मिलिए दिल्ली के 'मटका मैन' से, सबके लिए सीख है इनकी सेवा
2013 में अलगरत्नम नटराजन ने साउथ दिल्ली में अपने घर के बाहर पहला वॉटर कूलर लगाया था। उस वक्त उनके घर के आस-पास के लोगों ने उनका बहुत विरोध किया था। साउथ दिल्ली के पढ़े-लिखे और अच्छे घर के लोगों को इसलिए दिक्कत थी क्योंकि वहां हर तबके के लोग पानी पीने आ रहे थे। हालांकि, उनकी आपत्ति के बावजूद नटराजन ने वहां से इसे नहीं हटाया। 'हर तरह के लोगों को पानी की जरूरत होती है', यह कहकर उन्होंने इस बात को वहीं खत्म कर दिया। आज उन्हीं नटराजन को पूरी दिल्ली 'मटका मैन' के नाम से जानती है।
69 साल के अलगरत्नम नटराजन 2013 से लगातार साउथ दिल्ली में अनगिनत जरूरतमंदों की प्यास बुझा रहे हैं। नटराजन दिल्ली में बहुत-सी समाज सेवी संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। अपने सामाजिक कार्यों के दौरान जब उन्होंने दिल्ली में लोगों को खाने और साफ पानी पीने के लिए भी मोहताज पाया तो उन्हें बहुत दुख हुआ। इसी बात से प्रेरित होकर उन्होंने अपने घर के बाहर लोगों को पानी पिलाना शुरू किया था।
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उन्होंने साउथ दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में लगभग 80 मटके लगवाए हैं और हर सुबह जाकर इन सारे मटकों को स्वच्छ और पीने योग्य पानी से भरते हैं। इस पहल के बारे में बात करते हुए नटराजन एफर्ट्स फॉर गुड वेबसाइट से कहते हैं, “एक बार मेरे वाटर कूलर से पानी भर रहे एक गार्ड को मैंने पूछा कि वह पानी लेने के लिए इतनी दूर यहां क्यों आया है, जहां काम करता है वहां क्यों नहीं पानी लेता है। उसने बताया कि वहां उसको पीने के लिए पानी नहीं दिया जाता है।”
वह कहते हैं कि शुरुआत में मैंने वॉटर कूल लगवाए, लेकिन इनमें खर्चा बहुत ज्यादा आता है, इसलिए अब मैं मटके का इस्तेमाल करता हूं। इसमें पानी भी ठंडा रहता है और वॉटर कूलर से कम खर्च आता है। नटराजन के इस काम में उन्हें उनके परिवार का पूरा साथ मिला।
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नटराजन जब 24 साल के थे तब वह बंगलुरू का अपना घर छोड़कर लंदन चले गए थे। वहां उन्होंने अपना बिजनेस शुरू किया। वह कहते हैं कि मैं हमेशा एक लग्जरी जिंदगी जीना चाहता था, जो सुंदर घरों, बेहतरीन कारों और शानदार फर्नीचर से घिरी हो। मैंने अपने इस सपने को पूरा भी किया, लेकिन लगभग 50 वर्ष की उम्र के बाद मेरी जिंदगी में बड़ा बदलावा आया।
नटराजन जब 56 वर्ष के थे तब उन्हें कोलन कैंसर हो गया। वह कहते हैं कि मुझे इसके बारे में शुरुआत में ही पता चल गया था इसलिए मैं ठीक हो गया, लेकिन इसमें मेरी बचत के पैसे का आधे से ज्यादा हिस्सा खर्च हो गया। फिर मैं वापस इंडिया लौट आया।
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वहां से वापस आकर वह साउथ दिल्ली में रहने लगे और खुद को समाज सेवा में लगा लिया। वह एक कैंसर अस्पताल में रोगियों की सेवा करते थे, एक अनाथालय में वॉलंटियर थे और वंचित तबके के लोगों का अंतिम संस्कार करने में मदद करते थे। इसके अलावा दो सिक्ख भाइयों के साथ मिलकर वह भूखे और बेघर लोगों के लिए लंगर में भी मदद करते थे।
खुद उठाते हैं सारा खर्च
जब नटराजन ने यह काम शुरू किया था, तब लोगों को लगता था कि सरकार ने उन्हें इस काम के लिए नियुक्त किया है। पर नटराजन को न तो सरकार से और न ही किसी संस्था से इस काम के लिए मदद मिलती है। वे अपनी जेब से ही पूरा खर्च उठाते हैं और अब उन्हें उनके जैसे ही कुछ अच्छे लोगों से दान के तौर पर मदद मिल रही है।
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नटराजन ने एक वैन में 800 लीटर का टैंकर, पंप और जेनरेटर लगवाया है, जिससे वह रोज़ मटकों में पानी भरते हैं। नटराजन ने बताते है, “गर्मी के दिनों में मटके में हमेशा पानी भरा रखने के लिए मैं दिन में चार चक्कर लगाता हूँ। गर्मी के महीनों में मटकों में पानी भरने के लिए रोज 2,000 लीटर पानी की जरूरत होती है।” मटकों के अलावा उन्होंने जगह-जगह 100 साइकिल पंप भी लगवाए हैं। यहां गरीब लोग 24 घंटे हवा भरवा सकते हैं।
और भी तरह से करते हैं गरीबों की मदद
पानी पिलाने के अलावा नटराजन हर हफ्ते 40-50 किलो फल भी हर हफ्ते मजदूरों को बांटते हैं। कई बार तो वह फल छील कर मजदूरों को खिलाते हैं और उनसे कुछ डिशेज भी बनाते हैं। वह कहते हैं कि मैं देखता था, ज्यादातर मजदूर प्लास्टिक बैग्स में खाना लाते हैं और खाना खाकर इन्हें यहां-वहां फेंक देते हैं। इसलिए मैं अब हर महीने स्टील के 100 लंच बॉक्स बांटता हूं, ताकि हर कोई इज्जत से बर्तन में खाना खा सके।
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