कभी अंग्रेजी से डरते थे चॉल में रहने वाले प्रथमेश, आज हैं इसरो के वैज्ञानिक

10 बाई 10 के कमरे में रहकर दिए के उजाले में अपने सपनों को हकीकत में बुनने वाले प्रथमेश हिरवे आज इसरो के वैज्ञानिक हैं। मुम्बई के पवई चॉल में पले-बढ़े प्रथमेश इसरो में चयनित होने वाले मुम्बई के पहले नागरिक (वैज्ञानिक) बने।
प्रथमेश जिस बस्ती में रहते थे वहां पर पढ़ाई-लिखाई का बिल्कुल ही माहौल नहीं था। 2007 तक मराठी में पढ़ाई करने वाले प्रथमेश जब 10वीं के बाद आगे की पढ़ाई करने के लिए बढ़े तो उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती बनी अंग्रेजी भाषा। लेकिन उन्होंने उस कमजोरी को अपनी आदत में डाला और आज इसरो के वैज्ञानिक बन गए।
अपने सपने को हकीकत में बदला

प्रथमेश आज वैज्ञानिक बन गए हैं, लेकिन कभी इनको कला विषय की पढ़ाई करने के लिए किया गया था। परिवार के लोगों के अलावा करियर काउंसलरों ने भी उन्हें कला विषय से पढ़ाई करने के लिए कहा था। लेकिन अपनी जिद के आगे वे नहीं माने। भाषा की बाधा होने के बाद भी उन्होंने 2007 में इलेक्ट्रिकल में इंजीनियरिंग का डिप्लोमा करने के लिए भागुभाई मफतलाल पॉलिटेक्निक कॉलेज में प्रवेश ले लिया।
अंग्रेजी भाषा में कमजोर होने के कारण वे अक्सर पीछे की बेंच पर बैठा करते थे, इसका बस यही कारण था कि वे सवालों का जवाब अंग्रेजी में नहीं दे सकते थे। न ही अंग्रेजी में किताब भी पढ़ सकते थे। जब दूसरे साल में उनके शिक्षक ने उन्हें अंग्रेजी भाषा से डरने की बजाय इसी पर काम करने लिए कहा और उन्होंने प्रथमेश को अंग्रेजी शब्दकोश सहित अंग्रेजी में किताबों को पढ़ने के लिए कहा। तब उन्होंने अंग्रेजी का दिन-रात अध्ययन करना शुरू कर दिया और भाषा की कमजोरी दूर हो गई।
पॉलिटेक्निक का डिप्लोमा हासिल करने के बाद प्रथमेश एल एंड टी और टाटा पावर में इंटर्नशिप करने लगे। प्रथमेश की पढ़ाई में रुचि को देखते हुए उनके संरक्षकों ने और अधिक पढ़ाई करने के लिए प्रोत्साहित किया। इसके बाद प्रथमेश ने इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के लिए नवी मुम्बई स्थित श्रीमती इंदिरा गांधी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में पढ़ने का निर्णय लिया। 2014 में यहां से इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की।
विफलताओं के आगे भी नहीं मानी हार
2014 में इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त करने के बाद प्रथमेश ने भी एक बड़ा लक्ष्य अपने भविष्य को लेकर बनाया। इंजीनियरिंग की डिग्री हालिस करने के बाद उसके सपनों को और उड़ान मिली। कुछ बड़ा करने की इच्छा लेकर प्रथमेश ने प्रतिष्ठित यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा में बैठने का निर्णय लिया और परीक्षा में प्रथमेश बैठे भी लेकिन उन्हें यहां पर विफलता ही हाथ लगी। इसके बाद प्रथमेश ने निर्णय लिया कि वे इसरो में आवेदन करें, लेकिन यहां पर प्रतीक्षा सूची से आगे भी नहीं बढ़ पाए।
सरकारी सेवा में चयनित न होने के कारण प्रथमेश कुछ मायूस भी हुए और इसी बीच उनको जॉब का अच्छा ऑफर आया और प्रथमेश ने जॉब करना भी शुरू कर दिया, लेकिन इसरो जैसे संस्थान में काम करने का एक बड़ा सपना होने के कारण उन्होंने एक बार फिर से 2017 में आवेदन किया। इस बार वे अपने लक्ष्य को पाने में सफल रहे। प्रथमेश ने जिस पद के लिए आवेदन किया था उन पदों के लिए 16000 आवेदन आए थे। जिसमें से महज 9 अभ्यर्थियों को ही लिया गया। नौ इलेक्ट्रिकल साइंटिस्ट के ही पद थे। प्रथमेश को जब पिछले साल 14 नवंबर को पता चला कि उन्होंने सफलता हासिल कर ली है, तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। आखिरकार इसरो में वैज्ञानिक बनने का सपना पूरा हो गया। प्रथमेश को पहली पोस्टिंग चंडीगढ़ में मिली है।
अब है माता-पिता को एक बड़ा आशियाना देने की चाहत

