बेटी के सपनों की खातिर ऑटो ड्राइवर पिता ने खरीदी 5 लाख की रायफल

आमतौर पर बेटे और बेटियों में एक फर्क बहुत कॉमन देखा गया है। बच्चे जब छोटे होते हैं तो बेटियां खेलने के लिए गुड़िया और बेटे बंदूक जैसे खिलौने की मांग करते हैं। हालांकि ऐसा हमेशा नहीं होता है! ऐसी ही है आज की कहानी... मनीलाल की बिटिया को बंदूकों से खेलने का शौक था।
पेशे ऑटो ड्राइवर मनीलाल गोहिल अपनी बेटी के मित्तल को बचपन से हर वो खुशियां देते आए जो वो अपने सीमित आमदनी में कर सकते थे। लेकिन जब मनीलाल की बिटिया बड़ी हुई तो उसके सपनों ने ऑटोरिक्शा ड्राईवर पिता की सोच को बदल दिया है। मनीलाल पूरी जिंदगी बेटी की शादी के लिए पैसे जोड़ते रहे... लेकिन बेटी का सपना तो कुछ और ही था! मनीलाल को जैसे ही बेटी के सपनों का पता चला तो उन्होंने उसके सपनों को सच करना ज्यादा जरूरी समझा।
बेटी को निशानेबाजी का शौक
करीब 4 साल पहले मनीलाल की बेटी शहर के ही राइफल क्लब में गयी और वहाँ उन्होंने कुछ निशानेबाज़ों को निशाना लगाते देखा। बेटी को निशानेबाजी में रुचि बड़ने लगी, मनीराम ने भी अपनी बेटी को निशानेबाज़ी सीखने के लिये क्लब में भर्ती करा दिया, जहां वो एक किराये की रायफल से अभ्यास करती थी। ट्रेनिंग के शुरुआत में ही उसने राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीता, तभी उसके खेल के प्रति सहज रुझान का पता चल गया था।
रायफल का खर्च उठाना मनीलाल के लिए था मुश्किल
इतनी गरीबी और सीमित संसाधनों के बावजूद मनीराम ने उसके इस खर्चीले शौक को सीखने की इच्छा का सम्मान किया। बेटी मित्तल के लिए अगली चुनौती थी अपनी खुद की रायफल खरीदना जिससे कि उनकी ट्रेनिंग सुचारू रूप से चलती रहे और वो अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में भाग ले सके। उसके गरीब पिता के लिए 50 मीटर मारक क्षमता वाली जर्मन रायफल खरीदने के लिए धन जुटाना मुश्किल काम था।
शादी के लिए जोड़े गए पैसे से खरीदी रायफल
फिर मनीलाल ने फैसला किया और अपनी बेटी मित्तल के निशानेबाज़ी के जूनून को पूरा करने के लिए, उसकी शादी के लिए जमा किये धन से उसके लिए 5 लाख की रायफल खरीद दी। जब वो बन्दूक का लाइसेंस बनवाने स्थानीय कमिश्नर के ऑफिस गए तो वहां मौजूद पुलिस वाले उनके इस कदम से बहुत ही आश्चर्यचकित और प्रसन्न हुए और मनीराम की सराहना की और लाइसेंस के लिए मंजूरी दिलाने में मदद की।
6 महीने की कड़ी मेहनत और परिवार के लोगों द्वारा बचाये गए धन से आज मित्तल के पास अपनी खुद की एक नयी जर्मन रायफल है। इसकी 1 बुलेट (गोली) 31 रुपये की आती है और अगर मित्तल किसी टूर्नामेंट में भाग लेती हैं तो कम से कम 1000 राउंड गोलियों की जरुरत पड़ेगी। मनीलाल की बेटी मित्तल का संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है। भारत में इस तरह के खेलों को जिस तरह समर्थन और सरकार की तरफ से प्रोत्साहन मिलता है वो काफी नहीं है। लेकिन एक पिता का अपनी बेटी के लिए किया गया यह संघर्ष जरूर सफलता दिलाएगा।
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