कैसे लोन लेकर पशुपालन शुरू करने वाली धर्मिष्ठा बन गईं सफल महिला उद्यमी
महिलाएं अगर ठान लें तो क्या नहीं कर सकती फिर वो नौकरी हो या बिजनेस। वडोदरा जिले के वलवा गांव की रहने वाली धर्मिष्ठा के सपने भी बड़े थे। कुछ कर दिखाने की चाह थी जिससे लोग उन्हें उनके पति के नहीं बल्कि खुद के नाम से पहचानें।
धर्मिष्ठा ने अपने आप को साबित करके भी दिखाया, उन्होंने महिला सशक्तिकरण का एक बड़ा उदाहरण समाज के सामने रखा। धर्मिष्ठा परमार सिर्फ चौथी क्लास तक पढ़ी थीं और उनके घर की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो गई थी कि किसी तरह ही गुजारा हो पा रहा था। मुश्किल समय में भी धर्मिष्ठा ने हिम्मत और बुद्धि से काम लिया। उन्होंने सुन रखा था कि आजकल किस्तों पर घर से लेकर कारोबार सबकुछ चलाया जा सकता है। इसलिए वो भी अपना कोई खुद का काम शुरू करें जिससे कमाई हो सके।
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लोन लेकर की थी शुरुआत
धर्मिष्ठा ने भी फाइनेंस की इस सुविधा का फायदा उठाया और एक निजी फाइनेंस कंपनी से कुछ रुपये उधार लेकर एक गाय खरीदी। गाय की अच्छी तरीके से देखभाल की और उसके दूध को बेचना शुरू किया। दूध बेचकर जो पैसा आता था पहले कुछ दिनों तक तो उससे गाय की किस्त चुकाती रहीं । धर्मिष्ठा की लगन को देखकर फाइनेंस कंपनी ने उन्हें और ज्यादा पैसा देने का फैसला किया। फाइनेंस कंपनी से मिले पैसे से धर्मिष्ठा ने और गायें खरीदीं। इस तरह देखते ही देखते उसके पास 8 गाय हो गईं। धर्मिष्ठा ने अब पशुपालन के बारे में पशु चिकित्सकों और कृषि वैज्ञानिकों से जानकारियां इकट्ठा की जिससे वो अपने इस बिजनेस को और आगे बढ़ा सकें।
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और ऐसे बढ़ता गया बिजनेस
थोड़े समय बाद ही धर्मिष्ठा डेयरी चलाने लगीं और आस-पास के लोगों में भी डेयरी की चर्चा होने लगी। कम पढ़े लिखे होने के बावजूद उन्होंने अपनी डेयरी में नई तकनीकों का इस्तेमाल किया जैसे मशीन से गायों का दूध निकालना। उनके पास दूध के कई खरीदार हो गए थे जो घर से ही सीधे दूध ले जाते थे। धर्मिष्ठा की इस मेहनत को गुजरात सरकार ने भी सराहना की और उन्हें आत्मा प्रोजेक्ट (एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट एजेंसी) तहत जो एक अच्छे पशुपालक के रूप में 10,000 रुपये का नकद इनाम भी दिया।
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अपनी कड़ी मेहनत और जज्बे से धर्मिष्ठा ने न केवल अपने परिवार के मुश्किल समय को बदला बल्कि गाँव की अन्य महिलाओं को भी पशुपालन शुरू करके मुनाफा कमाने की जानकारी दी। आज गाँव की कई अन्य औरतें भी धर्मिष्ठा की तरह पशुपालन करके सशक्तिकरण की मिसाल पेश कर रही हैं। धर्मिष्ठा आज गायों की डेयरी चलाती हैं और इस डेयरी से होने वाली आमदनी से न केवल पूरे घर का खर्च चलता है, बल्कि महीने अच्छी खासी बचत भी हो जाती है।
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