जानिए, कैसे इस महिला सब-इंपेक्टर ने बचाई 400 से ज्यादा जिंदगियां

अपनों को खोने का दर्द वही समझ सकता है जिससे कोई अपना बिछड़ गया हो। लेकिन मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनस पर तैनात आरपीएफ की रेखा मिश्रा ने 400 से ज्यादा परिवारों को इस तकलीफ से बचाया है।
वे पिछले एक साल के दौरान 434 बच्चों को बचा चुकी हैं जो या तो खो गए या फिर रास्ता भटक गए थे। सेन्ट्रल रेलवे के मुंबई डिविजन में रेलवे पुलिस ने पिछले साल कुल 1150 बच्चों को बचाया था, इनमें से मिश्रा ने अकेले 434 बच्चों को बचाने में मदद की। खास बात यह है कि मिश्रा ने पिछले साल ही बतौर सब-इन्सपेक्टर आरपीएफ जॉइन किया था।
भीड़ में भटके हुए बच्चों को तलाशती हैं रेखा की आंखें
मूल रूप से इलाहाबाद की रहने वाली 32 साल की रेखा कहती हैं कि उन्हें हमेशा से बड़ों का सम्मान करने और बच्चों की देखभाल करने की सीख दी गई। वह कहती हैं कि वह एक आर्मी फैमिली से आती हैं और इस वजह से भी उन्हें अपने काम में मदद मिलती है।
रेखा के पिता सुरेंद्र नारायण सेना से रिटायर हुए हैं जबकि उनके तीन भाई सेना में हैं। मिश्रा सुबह-सुबह अपना काम शुरू करते हुए 12 घंटे की शिफ्ट पूरा करती हैं। वह बताती हैं कि वह जब भी टर्मिनस पर अपने सहकर्मी शिवराम सिंह के साथ ड्यूटी पर होती हैं तो हमेशा उन लोगों की ढूढ़ती हैं जो भीड़ में अकेले महसूस कर रहे होते हैं। इनमें छोटे बच्चें- लड़के-लड़कियां, युवतियां होती हैं जिन्हें किसी के मदद की जरूरत होती है।
रेखा को बहुत सावधानी से करनी होती है अपनी ड्यूटी
मिश्रा बताती हैं कि सूचनाओं के आधार पर कार्रवाई करना या देशभर के दूसरे आरपीएफ कर्मचारियों को फोन पर मिली सूचना के आधार पर कार्रवाई करना भी काफी महत्वपूर्ण है। वह कहती हैं, 'संवेदनशीलता इसमें मदद करती है। बच्चों को आप पर भरोसा होना चाहिए।
उनमें से कुछ घर छोड़कर भागे हुए होते हैं तो कई ऐसे भी होते हैं जिनका यौनशोषण किया गया होता है। उनमें से कुछ ऐसे भी मिलेंगे जो घर वापस जाना नहीं चाहते। इसलिए बहुत ही सावधानी से काम करना पड़ता है।'
आरपीएफ के एक वरिष्ठ अफसर ने पहचान जाहिर न किए जाने की शर्त पर बताया कि मिश्रा जिन बच्चों को बचाती हैं उन्हें कोई नुकसान न पहुंचे यह सुनिश्चित करने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं। अधिकारी ने कहा, 'दरअसल यह एक थैंकलेस जॉब है।
आप जिनके साथ डील कर रहे होते हैं वे कोई अपराधी नहीं होते। अक्सर वे पीड़ित होते हैं और आप उन्हें स्टेशन पर छोड़कर शाम को अपने घर नहीं जा सकते। आपको उनके लिए वहां रहना पड़ेगा। वह यही करती हैं।'
जब रेखा ने अपहरण की हुई चेन्नई की 3 लड़कियों को बचाया
मिश्रा बताती हैं कि पिछले साल उन्होंने 400 से ज्यादा बच्चों को बचाया। वह खास तौर पर चेन्नै की 3 लड़कियों को याद करती हैं जिन्हें उन्होंने उनके मां-बाप से मिलाया था। वह कहती हैं, 'तीनों लड़कियों की उम्र 14 साल के करीब थी।
पहली लड़की ने मुझे बताया कि वह अपहर्ता के चंगुल से भागकर आई है। चूंकि भाषा एक बाधा थी तो हमें अनुवादक की मदद लेनी पड़ी थी। लेकिन आखिरकार उन्होंने सच्चाई बताया कि दरअसल फिल्मों में काम करने के लिए वे घर से भागी हुई थीं।'
मिश्रा कहती हैं कि उन्होंने अपने परिवार से कभी भी अपनी उपलब्धियों का बखान नहीं किया लेकिन सेंट्रल रेलवे ने हाल ही में उनके काम के बारे में ट्वीट किया था। बच्चों को बचाने का सिलसिला जारी है और रेखा मिश्रा 2017 के शुरुआती तीन महीनों में ही 100 से ज्यादा बच्चों को बचा चुकी हैं।
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