कभी एक बांसुरी खरीदने के लिए नहीं थे पैसे, आज 120 देशों में है बिजनेस की पहुंच

एक बच्चा अपने जिले के प्रसिद्ध संगीतज्ञ से प्रभावित होता है और फिर बांसुरी के क्षेत्र में अपना करियर बनाना शुरू करता है। जबकि घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होती, लेकिन इसके बाद भी वह इस क्षेत्र में कदम बढ़ाता है और बांसुरी खरीदने का निर्णय लेता है। लेकिन जब बांसुरी लेने पहुंचता है, तो उसे वह डिजाइन नहीं मिलता है जो उसे चाहिए होता है फिर क्या वहीं से रख जाती है बाकले बांसुरी की नींव।
हालांकि इसके बाद भी सफलता नहीं मिली और उन्हें रोजीरोटी चलाने के लिए मिर्च तक बेचनी पड़ी थी। यह और कोई नहीं बल्कि कर्नाटक में गडग जिले के रहने वाले 39 वर्षीय रमेश बाकले थे। जिनके द्वारा निर्मित की जाने वाली बांसुरी अब दुनिया के प्रसिद्ध बांसुरीवादकों द्वारा पंसद की जाती है। रमेश 7 इंच से लेकर 45 इंच तक 32 प्रकार की बांसुरी तैयार करते हैं। आज रमेश दुनिया के 120 देशों में अपने गृहजनपद से बांसुरी की सप्लाई करते हैं।
बिन प्रशिक्षण के ही शुरू हुआ था बांसुरी बनाने का सफर

रमेश बाकेल को जब बांसुरी पंसद नहीं आई तो फिर यही से बांसुरी बनाने का संघर्ष शुरू कर दिया। लेकिन बैगर कोई प्रशिक्षण के। बिना प्रशिक्षण के उनके द्वारा शुरू किए गए इस काम में शुरूआत में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। उन्होंने इसके लिए प्रशिक्षण भी लेना शुरू किया लेकिन इसके बाद भी वह सही तरीके से बांसुरी नहीं बना पा रहे थे। उन्होंने कई बांसुरीवादों से भी सलाह ली। उनके द्वारा बार-बार बांसुरी बनाने के प्रयास के बाद भी वह अंतिम रूप से बांसुरी को नहीं बना पा रहे थे, लेकिन इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी, निरंतर प्रयास जारी रखा और धीरे-धीरे करके गुणवत्ता में सुधार हो गया। आज, रमेश हिन्दुस्तानी (छः छेद वाले) और कर्नाटिक (आठ छेद वाले) प्रकार के बांस के बांसुरी के प्रकार और 120 देशों के बांसुरीवादकों को आपूर्ति करते हैं। आज उनके काम की पहचान है, उनकी बांसुरी अच्छी धुन के साथ ही सौहार्द रूप से पूरी परिपूर्ण होती है।
मंजूनाथ के यहां पर शुरू की थी शिक्षा
बांसुरी की शिक्षा में प्रखर होने के लिए रमेश ने संगीतकार मंजूनाथ भट के यहां पर बांसुरी सीखना शुरू किया। इस दौरान उनके साथ कुछ ऐसी परिस्थिति आ गई कि उनको मिर्च भी बेचना पड़ा। वह कहती है कि 2008 में मुझे लगा कि मेरी बांसुरी संगीत की ट्यूनिंग के लिए उपयुक्त नहीं थी और इसलिए मैंने खुद को बांसुरी बनाने शुरू कर दिया। इस काम में भी मंजूनाथ ने मदद की। मंजूनाथ ने सुझाव दिया कि रमेश बांसुरी निर्माताओं और बांसुरीवादक से मिलने के लिए मैसूर जाए। रमेश बताते है कि मुझे नवीन कुमार ने मुझे 10बांस स्टिक्स दिए और मुझसे बांसुरी बनाने के लिए कहा। जब उन्होंने मेरे द्वारा किए गए बांसुरी बजाई, तो उनकी खुशी को कोई सीमा नहीं थी और उन्होंने बाद में कई संगीतकारों को अपना नाम बताया। इसके बाद से काम शुरू हो गया।
क्या है खास के रमेश की बांसुरी में

