नादान परिंदों की देखभाल के लिए इस प्रिंस ने बनाई अनोखी एम्बुलेंस

नाम है प्रिंस, नाम से राजुकमार ये शख्स दिल का भी राजा है! इस प्रिंस का परिंदों से रिश्ता बेहद खास है। प्रिंस आजकल घायल पक्षियों को दूर-दूर तक ढूंढते हैं और उनका इलाज करते हैं। उनकी बर्ड एम्बुलेंस परिंदों की बेशकीमती जान बचाने के लिए ई-बाइक पर आ गई है और इससे पहले वह बरसों तक साइकल के सहारे ही घायल परिंदों की देखभाल करते थे।
प्रिंस ने क्यों की इस एम्बुलेंस की शुरुआत
प्रिंस का नादान परिंदों के साथ यह अनूठा रिश्ता दरअसल, एक दिल को झझकोर देने वाली घटना की वजह से बना। एक एनजीओ में शामिल प्रिंस एक बार टीम के साथ फिरोजपुर गए। जिस जगह वह ठहरे हुए थे वहां उन्होंने देखा की घर में काम करने वाली एक महिला बेसुध कबूतरों को डस्टबिन में डाल रही थी। प्रिंस के अनुसार उनसे यह देखा नहीं गया। उन्होंने कबूतरों को डस्टबिन से निकाले और कुछ दूरी पर जमीन में दफनाकर उनका अंतिम संस्कार कर दिया।
परिंदों की देखभाल का बीड़ा उठाया
इस घटना ने प्रिंस का इस कदर हिला दिया कि वो इनके लिए कुछ करने की ठान लिए। कई दिनों तक वह सोचते रहे कि आखिर इंसान की तरफ इन नादान परिंदों की भी आत्मा होती है। इन्हें भी सम्मान और प्यार की जरूरत है। यह घटना उनके जहन में इस कदर बैठ गई कि उन्होंने तभी से परिंदों की देखभाल करने का बीड़ा उठा लिया। अपनी रोटी-रोटी से पैसे बचाकर पक्षियों को बचाने का संदेश देने वाले पर्चे छपवाए और स्कूलों के आसपास बांटे।
डोनेशन लेने से किया मना
प्रिंस देश के संभवत पहले ऐसे शख्स है जिसने कई साल तक बिना किसी की मदद के घायल परिंदों की देखभाल के लिए साइकल पर बर्ड एम्बुलेंस चलाई। उसकी यह मुहिम दुनिया के सामने आई तो एक नैशनल बैंक ने उसे वैन डोनेट करने की कोशिश की। पर्यावरण प्रेमी ने वैन के पेट्रोल से फैलने वाले प्रदूषण से चिंतित होकर इसे लेने से मना कर दिया तो उसे ई-बाइक सौंप दी गई। तब से प्रिंस इसी ई-बाइक पर बर्ड एम्बुलेंस लेकर दूर-दराज तक आता-जाता है।
ऐसे करते हैं इलाज
प्रिंस के मुताबिक वे अब तक 550 परिंदों का दाह संस्कार कर चुके हैं और असंख्य घायल परिंदों का जीवन बचा चुके हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें पिछले साल ही चंडीगढ़ प्रशासन ने डीसी रेट पर ऐनिमल हज्बंड्री डिपार्टमेंट में नौकरी दी है। इसके पक्षियों का इलाज और देखभाल काफी आसान हो गया है। अगर कोई पक्षी ज्यादा घायल नहीं होता तो वह उसका इलाज घर पर ही कर लेते हैं और गंभीर पक्षी का इलाज डिपार्टमेंट के अस्पताल में करते हैं। उन्होने बताया कि गर्मियों में वे लोगों को पानी के कटोरे भी भेंट करते हैं ताकि लोग इन्हें घरों की छत पर रखें और पक्षियों को पीने का पानी मिल सके। इस काम में हर महीने करीब 2 हजार रुपए का खर्च आ जाता है और अब लोग भी मदद के लिए आगे आने लगे हैं।
कई अवार्ड पा चुके हैं प्रिंस
प्रिंस को उनकी इस अनूठी मुहिम के अब अवार्ड भी मिलने लगे हैं। लिम्का बुक ऑफ रेकॉर्ड में उनका नाम आ चुका है। इंडिया बुक ऑफ रेकॉर्ड, यूनीक वर्ल्ड रेकार्ड्स, रिपब्लिक डे पर चंडीगढ़ प्रशासन की तरफ से स्टेट अवार्ड और यूपी बुक ऑफ रेकार्ड्स भी मिल चुके हैं। परिंदों की दुनियों को करीब से जाने वाले नैचरल बायोडावर्सेटी ग्रुप और हॉबी डिवेलपमेंट असोसिएशन के प्रेजिडेंट कुलभूषण कंवर के मुताबिक आज की जेनरेशन को पक्षियों के नाम तक पता नहीं हैं। वे अच्छे-अच्छे स्कूलों में पढ़ते जरूर हैं लेकिन, कंप्यूटर और वर्चुअल लाइफ जीते हैं, उन्हें नेचर के महत्व के बारे में बताना वक्त की मांग है। उन्होंने बताया कि वे जॉब से रिटायरमेंट के बाद अपने इस पैशन को पूरा कर रहे हैं।
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