वायरल हुआ तेलुगु और हिंदी मिलाकर अंग्रेजी सिखाने का वीडियो

तेलंगाना के एक कस्बे सिद्दीपेट में 'सुभोद्या विद्यालयम' चलाने वाले एक टीचर एजाज अहमद ने ये सोचा भी नहीं था कि उनकी अंग्रेजी सिखाने की कला एकाएक इतनी प्रसिद्ध हो जाएगी कि फेसबुक पर उसे कुछ की घंटों में देखने वालों की तादाद हजारों में पहुंच जाएगी।
51 साल के एजाज अहमद वैसे तो पेशे से एक टीचर हैं लेकिन उन्हें गाने और एंकरिंग का शौक है। उनके टीचर बनने के पीछे भी एक कहानी है। खैर उनकी कहानी हम आगे बताएंगे कि वो टीचर कैसे बने... फिलहाल तो हम बात कर रहे हैं उनके उस वीडियो की जो इस समय सोशल मीडिया में चर्चा का विषय बनी हुई है।
एजाज अपने स्टूडेंट्स को अंग्रेजी के अल्फाबेट अनोखे अंदाज में सिखाते हैं। उनका मानना है कि अंग्रेजी को तेलुगु और हिंदी की मदद से आसानी से सीखा जा सकता है। यही उनकी सबसे बड़ी कला है कि वो सिर्फ एक समान 26 लाइनें खींच कर अंग्रेजी के सभी अल्फाबेट लिख देते हैं।
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अब एजाज की कहानी
तंदूर मंडल (आंध्र प्रदेश) के पेद्दुमल गांव में बेहद गरीब परिवार में पैदा हुए एजाज अहमद की शुरुआती पढ़ाई बहुत ही सामान्य रही। उनका ज्यादातर बचपन अपने दादा जी के साथ बीता। उसके बाद वो हैदराबाद चले गए वो आगे इंटरमीडिएट की पढ़ाई करना चाहते थे लेकिन उनके पिता आर्थिक तंगी की वजह से इसके सख्त खिलाफ थे।
आगे पढ़ने के लिए एजाज ने काम करना शुरू किया, पेपर बांटने के अलावा वो शाम को ऑटो चलाते थे। इसके बाद जब वो अपनी B.Sc (Hons) Zoology की पढ़ाई पूरी कर लिए तो उनके पिता ने उन्हें ऑटो चालक के रूप में अपना कैरियर बनाने को कहा जिसे एजाज ने मना कर दिया।
इसके बाद वो हैदराबाद ने सिद्दीपेट वापस चले आए। हालांकि वहां भी उन्हें दिक्क्तों का सामना करना पड़ा। 2-3 सालों तक उन्हें कोई काम नहीं मिला। फिर उन्हें एक टाइल्स की दुकान पर नौकरी के लिए अप्लाई किया। दुकान के मालिक ने एजाज को शिक्षित होने की वजह से उन्हें एक स्कूल में पढ़ाने का ऑफर का किया।
कहानी में ट्विस्ट
पढ़ाने का ऑफर तो एजाज को मिल गया लेकिन जैसे ही दुकान मालिक को पता चला एजाज तो मुस्लिम है उसने तुरंत काम देने से मना कर दिया। दुकान मालिक का कहना था कि उसने एजाज की तेलुगु भाषा पर पकड़ से समझा कि वो हिंदू है इसलिए उसे नौकरी पर रखना चाहता था। हालांकि दुकान मालिक ने एजाज को फिर भी नौकरी देने का मन बनाते हुए कहा कि अगर उन्हें यह नौकरी चाहिए तो धोती-कुर्ता पहनना पड़ेगा और वेद-उपनिषद पढ़ाना पड़ेगा।
एजाज को नौकरी हर हाल में चाहिए थी तो उन्होंने इसके लिए भी हां कह दिया। उसके लिए वो दिन रात एक कर पहले पढ़ाई की और पढ़ाने का काम शुरू कर दिया। हालांकि वो कुछ ही दिनों बाद वो नौकरी छोड़ कर सिद्दीपेट में ही एक स्कूल में पढ़ाने लगे। यहीं से उनकी जिंदगी ने मोड़ ले लिया। एजाज का मानना था कि पढ़ाई के तरीके को रोचक होना चाहिए था। इसी बीच उन्हें लगा कि अंग्रेजी, हिंदी और तेलुगु के कई शब्दों में समानता है, फिर तो उनके पढ़ाने के तरीके ने हर तरफ उनको पहचान दिलाने लगा।
1994 में एजाज ने परिवार की मदद से अपना एक स्कूल खोलने में कामयाब रहे। आज उनके स्कूल में कक्षा 10 तक की पढ़ाई होती है। एजाज के स्कूल में आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को एडमिशन दिया जाता है।
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