फिर खबरों में है ये बालिका वधु, इस बार की वजह जान मुस्कुरा देंगे आप

संस्कृतियों से भारत देश की अनोखी कहानी है! यहां की सरकारों ने समय समय पर कई नियम कानून बनाते हुए कुरीतियों को समाप्त करने का भले ही बीड़ा उठाया लेकिन वो पूरी तरह से उसे समाप्त नहीं कर पाए। ऐसी ही एक कुरीती है बाल विवाह, भारत में आज कई हिस्सों में इस कुरीति को निभाया जा रहा है।
ऐसी ही कुछ कहानी है राजस्थान की एक बेटी की जो आज से 12 साल पहले बाल विवाह को लेकर खबरों में थी और आज फिर है। इस बार की वजह सुकून देनी वाली है।
12 साल पहले रूपा का हुआ बाल विवाह
आज से करीब 12 साल पहले राजस्थान की बेटी रूपा के घरवालों ने महज आठ साल की उम्र में 12 साल के शंकरलाल से उसकी शादी करा दी थी। उस वक्त मीडिया में मासूम बच्चों की रोती हुई तस्वीरें काफी चर्चा का विषय बनी थी। अब उसी रूपा ने मेडिकल एंट्रेंस टेस्ट (NEET) पास कर लिया है, यानी अब वह डॉक्टरी की पढ़ाई करेगी। हालांकि इस बेटी को इस मुकाम तक पहुंचाने में उसके ससुराल वालों का भी बड़ा हाथ है। ससुराल वालों ने मदद की तो रूपा ऐसा काम कर दिखाया है, जिसके बाद शायद दुनिया के कोई मां-बाप अपनी बेटी का बाल विवाह करने से पहले हजार बार सोचेंगे।
रूपा की पूरी कहानी
रूपा जब तीसरी कक्षा में पढ़ रही थीं तभी उनकी शादी सातवीं में पढ़ने वाले शंकर लाल से कर दी गई। इतना ही नहीं उसी समारोह में उनकी बड़ी बहन की शादी शंकर के बड़े भाई से कर दी गई। जिस उम्र में रूपा को शादी का मतलब भी नहीं पता था, उस उम्र में वह शादी के बंधन में बंध गईं। जब वह दसवीं कक्षा में पहुंची तो उनका गौना हुआ। यानी वे अपने माता-पिता का घर छोड़कर अपनी ससुराल आ गईं।
ससुराल आने के बाद बदल गई रूपा की किस्मत
गौना के बाद पति और उनके ससुराल वालों ने उनका हौसला बढ़ाया और उन्होंने दसवीं की परीक्षा दी। जब रिजल्ट आया तो सबके चेहरे पर खुशी झलक रही थी, क्योंकि रूपा ने दसवीं के एग्जाम में 84 प्रतिशत नंबर हासिल किए थे। शंकर के गांव में कोई स्कूल नहीं था इसलिए रूपा को पढ़ने के लिए 6 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था। रूपा की सास अनपढ़ हैं, लेकिन किसी की परवाह न करते हुए उन्होंने अपनी बहु को पढ़ने के लिए भेजा।

बहन के सपने को पूरा करने के लिए भाई चलाया ऑटो रिक्शा
12वीं के बाद रूपा ने बीएससी में दाखिला ले लिया और मेडिकल का एंट्रेंस एग्जाम देने की तैयारी करने लगीं। लेकिन पहले प्रयास में उन्हें सफलता नहीं मिली और उन्हें 23,000 रैंक से संतोष करना पड़ा। वह बताती हैं कि किसी ने उन्हें कोटा जाकर कोचिंग करने की सलाह दी, लेकिन वह इस दुविधा में थीं कि उनके ससुराल वाले कोटा भेजने को राजी होंगे या नहीं। उन्होंने जब यह बात अपने पति और भाई को बताई तो वे रूपा के सपने को पूरा करने के लिए ऑटो रिक्शा चलाने लगे।
कोटा जाकर कोचिंग की
रूपा ने घर पर रहकर तैयारी शुरू कर दी थी, लेकिन 2016 में भी उन्हें सफलता नहीं मिली। रूपा ने हर हाल में कोटा में कोचिंग करने का फैसला कर लिया। एक कोचिंग संस्थान को जब रूपा की कहानी पता चली तो उन्होंने उनकी 75 प्रतिशत फीस माफ कर दी। लेकिन रूपा का सफर इतना आसान तो था नहीं। उन्हें और उनके परिवार को पिछड़ी मानसिकता के लोगों के ताने सुनने पड़ते थे। गांव के लोग रूपा के ससुराल वालों को कहते थे कि इसे पढ़ने के बजाय घर में रखो और रसोई का काम करवाओ। पढ़ाई-लिखाई में कुछ नहीं रखा। मगर रूपा के पति को उन पर काफी भरोसा था। कोचिंग में काफी कम फीस लगने की वजह से शंकर ने अपने घरवालों को समझा लिया।
ससुराल वालों ने रूपा की हरसंभव मदद की
कोचिंग करने पर उनके परिवार की आर्थिक हालात खराब हो रहे थे, क्योंकि पढ़ाई और रहने में काफी पैसे खर्च हो रहे थे। उनके ससुराल वालों ने कोचिंग का खर्चा उठाने के लिए पैसे उधार लिए और एक भैंस पाल ली ताकि उससे दूध बेचकर कुछ कमाई हो सके। रूपा ने कोचिंग की मदद से जमकर मेहनत की और 2017 के नीट एग्जाम में 720 में से 603 नंबर लाकर ऑल इंडिया लेवल पर 2,283वीं रैंक हासिल कर ली। वह काउंसिलिंग में शामिल होने जा रही हैं और उन्हें पूरी उम्मीद है कि कोई न कोई सरकारी कॉलेज जरूर मिल जाएगा। वह एसएमएस मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेना चाहती हैं।
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