सोशल मीडिया पर हीरो बने रिक्शा चलाकर पीएचडी करने वाले मुकेश मिश्र

फेसबुक पर तेजी से शेयर हो रही यह पोस्ट लोगों के लिए प्रेरणा बन रही है। हालांकि कहानी की सच्चाई यह है कि बनारस विश्वविद्यालय में मुकेश मिश्रा नाम का कोई व्यक्ति पीएचडी नहीं कर रहा है, लेकिन इसके बाद भी यह कहानी सोशल मीडिया पर दूसरों के लिए प्रेरणा बन रही है। इस पोस्ट के बारे में मुकेश की मदद से यूनिवर्सिटी को कई फोन कॉल आ रहे हैं जोकि मुकेश की मदद करना चाह रहे हैं। इस संबंध में बनारस विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र के एचओडी के मुताबिक यह पोस्ट पूरी तरह फर्जी है।
वायरल हो रही मुकेश की कुछ ऐसी है कहानी
यह हैं मुकेश मिश्र। बनारस में अपनी पढ़ाई-लिखाई पूरी करने के लिए हफ्ते में तीन दिन रिक्शा चलाकर धन अर्जित करते हैं। पिता का देहांत हो चुका है। मुकेश अपने एक छोटे भाई को पॉलिटेक्निक (सिविल) करवा रहे हैं। मुकेश स्वयं नेट परीक्षा पास कर चुके हैं और अर्थशास्त्र विषय से अभी वर्तमान समय में पीएचडी कर रहे हैं। मुकेश मिश्र से पूछा गया कि आप की पारिवारिक दुर्दशा पर क्या कभी कोई सरकारी मदद आपको मिला है? उन्होंने हंस कर मुझे जवाब दिया, ‘क्या सर जी, ब्राह्मण हूं जन्म से। भीख मांग लूंगा, यह करना हमारा स्वभाव है। हमने भीख मांगकर देश का निर्माण किया है। दान ले कर दूसरे को और समाज को दान में सब कुछ दिया है। हम सरकार से अपेक्षा क्यों करेंघ् हम स्वाभिमान नहीं बेच सकते। हम आरक्षण के लिये गिड़गिड़ा नहीं सकते। हम मेहनत कर सकते हैं। रिक्शा चलाने में अपना स्वाभिमान समझते हैं। किसी का उपकार लेकर जीना पसन्द नहीं है। परशुराम के वंशज हैं। हम पकौड़ा तल कर अपने और अपने भाई की पढ़ाई पूरी कर सकते हैं, करेंगे। आप देखियेगा, कल हम खड़े हो जायेंगे। पीएचडी पूरी कर कहीं लग जायेंगे। रिक्शा भी चलाते हैं। मेहनत से पढ़ाई भी पूरी करते हैं। पीएचडी मेरी तैयार है। टाइप वगैरह के लिये थोड़ा और रिक्शा चलाऊंगा। भाई की पढ़ाई भी पूरी होने वाली है। माता की सेवा भी करता हूं। मां को कुछ करने नहीं देता। वे बस हमें दुलार कर साहस दे देती हैं।
पीएचडी कर्ता को मिलता है हर माह निर्धारित वेतन
यह पोस्ट इतनी तेजी से वायरल भले ही हो लेकिन हकीकत यह है कि पीएचडी करने वाले को यूजीसी द्वारा हर माह फिक्स्ड स्टाइपेंड के तौर 8 हजार रुपये दिए जाते हैं। ऐसे में रिक्शा चलाने का प्रश्न ही उठता है। बीएचयू के इकोनॉमिक्स डिपार्टमेंट के एचओडी प्रो. आद्या प्रसाद पांडे के मुताबिक ‘हमारे करंट रिकॉर्ड्स में किसी मुकेश मिश्र का नाम दर्ज नहीं है। अगर पिछले 4-5 सालों में कोई ऐसा स्टूडेंट आता भी, तो उसे रिक्शा तो कतई नहीं चलाना पड़ता।’
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