20 साल तक सब्ज़ी बेचने के बाद किया ऐसा काम कि आपको भी होगा गर्व

आपने सब्ज़ी बेचकर अपने परिवार की ज़रूरतों को पूरा करने वाले, बच्चों को पढ़ा -लिखाकर कुछ बड़ा बनाने वाले कई लोगों के बारे में सुना होगा लेकिन कहानी उन सब से अलग है। इतनी मेहनत एक-एक पाई जोड़कर इकट्ठा किए गए पैसों को दूसरों की सेवा में लगा देना वाकई बहुत मुश्किल होता है लेकिन इस मुश्किल काम को सुभाषिनी मिस्त्री ने पूरा कर दिखाया है।
पश्चिम बंगाल की सुभाषिनी मिस्त्री से आप मिलेंगे तो आपको ''अपने लिए जिए, तो क्या जिए, तू जी, ऐ दिल, ज़माने के लिए" गाने के बोल याद आ जाएंगे। मुफलिसी में ज़िंदगी जीने वाली सुभाषिनी ने अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के बजाय दूसरों की ज़िंदगी के बारे में सोचा और 20 साल तक सब्ज़ी बेचकर इकट्ठा किए पैसों से ग़रीबों के लिए मुफ्त अस्पताल खुलवाया। उनकी इसी नेकदिली से प्रभावित होकर भारत सरकार ने इस साल उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया है।

सुभाषिनी मिस्त्री 1943 में गुलाम भारत के एक गरीब घर में पैदा हुई थीं। 14 भाई - बहन थे उनके, अकाल पड़ा तो 7 भाई -बहनों की मौत हो गई। सिर्फ 12 वर्ष की उम्र में उनकी शादी हो गई और 23 साल होते-होते 4 बच्चे भी हो गए। सुभाषिनी के पति सब्जी बेचते थे। इसी से घर का खर्च चलता था। कमाई इतनी कम थी कि घर की स्थिति अच्छी नहीं थी।
एक दिन सुभाषिनी के पति बीमार हो गए, गांव में अस्पताल नहीं था इसलिए सुभाषिनी उन्हें टॉलीगंज ले गईं और वहां के ज़िला अस्पताल ले गईं। इलाज़ के लिए जितने पैसों की ज़रूरत थी सुभाषिनी के पास उतने रुपये नहीं थे। उनके पति की मौत हो गई। इसके बाद उनके दिमाग में ये बात बैठ गई कि इलाज़ के लिए पैसों की कमी की वजह से उन्हें अपने पति को खोना पड़ा।
बस इसके बाद सुभाषिनी ने यह तय कर लिया कि अब वह पूरी कोशिश करेंगी उनके आस - पास के इलाके में किसी की मौत इसलिए नहीं होनी चाहिए क्योंकि उसके पास पैसों की कमी थी। इस काम को पूरा करने के लिए उन्होंने 20 बरस तक मेहनत की, सब्जी बेची, मजदूरी से कमाया, लोगों के यहां चौका-बर्तन साफ किया और पैसे इकट्ठे करती रहीं। इन पैसों से घर चलाया, बच्चों को भी पढ़ाया और अस्पताल के लिए भी कुछ-कुछ जमा करती रहीं। एक समय ऐसा आया जब उन्होंने 10,000 रुपये में एक एकड़ जमीन हॉस्पिटल के लिए खरीद ली।

सुभाषिनी ने वर्षों तक मेहनत करने के बाद 1993 में ट्रस्ट खोला और इसके बाद 1995 में अस्पताल की नींव रखी। गांव के लोगों ने भी अस्पताल को बनाने में योगदान दिया। शुरुआत में ये अस्पताल सिर्फ फूस से बनाया गया था। लेकिन कच्चे घर में फूस की छत से बारिश में काफी दिक्कत हुई। ऐसे में सुभाषिनी और उसके बेटे अजोय ने पक्के मकान के बारे में सोचना शुरू किया। इसके लिए वह अपने एरिया के एमपी से भी मिले। बाद में स्थानीय लोग और एमएलए ने भी सहयोग दिया। सभी के प्रयासों से हजार वर्गफीट का अस्पताल तैयार हो गया। इसका उद्घाटन पश्चिम बंगाल के राज्यपाल ने किया। राज्यपाल की मौजूदगी ने कुछ स्थानीय मीडिया को भी आकर्षित किया। इसके बाद सुभाषिनी मिस्त्री का यह अद्भुत प्रयास लोगों के सामने आया। उनके इस प्रयास के लिए उन्हें इस साल पद्मश्री से नवाजा गया है।

सुभाषिनी कहती हैं कि मुझे असल पुरस्कार तो अस्पताल के शुरू होने से ही मिल गया था। सुभाषिनी के ट्रस्ट में अब तमाम बड़े लोग जुड़ गए हैं और कई नए डिपार्टमेंट खुल गए हैं। ट्रस्ट के पास 3 एकड़ जमीन है और अस्पताल का दायरा 9,000 वर्ग फीट का हो चुका है।
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