बचे हैं। उधर, परिवार की भी जिम्मेदारी बढ़ने लगी थी। उनके एक नौ माह के बच्ची के साथ ही साथ परिवार की भी जिम्मेदारी थी। ऐसे में वह विचलित होने लगे, लेकिन धैर्य की परीक्षा में शिहाब सफल हुए और आखिरकार वह समय आया कि जब वह आईएएस अफसर बने।
मलयालम में दी परीक्षा
सिविल परीक्षा के दौरान उन्हें मलयालम के अलावा और कुछ नहीं आता थी। उन्होंने मुख्य परीक्षा अपनी मातृभाषा, मलयालम में दी और इंटरव्यू ट्रांसलेटर की मदद से दिया। साल 2011 में अपने लगातार प्रयासों से और अपने शुभचिंतकों की दुआओं से आखिरकार तीसरी बार में उन्होंने यूपीएससी पास कर लिया। उन्होंने बताया, “ज़कात में मेरी तैयारी और बाद में लाल बहादुर शास्त्री नेशनल अकडेमी ऑफ़ एडमिनिस्ट्रेशन में मेरी ट्रेनिंग ने मुझे इस नौकरी क हर एक पहलु से अवगत करवाया। यहां तक कि हमें हमारे कैडर की भाषा भी सिखाई गयी, जो कि मेरे केस में नागालैंड था।” शिहाब दावा करते हैं कि वे नागमीज़ उतना ही अच्छे से बोल पाते हैं जितना कि अपनी मातृभाषा।
इन पदों पर रह चुके हैं मोहम्मद अली शिहाब
2011 में चयनित होने के बाद वह उन्हें कैडर मिला तो वह उनको पहली पोस्टिंग दीमापुर जिले में असिस्टेंट कमिशनर के रूप में मिली। उन्होंने कोहिमा में भी सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट के रूप में भी सेवाएं दी हैं, म्यांमार से लगे मोन ज़िले के अतिरिक्त डिप्टी कमिशनर, नागालैंड सचिवालय के विद्युत विभाग में संयुक्त सचिव और प्रोजेक्ट डायरेक्टर आईएफएडी (कृषि विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय निधि)। उन्हें नवंबर 2017 में कैफाइर में स्थानांतरित कर दिया गया था, जिसे प्रधानमंत्री और नीति आयोग ने देश के 117 महत्वाकांक्षी जिलों में से एक घोषित किया था। “यह भारत के सबसे दूरस्थ और दुर्गम जिलों में से एक है।
यहां पर दीमापुर से जाने में कम से कम 12 से 15 घंटे लग जाते हैं लेकिन इसके बाद भी यहां पर शिहाब मेहनत के साथ काम कर रहे हैं। उनके नेतृत्व में, यह जिला अब विकास की ओर कई कदम उठा रहा है। “मैं एक अनाथ था और मेरा यह जिला भी अनाथालय के जैसा है। 11 साल की उम्र में अपने पिता की मौत के बाद मेरा जीवन बाकी सबसे अलग हो गया और मेरा जिला भी बाकी दुनिया से एकदम अलग है। लेकिन सीमित अवसरों और संसाधनों के बावजूद, यहां स्थानीय लोगों ने मुझे सिखाया है कि हर एक अवसर को उत्सव के जैसे मनाना चाहिए। कोई आश्चर्य नहीं, नागालैंड को त्योहारों की भूमि कहा जाता है। लेकिन हम आगे बढ़ने और ज़िले के पूर्ण विकास के लिए दृढ हैं।”

मोहम्मद अली शिहाब की आत्मकथा का विमोचन
पूरे सफर पर आत्मकथा भी लिख चुके हैं शिहाब
कठिनाईयों के दौर से गुजरकर यहां तक का सफर तय करने वाले इस आईएएस अफसर ने मलयालम में अपनी आत्मकथा भी लिखी है, जिसका नाम है ‘विरलाट्टम’ (जिसका मतलब है उंगलियां)। आखिर किस तरह से उन्होंने यहां तक सफर तय किया है इसको उन्होंने अपनी आत्मकथा में समझाने की पूरी कोशिश की है। यूपीएससी उम्मीदवारों को वह कहते हैं, “यूपीएससी, सबसे प्रतिष्ठित होने के अलावा, एक योग्यता आधारित परीक्षा भी है। अगर केरल से मेरे जैसे लड़के इसे पास करने के लिए सभी बाधाओं को पार कर सकते हैं, तो कोई भी कर सकता है। मैंने कभी सपना भी नहीं देखा था लेकिन इसके बाद भी मैं सफल रहा। अगर आप अपने पहले प्रयास में पास नहीं होते हैं तो आशा न छोड़ें। भारत एक बहुत बड़ा देश है। यहां अवसरों की कमी नहीं है। यदि आप सभी कड़ी मेहनत और दृढ़ता के साथ आगे बढ़ते हैं तो आप यकीनन सफल होंगें। मैं आप सभी को अपने सपनों को पाने के लिए बस शुभकामनायें दूंगा।”
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