सॉफ्टवेयर डेवलपर बना ‘दुधारू’ किसान

हरिओम के माता-पिता चाहते थे बेटा इंजीनियर बने तो पहले ग्राफिक ऐरा, देहरादून से बीआईटी और फिर जयपुर राजस्थान जेएनयू से एमसीए। इसके बाद दिल्ली, बंगलूरू में सॉफ्टवेयर रिसचर्स की मोटी पगार वाली नौकरी। लेकिन हरिओम अपनी मिट्टी से जुड़कर कुछ करना चाहते थे। आखिर उन्होंने नौकरी छोड़ अपना काम करने का फैसला लिया। 2014 में पांच गायों से उन्होंने डेयरी शुरू की।
आज उनके पास 12 गायें और एक भैंस है। इनमें सायवाल, हरियाणवी, जर्सी, रेड सिंधी आदि नस्लें शामिल हैं। हरिओम ने अपना फार्म खुद डिजाइन किया। भूतल पर डेयरी फार्म, उसके ऊपर प्रथम तल पर मुर्गी पालन के लिए दो बड़े हाल बनाए गए हैं। जिसमें वे बायलर मुर्गियां पालते हैं। इसके अलावा भूतल में देसी मुर्गियों के लिए अलग बाड़ा बनाया गया। डेयरी के आंगन में ही मशरूम उत्पादन के लिए भूमिगत कमरे बनाए गए हैं। स्टोर और डेयरी में काम करने वाले कर्मियों के रहने की व्यवस्था अलग से की गई।
हरिओम की कहानी
ग्रामीण पृष्ठभूमि से निकलकर सॉफ्टवेयर डेवलपर और रिसचर्स तक का सफर। इसके बाद जड़ों की ओर वापसी। डेयरी उद्योग में मुकाम हासिल कर चुके इस नौजवान का अगला लक्ष्य एक हजार लोगों को रोजगार देने का है। आइये मिलते हैं दूसरे लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बने 33 वर्षीय हरिओम नौटियाल से। ग्राम बड़कोट, रानीपोखरी, देहरादून में हरिओम ने खेती किसानी की ऐसी पाठशाला तैयार की है, जिसे देखकर आप दाद दिए बगैर नहीं रह पाएंगे। हरिओम का डेयरी फार्म महज कुछ गाय भैंसों का एक बाड़ा नहीं, बल्कि इसे आप मॉडल कह सकते हैं। जहां, गाय-भैसों के अलावा, मुर्गी पालन, मशरूम उत्पादन भी किया जाता है। जिसकी बदौलत आज हरिओम प्रतिमाह सवा लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा कमा रहे हैं।
दूध-अंडा के अलावा चिकन की भी होम डिलीवरी
आमतौर पर दूध होम डिलीवरी के जरिए घर-घर में पहुंचता है, लेकिन हरिओम ने इस कांसेप्ट को आगे बढ़ाते हुए चिकन और अंडों की भी होम डिलीवरी शुरू की है, वह भी बाजार भाव से बेहद कम दाम पर। बाजार में इस वक्त 180 से 200 प्रति किलो चिकन बिक रहा है, जबकि हरिओम यही चिकन 130 प्रति किलो के हिसाब से घर पर उपलब्ध कराते हैं।
विदेशी गायों से देसी नस्ल की गाय फायदेमंद
हरिओम की मानें तो देसी नस्ल की गाय पालना फायदे का सौदा साबित होता है। देसी गाय दूसरी नस्ल की गाय के मुकाबले अधिक समय तक गाबिन होती हैं। इनमें बीमारियों का खतरा भी कम रहता है। देसी गाय का गोबर वर्मी कंपोस्ट, बायोगैस, अगरबत्ती बनाने के काम आता है। इसके अलावा मूत्र भी अर्क आदि बनाने के लिए अच्छे रेट पर बिक जाता है।
(अमर उजाला से साभार)
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