जिन मजबूरियों में माता-पिता ने प्रथमेश को पढ़ाया है और यहां पर तक पहुंचे है। बस अब प्रथमेश की इच्छा अपने माता-पिता को एक बड़ा सा आशियाना देने की है। वहीं प्रथमेश के माता-पिता भी उसकी इस कामयाबी से काफी रोमाचिंत है। प्रथमेश कहते हैं कुछ लोग इंजीनियर बनने की मेरी जिद पर हंसते थे, पर मम्मी-पापा ने मुझे सपने देखने की आजादी दी। आर्थिक तंगी के बावजूद उन्होंने मेरा साथ दिया। मां इंदूबाई कहती हैं- मैं 8वीं तक पढ़ी हूं। मुझे इसरो के बारे में कुछ पता न था, लेकिन लोगों ने बताया कि यह हमारे देश का कितना प्रतिष्ठित संस्थान है। मेरा बेटा अब वहां काम रहा है, यह सोचकर मैं बहुत खुश हूं। आंखों में खुशी के आंसू हैं। प्रथमेश की मां ने कहा था कि मुझे अपने बेटे पर बड़ा गर्व है कि उसने बचपन ही यहां तक पहुंचने के लिए बड़ी मेहनत की और उसी का नतीजा रहा है कि आज मेरा बेटा यहां पर है। वहीं प्रथमेश के पिता सोमा जो कि प्राथमिक स्कूल में शिक्षक है।
वह कहते हैं कि जब प्रथमेश ने काउंसलर की सलाह को मना करके अपनी जिद की तो मैंने बस उससे यही कहा कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए बहुत मेहनत करनी होगी और वे इस पर प्रतिबद्ध रहा। आज वे यहां तक पहुंचा है। जब उसने बताया कि मैं इसरो में वैज्ञानिक हो गया हूं तो मुझे एहसास हुआ कि अब सब ठीक हो गया है और उसी दिन-रात की मेहनत रंग लगाई है।
पढ़ाई पर मोहल्ले के लोग उड़ाते थे मजाक

प्रथमेश बचपन से ही किताबों के बीच में लगा रहता था, अक्सर उसका मजाक उसके मोहल्ले वाले उड़ाया करते थे कि आखिर क्या पाना चहता है। लेकिन प्रथमेश अपने ही धुन में मस्त रहता था। स्कूल से लौटने के बाद उनका समय घर पर ही बीतता। बाकी बच्चों की तरह बाहर खेलना उन्हें पसंद नहीं था। घर छोटा था। या यूं कहे कि घर के नाम पर बस एक कमरा था। एक कोने में मां खाना बनाती थीं और दूसरे कोने पर पलंग रखा था, जहां बैठकर वह पढ़ाई करते थे। मां इंदूबाई कहती हैं- बस्ती के बच्चे प्रथमेश को खेलने के लिए आवाज देते, पर उसे पढ़ना पसंद था। उसे एक ही धुन थी, इंजीनियर बनना है। कुछ लोग मजाक बनाते थे कि यह लड़का नौकरी करने की बजाय किताबों में खोए रहना चाहता है। कुछ यह भी पूछते, इतना पढ़कर क्या करोगे?
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