ये हैं भारत की पहली महिला नाई शांताबाई, मिसाल से भरी है इनकी कहानी

आज की कहानी भारत की महिला नाई शांताबाई की है। महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले के हासुरसासगिरी गांव में रहनेवाली 70 वर्षीय शांताबाई ने विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष कर जो मुकाम हासिल किया है वो हम सभी के लिये एक मिसाल है।
आज से करीब 40 साल पहले, एक पारंपरिक औरत जिसे यह भी नहीं पता था कि लिंग भेद क्या है। इन सभी चीजों से दूर वह औरत एक गांव में अपने परिवार के साथ शांत जीवन व्यतीत कर रही थी। लेकिन इसी बीच उसके साथ जीवन में एक अनहोनी घटी जिसकी उसने कल्पना तक नही की थी। इस घटना के बाद उसे मर्दों वाले काम को करना पड़ा जो की उस वक्त इसे सही नहीं माना जाता था। लेकिन अपनी भूखी बेटियों को दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए उसे यह भी करना पड़ा। इसकी वजह थी उसके पिता एक नाई थे और उसके पति श्रीपति भी एक नाई थे। शांताबाई जब सिर्फ 12 साल की थी, उसकी शादी हो गई थी।
पति के देहांत के बाद शांताबाई के पास कोई विकल्प नहीं था
1984 में जब उनकी बड़ी बेटी 8 साल की थी और छोटी एक साल से कम उम्र की थी तब दिल का दौरा पड़ने से श्रीपती का देहांत हो गया। पति श्रीपति की मौत के बाद गांव में कोई भी नाई नहीं था और शांताबाई वहां अपने पति की तरह ही अच्छे से कमा सकती थी। उस समय तक किसी ने भी कभी एक महिला नाई के बारे में नहीं सुना था। शांताबाई के पास इस एक विकल्प के बाद और कोई रास्ता नहीं था।
शुरू में गांव के लोगों ने उनके काम को ऊटपटांग बताते हुए मजाक उड़ाया करते थे। लेकिन शांताबाई की भावना को कोई भी नहीं तोड़ सका और फिर उसने एक नाई बनने का फैसला किया।शांताबाई काम पर जाते वक्त अपने बच्चों को अपने पड़ोसियों को यहां छोड़ जाया करती थी। शांताबाई हर रोज अधिक ग्राहकों की तलाश में आसपास के गांवों में 4-5 किलोमीटर की दूरी तय कर जाया करती थी। जल्द ही, कादल, हिदादुगी और नरेवाडी गांवों के निवासी शांताबाई के यहां नाई का काम कराने आने लगे क्योंकि उनके गांव में कोई नाई नहीं था।
इसके बाद शांताबाई को विभिन्न संगठनों द्वारा नाई समुदाय समाज के लिए एक प्रेरणा होने के लिए रत्न पुरस्कार जैसे पुरस्कार दिए गए। 1984 में शांताबाई बाल कटवाने और दाढ़ी बनवाने के लिए 1 रुपए चार्ज करती थी। जल्द ही वह मवेशियों की भी शेविंग करना शुरू कतर दिया था जिसके लिए वह 5 रुपए चार्ज करती थी।शांताबाई कहती है, 'गांव में एक सैलून है जहां गांव के सभी युवा जाते हैं। मैं केवल कुछ पुराने ग्राहकों से मिलती हूं। अब मैं दाढ़ी और बाल कटवाने के लिए 50 रुपए लेती हूं और मवेशी की हजामत बनाने के लिए 100 रुपए लेती हूं। मैं प्रति माह 300 से 400 रुपए कमा लेती हूं और सरकार की ओर से 600 रुपए मिलते हैं। इतने पैसे वास्तव में पर्याप्त नहीं है, लेकिन मैं इससे पहले भी कठिन परिस्थितियों से गुजर चुकी हूं और फिर से ऐसा कर सकती हूं।'
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