कौन थे प्रोफेसर जीडी अग्रवाल जो आईआईटी की नौकरी छोड़कर बन गए 'गंगापुत्र'

11 अक्टूबर के दिन मां गंगा की अविरल धारा को निर्मल बनाने के लिए संघर्ष कर रहा 'गंगापुत्र' हमेशा के लिए इस दुनिया से चला गया। गंगापुत्र और कोई नहीं बल्कि पर्यावरणविद प्रोफेसर जीडी अग्रवाल थे। जीडी अग्रवाल मां गंगा की खातिर प्रोफेसर से संत बन गए और उन्हें दुनिया स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद के नाम से जानती थी। स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद तीन महीने से गंगा नदी की सफाई और इसमें खनन व पनबिजली परियोजनाओं पर प्रतिबंध लगाने की मांग को लेकर अनशन पर बैठे हुए थे। उनकी हालत बिगड़ती चली गई लेकिन सरकार का उनकी तरफ ध्यान नहीं गया और देश ने एक अच्छे पर्यावरणविद् को खो दिया। यहीं जिसने पूरे जीवन पर्यावरण संरक्षण को लेकर पढ़ाया ऐसे एक महान विद्वान को खो दिया।
कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से हासिल की थी पीएचडी डिग्री
पश्चिमी यूपी के मुजफ्फरनगर में जन्में प्रोफेसर जीडी अग्रवाल का सपना बचपन से ही इंजीनियर बनने का था। इंजीनियर बनने के लिए उन्होंने वर्तमान के देश के सबसे बड़े इंजीनियरिंग कॉलेजों में शुमार रूड़की स्थिति यूनिवर्सिटी ऑफ रूड़की में प्रवेश लिया जो कि अब आईआईटी रुड़की के नाम से पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद जीडी अग्रवाल को तुंरत ही नौकरी मिल गई और उन्होंने बतौर डिजाइन इंजीनियर उत्तर प्रदेश के सिंचाई विभाग में अपनी नौकरी शुरू की थी। लेकिन कुछ करने की जिद व पर्यावरण बचाने की धुन सवार होने के कारण जल्द ही वह नौकरी में रहते ही हुए पीएचडी करने अमेरिका चले गए।
पर्यावरण विषय पर उन्होंने बर्कले की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया से पर्यावरण इंजीनियरिंग में पीएचडी की डिग्री हासिल की। पर्यावरण के क्षेत्र में पूर्णरूप से दक्ष होने के बाद उन्होंने इस क्षेत्र में किताबें लिखना शुरू कर दिया। पीएचडी करने के बाद उन्होंने सिंचाई विभाग की नौकरी छोड़ दी और कानपुर आईआईटी में पर्यावरण इंजीनियरिंग के प्रोफेसर हो गए। जलपुरुष के नाम से मशहूर मैगसैसे अवॉर्ड विजेता राजेंद्र सिंह के अनुसार, देश की पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत इंदिरा गांधी ने पर्यावरण को बचाने की मुहिम में जुटे प्रो. अग्रवाल के योगदान व कार्यों को देखते हुए उन्हें पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण के लिए केंद्र सरकार की सर्वोच्च संस्था सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) के पहले सदस्य सचिव के तौर पर नियुक्त किया। उन्हें 1979-80 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पहला सदस्य सचिव नियुक्त किया था। सीपीसीबी के पहले सदस्य-सचिव के साथ-साथ वह नेशनल गंगा रीवर बेसिन ऑथरिटी के बोर्ड मेम्बर भी रहे, लेकिन 2012 में उन्होंने इस पद से यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया कि ऑथरिटी अपने मौलिक उद्देश्यों को पूरा नहीं कर पा रही है।
चार बार अनशन पर बैठे थे प्रो. अग्रवाल

