मानवता की मिसाल है पद्मश्री 'एम्बुलेंस दादा' करीमुल हक की कहानी

भारत में करीब 25 फीसदी लोग समय पर अस्पताल न पहुंच पाने के कारण दम तोड़ देते हैं! खासकर रोड एक्सीडेंट की घटनाओं में तो यह संख्या काफी होती है। पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में रहने वाले करीमुल हक के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।
उनकी मां की तबियत रात में खराब हुई और वो अस्पताल न पहुंच पाने के कारण करीमुल को छोड़कर हमेशा के लिए इस दुनिया से चली गईं। उसके बाद करीमुल ने जो किया वो अब मिसाल बन चुका है और सरकार ने इस बार उनको पद्म श्री के अवार्ड से नवाजा है।
बाइक एंबुलेंस बनाई
करीमुल के जीवन की इस सबसे बड़ी घटना ने उनको तोड़ दिया आर वो निराश रहने लगे। उनका इस बात की टीस रहती थी कि अगर मां समय पर अस्पताल पहुंच जाती तो बच जाती। यहीं से उनके जीवन को एक नई दिशा मिला और उन्होंने ऐसे लोगों की मदद करने की ठान ली। हालांकि उनके पास पैसों की कमी थी तो वो अपनी बाइक से सही लोगों को अस्पताल पहुंचाने का काम करने लगे। यहीं नहीं अस्पताल जाने से पहले अगर किसी को फर्स्ट एड की जरूरत पड़ती है तो वो भी करीमुल मुहैया कराते हैं।
बिना पैसे ले जाते हैं अस्पताल, अब तक 3000 की जान बचाई
शुरू में तो लोगों ने उनका मजाक उड़ाना शुरू किया कि भला 'बाइक एंबुलेंस' क्या चीज हुई। लेकिन जैसे-जैसे करीमुल लोगों के काम आते गए उनकी छवि बढ़ती गई, आज उनके इलाके में लोग उनको भगवान मानते हैं। किसी भी मुसीबत में कभी भी अगर किसी को अस्पताल जाना होता है तो करीमुल को याद करता है। सबसे बड़ी बात करीमुल इस काम के पैसे नहीं लेते। करीमुल अब तक अपने इस प्रयास से करीब 3000 लोगों को समय पर अस्पताल पहुंचाकर उनकी जान बचा चुके हैं।
बजाज ने करीमुल को दी बाइक एंबुलेंस
करीमुल अपने इस प्रयास से एक बार में एक ह मरीज को अस्पताल पहुंचा पाते थे, अगर एक साथ कई लोगों को अस्पताल जाना होता तो परेशानी होती थी। करीमुल की इस परेशानी को दूर करने के लिए बाइक बनाने वाली कंपनी बजाज ने करीमुल को एक बाइक गिफ्ट दी जिसे मॉडिफाइड करके एंबुलेंस का रूप दिया गया है। इसके बाद करीमुल ने अपने इस प्रयास को अपने जीवन के अंतिम दिन तक जारी रखना चाहते हैं।
करीमुल की कहानी उन्हीं की जुबानी
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