पढ़िए, कैसे ये 'बैड स्टूडेंट बन गया यूट्यूब स्टार

महज 19 साल की उम्र होती ही क्या है! लेकिन अगर अपने देश की बात करें तो इस उम्र में यहां के बच्चे किताबों में डूबे रहते हैं। भविष्य की तैयारी और अपने परिवारवालों के सपने सच करने में लगे रहते हैं। कोई इंजीनियर बनने तो कोई डॉक्टर बनने के लिए अपनी अपनी तैयारी करना शुरू कर देता है। लेकिन आज हम जिस इंसान के बारे में बात करने जा रहे हैं वो कभी इन पछड़ों पड़ा ही नहीं। आयुष समले जो कि आज के वक्त में एक अविष्कारक के रूप में जाने जाने लगे हैं, उनके पास इस काम को करने के लिए डिग्री या फिर कोई प्रशिक्षण नहीं है।
आयुष समले बताते हैं कि वो अपने किल्स में कमजोर छात्रों के श्रेणी में आते थे। लेकिन अपने किल्स में वो अपने शिक्षक से सवाल बहुत पूछते। लेकिन उन्हों ऐसा लगा कि उनकी जिज्ञासा के अनुरूप उन्हें कोई प्रोत्साहित नही करता है। आयुष के मुताबिक वास्तविक जीवन में शिक्षा वो नहीं जो एक दूसरे को सिखाया जाए। कोई इंसान जरूरी नहीं कि हर काम किसी से देखर कर या फिर किताब में पढ़ कर ही सिखे। वो अपने जिज्ञासा को विकसित कर अलग तरह से अलग काम भी कर सकता है।
आयुष ने बताया कि "जब मैं स्कूल में था तब विज्ञान में मेरी रूचि विकसित हुई थी मैं बहुत सारे डिस्कवरी चैनल देखता हूं और कई सवाल थे जिनके लिए मैं उत्तर खोज रहा था। मेरे शिक्षक हमेशा मुझसे कहते थे कि पहले वे 'मेरे पाठ्यक्रम के बाहर' के सवालों का जवाब दें, तुम पहले पाठ्यक्रम पूरा करके दिखाओ। " सवालों का जवाब नहीं मिलने पर मेरे बेचैनी बढ़ती जा रही थी, यह वजह थी कि मैंने अपने सवालों का आंसर खुद से ढूंढना सुरू कर दिया और फिर मेरी जिज्ञासा ने मुझे ये अविष्कार करने पर मजबूर कर दिया।
जब मैं क्लास 6 में था तब पहली बार रॉकेट बनाया
आयुष ने बताया कि साल 2015 में, मैंने एक यूट्यूब चैनल की की शुरुआत की और उस पर DIY के नाम से वीडियो अपलोड करना शुरू कर दिया। उन्होंने बताया कि मेरा पहला वीडियो mini cross-bow था।" दो सालों में, चैनल के साथ 1.4 लाख से अधिक लोग जुड़े। फिलहाल मैं घर में अपने प्रशंसक के लिए हेयर ड्रायर बनाना रहा हूं।
इंजीनियर बनना चाहते थे आयुष
आयुष हमेशा एक इंजीनियर बनना चाहते थे, लेकिन उन्होंने कहा कि "हमारा सिस्टम अलग सोचने वालों को कभी भी प्रोत्साहित नहीं करता है और लेकिन में उस सिस्टम में ढालने को तैयार नहीं था।" उन्होंने अपने बीते समय के बारे में याद करते हुए कहा कि "मेरा जीवन हमेशा यह अच्छा नहीं रहा है, एक समय था जब मैं भाग गया और यहां तक कि मेरा सुसाइड करने के बारे में सोच रहा था। घर और स्कूल में लगातार ताने सुनने को मिलते थे क्योंकि मैं एक अच्छा छात्र नहीं था"
आयुष के माता-पिता, कभी भी उनके विचारों का समर्थन नहीं करते और उनके पिता हमेशा उन्हें 'अपने समय बर्बाद' प्रयोगों के लिए डांटते रहते थे। लेकिन आज जब मैं अपने प्रयोग को सफल कर के दिखा दिया है तो उन्हें मुझ पर गर्व है, लेकिन मेरी मां की चाहत है कि मैं एक इंजीनियरिंग डिग्री हासिल करुं। इसलिए मैं भावनाओं के लिए इतना तो मैं कर ही सकता हूं।
आयुष ने बताया कि पहली बार जब मुझे 9000 का चेक मिला तो मैं बहुत खुश हुआ। मुझे लगा कि मैं कर सकता हूं और इसी एहसास ने मुझे आगे बढ़ाया। अक्टूबर 2016 में, उसे 72,000 रुपये का चेक मिला।
आज आयुष कई अन्य युवाओं के लिए रोल मॉडल के रूप में हो गए हैं। जब बहुत से लोग बहुत उत्साह के साथ एक प्रोजेक्ट शुरू करते हैं, लेकिन उत्साह के साथ काम नहीं कर सकते हैं और जल्दी से बाहर निकल जाते हैं। आयुष ने कहा कि ये मेरा विज्ञान के लिए मेरा जुनून है जिसने मुझे रुचि बनाए रखने में मदद की है।"
आज भारत को कई ऐसे ही आयुषों की जरूरत है जो अपने सपनों को हकीकत में बदलने के लिए खुद को खुद से तैयार कर ले। साथ ही दूसरों को भी ऐसा करने का हौसला भर दे।
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