पेशे से मोची लालता प्रसाद अपने ज्ञान से सिल रहे हैं देश का भविष्य

लालता प्रसाद बताते हैं कि वो आठवीं तक पढ़े हैं। लेकिन वो रोजाना गरीब बच्चों को पढ़ाते हैं। उनका कहना है कि इन बच्चों को पढ़ाने का मकसद सिर्फ इतना है कि ये बच्चे पढ़-लिखकर देश के लिए कुछ नया कर सकें। लालता ने बताया, 'रिक्शा चलाने वाले वीरेन्द्र का बेटा शुभम रोजाना स्कूल से घर आकर मेरे पास पढ़ने आता है। उसके जो भी सवाल होते हैं, मैं उन्हें हल करने में मदद करता हूं।' वहीं 4 साल का शुभम लखनऊ के फातिमा कान्वेंट स्कूल, लाल बाग में केजी का छात्र है। उसका सपना पढ़-लिखकर देश की सेवा करना है। यही वजह है कि शुभम स्कूल के रिक्शा में बैठकर होमवर्क पूरा करने में लगा रहता है।
फैजाबाद के सुहावल गांव के रहने वाले लालता प्रसाद 25 साल पहले रोजी-रोटी की तलाश में लखनऊ आ गए थे। कुछ दिनों तक मजदूरी करने के बाद वे सड़क किनारे बैठकर मोची का काम करने लगे। लेकिन उनके दिल में हमेशा बच्चों की शिक्षा को लेकर चिंता रहती थी। इसलिए वो बच्चों को फ्री में पढ़ाना शुरू कर दिया। ताकि ये बच्चे एक दिन आगे बढ़ कर अपना भविष्य उज्जवल कर सके।
स्थानीय लोगों का कहना है कि एक ओर केन्द्र से लेकर राज्य सरकार शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए हर साल करोड़ों रुपए का बजट पास करती है, वहीं आजादी के 69 साल बाद भी सरकारी स्कूलों की तस्वीर बदल नहीं पाई है। अब लालता प्रसाद इन तस्वीर को बदलने की कोशिश में लगे हैं। अगर समाज में ऐसी ही कोशिश होने लगे तो शायद ये तस्वीर बदल भी जाए।
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