डिप्रेशन से जीतना मुमकिन है, पटना की स्वाति को ही देख लीजिए

हम सबकी जिंदगी में उतार चढ़ाव आते हैं। कभी तेज रफ्तार जिंदगी में अचानक ब्रेक लग जाते हैं और हम औंधे मुंह कहीं बिखरे पड़े होते हैं। बेसुध। ऐसा ही हुआ स्वाति के साथ। एक वक्त आसमां पर थी और पलक झपकते ही बदकिस्मती की जमीं पर औंधे मुंह पड़ी सोचने लगी थी कि मौत ही बेहतर है।
कानपुर से फ्रांस का सुनहरा सफर
दरअसल, उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में पली-बढ़ी स्वाति शुरुआत से ही पढ़ाई में तेज थी। सपना था अपने पैरों पर खड़े होकर नाम कमाने का। सब कुछ ठीक रास्ते पर भी था। स्कूल से लेकर ग्रेजुएशन तक टॉपर जैसी पढ़ाई की और उसके बाद बेंगलुरु से एमबीए करने पहुंच गई। इतना ही नहीं, एमबीए के दौरान ही स्वाति की किस्मत चमकी। उन्हें स्टूडेंट एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत फ्रांस से एमबीए पूरा करने का सुनहरा मौका भी मिल गया। उसके बाद जो कुछ होने वाला था, न तो उसकी कल्पना स्वाति ने की थी और न उनके घर वालों ने।
2013 और अंतहीन अंधेरी गली
2012 में स्वाति खुशी-खुशी फ्रांस से पढ़ाई पूरी करके डिग्री लिए लौटी तो एक अंतहीन अंधेरी गली उनका इंतजार कर रही थी। एक साल अच्छा गुजरा, स्वाति को लगा सब कुछ सपने जैसा है लेकिन 2013 आते ही सब कुछ तहस-नहस होने लगा। स्वाति बीमार पड़ीं और पता चला उन्हें सर्वाइकल ट्यूबरकोलोसिस (टीबी) है। एक झटके में स्वाति की तेज रफ्तार इंडिपेंडेंट जिंदगी बिखर चुकी थी। बिखरी भी इस कदर थी कि दो साल तक स्वाति के पास बिस्तर और दवाओं के अलावा बात करने के लिए सिर्फ मां थी।
मां को भी जाना था कहीं और...
स्वाति परेशान थी। बताती हैं, 'मैंने हमेशा सोचा था कि मेहनत करूंगी तो इंडिपेंडेंट हो जाऊंगी और जब इंडिपेंडेंट हुई तो जिंदगी ने बिस्तर पर पटक दिया। उसके बाद जो हुआ उसने मुझे पूरी तरह तोड़ दिया था।' स्वाति बीमारी से उबर भी नहीं सकी थीं कि उनकी मां ने मौत को गले लगा लिया। हमेशा दूसरों को समझाने वाली मां की आत्महत्या सबकी समझ से परे थी। स्वाति के लिए यह बड़ा सदमा था। स्वाति बताती हैं, 'मां मेरी सबसे अच्छी दोस्त थी। मुझे हमेशा प्रेरणा देती थी और मेरी जिंदगी थी। उनका जाना परिवार के लिए झटका था और मेरी तो जिंदगी ही सूनी हो चुकी थी।'
खुद से लड़कर की जोरदार वापसी
स्वाति डिप्रेशन की पेशेंट हो चुकी थीं, लेकिन बीमारी के दौरान ही स्वाति ने फैसला किया कि उन्हें नकारात्मक ख्यालों को खुद पर हावी नहीं होने देना है। वह बताती हैं, 'एक दिन मैंने खुद से पूछा कि क्या इस पूरे ब्रह्मांड में मैं ही अकेली इतनी दुखी हूं। मेरे पास जवाब था और मुझे जीना था। कुछ बेहतर करना था।' स्वाति अपने परिवार के साथ पटना शिफ्ट हो गईं और वहीं उन्होंने जिंदगी की नई शुरुआत की। स्वाति ने तय किया कि वह मां की कमी को शब्द देंगी। इस ख्याल के साथ स्वाति ने अपने पहले उपन्यास पर काम शुरू कर दिया।
आत्महत्या बनी किताब की वजह
स्वाति के पहले उपन्यास 'विदाउट ए गुडबाय' ने जहां प्रेम को उकेरा तो उनकी दूसरी किताब की वजह ही आत्महत्या बन गई। स्वाति को आत्महत्या की हर खबर सालने लगी। उन्होंने तभी अपनी दूसरी किताब की योजना बनाई। इस किताब का नाम रखा, 'Amayra, The Essence of Life'। इस किताब को स्वाति ने फोटो स्टोरी का रूप दिया ताकि लोग समझ सकें कि जिंदगी खत्म करने से उसकी गुत्थी नहीं सुलझती।
दूसरों को दिखा रही हैं राह
स्वाति के जीवन में एक पल वह भी ता जब उन्हें अपनी ही राह धुंधली दिख रही थी। अब स्वाति दूसरों को राह दिखा रही हैं। सूइसाइड प्रिवेंशन एक्टिविस्ट के तौर पर काम करते हुए वह जगह-जगह जाकर डिप्रेशन से जूझ रहे लोगों को नई राहों और पॉजिटिव अप्रोच से रू-ब-रू करा रही हैं। हाल ही में स्वाति ने मलेशिया में आयोजित हुई वर्ल्ड सूइसाइड प्रिवेंशन कॉन्फ्रेंस में अपना पेपर पेश किया।
Story Courtesy: YourStory
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