बांसुरी के सुरों की साधना सीखने के दौरान नहीं जब उन्हें जब अपने पंसद की बांसुरी नहीं मिली तो इसको ही बनाना शुरू कर दिया था। काफी प्रयास के बाद उनकी मेहनत रंग लाई और अब रमेश ने दो लोगों को रोजगार भी दे रखा है। आज रमेश के यहां पर बाकले बांसुरी 7 इंच से लेकर 45 इंच तक बनाई जाती है। सिर्फ यही नहीं वे 32 प्रकार की बांसुरियों को बनाते हैं। उनके यहां पर बनने वाली बांसुरी के लिए बांस का डंठल असम से आता है। वे बांसुरी बनाने से पहले 7 दिनों तक सरसों के तेल में भिगो कर रखते हैं। फिर वे रेत कागज के साथ पॉलिश करते है। इसके बाद फिर छेद करते हैं और उंगलियों के सहारे छेद को उड़ाते हैं। यही नहीं वे अब बांसुरियां संगीतकारों की मांग के अनुसार भी बनाते हैं। उनके यहां पर बांसुरियों की कीमत 500 से लेकर 3,500 रुपये तक की है।
रमेश के यहां पर रोजाना लगभग 20-25 बांसुरी बनाती हैं। रमेश के अनुसार "बांसुरी बनाना एक रचनात्मक काम है छेद बनाने के दौरान हमें सावधान रहना होता है।" वे कहते हैं कि मुझे नहीं पता कि मैं इसे कैसे सीखा। मैं इसे सिर्फ भगवान का उपहार मानता हूं। उनके अनुसार "बांसुरी को बहुत ही कुशल बनाने के लिए सूक्ष्म धुनों का निर्माण किया जाता है, जो कि रागों की अवधि के अनुरूप होता है। बांसुरी वादक शीतल गुंजटे कहते हैं, '' उनके दिल से गहरे मधुर धुन हमारे दिलों को छूते हैं, इसलिए हर बार जब हम बांसुरी की ज़रूरत होती हैं, तो हम रमेश से संपर्क करते हैं। ''
इन बड़े संगीतकारों को करते है सप्लाई
अब रमेश एआर रहमान की संगीत टीम के प्रवीण भगवानचिंडी को बांसुरी आपूर्ति करना शुरू किया। यही से उनका काम चल पड़ा। उनके नाम को लोकप्रियता मिलने लगी। अन्य राज्यों और देशों के संगीतकारों ने भी रमेश से संपर्क करना शुरू कर दिया। अब वे एआर रहमान संगीत समूह के अलावा, रमेश ने प्रसिद्ध संगीतकारों जैसे प्रवीण गोधंडी, पंड़ित वेंकटेश गोड्चिंडी, विकास चौधरी (यू के), सय्यद हुसैन (कनाडा), पंड़ित राजेन्द्र कुलकर्णी (पुणे), हिमेंद्र दीक्षित (अहमदाबाद), रमेश गुलानी (पुणे), मनिमरण सुब्रामैनियम (सिंगापुर) और शिराज अहमद (दुबई) सहित प्रसिद्ध संगीतकारों को बांसुरी की आपूर्ति करते हैं।
अब रमेश का है बांसुरी अकादमी बनाने का सपना
बांसुरी से रमेश का इतना लगाव है कि इसे अब वे कर्नाटक में इससे लोकप्रिय करना चाहते हैं। कर्नाटक में संगीत की शिक्षा बेहतर ढंग से देने के लिए उन्होंने तीन साल पहले, बांकले संगीत शिक्षा और कौशल विकास नाम से गुरुकुल सोसाइटी की शुरुआत की है। वे वर्तमान समय में अपनी इस गुरूकुल में 14 छात्रों को बांसुरी के धुनों की शिक्षा दे रहे हैं।
रमेश की माने तो "मैं पिछले कुछ सालों से छात्रों को प्रशिक्षण दे रहा हूं। लेकिन मेरा सपना गुरूकुल शैली में एक उचित बांसुरी अकादमी शुरू करना है जहां नए प्रयोग हो सकते हैं। सरकार ने शिक्षार्थियों और निर्माताओं को बांसुरी के लिए कुछ सुविधाएं मुहैया कराईं।" वे कहते हैं कि अभी तक सिर्फ देश में बांसुरी सिखाने के देश में महज दो ही संस्थान है। उन्होंने बताया कि "गुरुकुल मॉडल पर चलने वाले भुवनेश्वर और मुंबई में केवल दो बांसुरी प्रशिक्षण संस्थान हैं।" कर्नाटक में कोई भी ऐसा संस्थान नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार से मदद के लिए मैंने अने जिले के प्रभारी मंत्री एचके को विस्तृत रूप से इसका प्रस्ताव दिया है।
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