'जेंडर फ्रीडम' के लिए 17,000 किमी साइकिल चला चुके हैं राकेश

आज भी भारतीय समाज में कई जगहों पर बेटी पैदा होने पर मातम और बेटा पैदा होने पर खुशी मनाई जाती है। सरकार द्वारा कई योजनाएं लॉन्च करने के बावजूद महिलाओं की हालत किसी से छिपी नहीं है। महिलाएं आज भी एसिड अटैक, दहेज प्रताड़ना, बलात्कार जैसी त्रासदी झेलने को मजबूर हैं। जरूरत योजना लागू करने की नहीं बल्कि जरूरत है तो समाज की सोच को बदलने की!
क्योंकि ये कुंठित सोच ही महिलाओं को आज भी यातना दे रही है, इसी सोच को बदलने के लिए राकेश कुमार साइकिल से पूरे देश में जागरुकता फैलाने निकले हैं। वो अपने अभियान को सफल बनाने के लिए अब तक करीब 17 हजार किलोमीटर अपनी साइकिल से यात्रा कर चुके हैं।
क्या है जेंडर फ्रीडम?
इंडियावेव से बात करते हुए राकेश ने बताया कि इंसान जिस भी रूप में पैदा होता है वो उसकी पहचान बन जाती है। मसलन अगर कोई पुरुष के रूप में पैदा हुआ या स्त्री के रूप में, उसकी पहचान धीरे-धीरे एक दायरे में बंधने लगती है। समाज तय कर देता है कि पुरुष को ये काम करने हैं और महिलाओं के जिम्मे ये काम आएगा। जबकि ऐसा नहीं है, समय बदल रहा है! एक तरफ हम बात करते हैं लड़का-लड़की एक समान फिर उनके जेंडर के हिसाब से अलग-अलग पहचान कैसे हो सकती है?
कहां से मिली प्रेरणा?
2013 में राकेश अपने एक फिल्मकार दोस्त से मिले जो एसिड अटैक पीड़ितों पर डॉक्यूमेंट्री बना रहे थे। इस दौरान वो करीब 4 महीने एसिड अटैक पीड़िताओं के साथ रहे, वहां उन्होंने देखा कि ज्यादातार मामले प्यार के होते थे। जिसमें आशिक अपने प्यार की नाकामी बर्दाश्त न कर पाने के कारण अपनी प्रेमिका पर एसिड फेंक देता था। राकेश ने सोचा अगर लोगों में महिलाओं के प्रति सम्मान की भावना पैदा की जाय तो इस तरह के मामले कम होंगे। हालांकि राकेश का यह प्रयास समुद्र से मोती निकालने जैसा था लेकिन उन्होंने जब ठान लिया तो उसे हर हाल पर करने की ठान ली। आज राकेश अपने अभियान में सफल होते दिख रहे हैं। वो जहां भी जाते हैं लोग उनको सुनते हैं, उनसे सवाल करते हैं और वो उन सभी लोगों को जवाब देते हैं।
राकेश का सफर
मूलत: बिहार के रहने वाले राकेश सिंह जो कॉरपोरट सेक्टर में काम करते हैं, उन्होंने अपने इस अभियान की शुरुआत तमिलनाडु से की। वो अब तक चेन्नई, कर्नाटका, केरल, आंध्र प्रदेश पुडुचेरी, ओडिशा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की यात्रा कर चुके हैं। इस दौरान वो 17 हजार किलोमीटर साइकिल चलाते हुए करीब 4.5 लाख लोगों तक अपनी बात पहुंचा चुके हैं। वो इस यात्रा को 2018 में अपने गृह प्रदेश बिहार में ही समाप्त करना चाहते हैं।
कैसे काम करते हैं राकेश?
राकेश के काम करने का तरीका बेहद सादा है, वो करीब 20 किलोमीटर लगातार साइकिल चलाते हैं और जहां उनको कुछ लोग मिल जाते हैं वहीं अपनी सभा लगा लेते हैं। इस दौरान वो लोगों को महिला अधिकारों के बारे में जागरुकता फैलाने के साथ-साथ आज के समय में महिलाओं के महत्व को भी बताते हैं। लोग राकेश से अपने सवाल पूछते हैं, जिसका जवाब वो बारी-बारी से सभी को देते हैं।
देखिए, राकेश की एक मॉटिवेशनल स्पीच
राकेश अपने साथ एक माइक और वीडियो प्रोजेक्टर रखते हैं जिसपर वो महिला सशक्तिकरण पर बनी शॉर्ट फिल्में लोगों को दिखाते हैं। हालांकि शुरू में लोग समझते हैं कि वो किसी पॉलिटिकल पार्टी का प्रचार कर रहे हैं, लेकिन जैसे ही राकेश की असलियत लोगों को पता लगती है उनसे लोग जुड़ने लगते हैं और उनको सुनते हैं। राकेश समाज को बदलने के लिए जो प्रयास कर रहे हैं वो कठिन तो जरूर है लेकिन असंभव नहीं है, अगर आप भी किसी तरह लोगों में जागरुकता फैला सकते हैं तो जरूर फैलाइए।
राकेश के बारे में और जानने के लिए आप उनके फेसबुक पेज पर जाकर और जानकारी ले सकते हैं।
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