गंगा के संरक्षण के लिए समर्पित प्रो. अग्रवाल आईआईटी में पढ़ाते रहने के दौरान भी सक्रिय थे। पूर्व में भी कई बार अपनी मांगों को लेकर अनशन किए, जिसके बाद सरकारों को गंगा नदी की अविरल धारा को प्रभावित करने वाली परियोजनाएं रोकनी या वापस लेनी पड़ीं। 2008 से 2012 के बीच में उन्होंने 4 बार अनशन किया। तब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और सरकार को उनके अनशन के आगे झुकना पड़ा। इसके बाद भी उनका पर्यावरण बचाने का मकसद पूरा नहीं हो पा रहा था और उन्होंने आईआईटी छोड़ दी। इसके बाद छात्रों की मदद से दिल्ली में एक एक कंपनी खोली और उसका नाम रखा गया एन्वायरोटेक इन्स्ट्रूमेंट प्राइवेट लिमिटेड. लेकिन उनका दुनिया से मोहभंग हो गया।
11 जून 2011 को गंगा दशहरा था। इसी दिन प्रोफेसर जीडी अग्रवाल ने उत्तराखंड में जोशी मठ में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को गुरु मानकर संन्यास ले लिया और उनका नाम हो गया स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद। यूपीए सरकार ने भागीरथी नदी पर 600 मेगावाट का एक प्रोजेक्ट शुरू किया था, जिसे लोहरी नागपाला प्रोजेक्ट कहा जाता था। प्रोफेसर जीडी अग्रवाल ने इस प्रोजेक्ट के खिलाफ 38 दिनों तक अनशन किया प्रो. अग्रवाल व अन्य कार्यकर्ताओं की मांगों पर तत्कालीन केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने गंगा की सहायक नदी भागीरथी पर डैम बनाने के काम को रोकने का आदेश दिया था।
पीएम मोदी को चार बार लिखी थी चिठ्ठी
प्रोफेसर अग्रवाल जब अपनी मांगों को लेकर लगातार यूपीए सरकार से मोर्चा ले रहे थे उस दौरान प्रोफेसर जीडी अग्रवाल की मांगों का समर्थन करते थे। जब 2012 में गुजरात के मुख्यमंत्री थे उसी दौरान मार्च 2012 में प्रोफेसर जीडी अग्रवाल गंगा सफाई को लेकर अनशन कर रहे थे। उस वक्त नरेंद्र मोदी ने प्रोफेसर जीडी अग्रवाल की स्वास्थ्य की चिंता जताते हुए कहा था कि उन्हें उम्मीद है कि केंद्र सरकार गंगा को बचाने के लिए ऐक्शन लेगी। अचानक क्या हो गया जब वह प्रधानमंत्री बने तो फिर वह जीडी अग्रवाल के बारे में ध्यान ही नहीं दिया। प्रोफेसर जीडी अग्रवाल ने पीएम मोदी को संबोधित करते हुए चार पत्र लिखे थे। पहला पत्र उन्होंने 24 फरवरी 2018 को लिखा था। उन्होंने मां गंगा के बेटे का पीएम मोदी को हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि बड़े भाई और गंगा का बेटा होने के नाते प्रोफेसर अग्रवाल ने पीएम मोदी से गंगा से संबंधित कुछ मांगों को पूरा करने क कहा था।
इसके बाद उन्होंने दूसरी चिट्ठी उन्होंने हरिद्वार के कनखल से 13 जून 2018 को लिखी थी। लेकिन इस पत्र का भी कोई जवाब नहीं आया फिर प्रोफेसर जीडी अग्रवाल ने 22 जून से अनशन शुरू कर दिया। पांच अगस्त 2018 को पीएम मोदी को तीसरा पत्र लिखा लेकिन कोई बात नहीं बनी। इसके बाद उन्होंने चौथी और अपनी आखिरी चिट्ठी अपनी मौत से कुछ ही घंटे पहले लिखी थी। इस चिट्ठी में उन्होंने लिखा था कि हरिद्वार प्रशासन ने उन्हें जबरन मातृ सदन से उठाकर एम्स ऋषिकेश में दाखिल करवा दिया था। जब प्रोफेसर जीडी की मौत हुई, तो मौत के करीब छह घंटे बाद पीएम मोदी ने एक ट्वीट किया। इसमें उन्होंने प्रोफेसर जीडी अग्रवाल को श्रद्धांजलि देते हुए लिखा कि "गंगा सफाई के लिए उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा। अब गंगा कब साफ होगी, ये तो नहीं पता, लेकिन गंगा की सफाई को लेकर अपना पूरा जीवन कुर्बान करने वाले एक सच्चे पर्यावरणविद को देश ने खो दिया है।"
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