गीता ने कर्म को माना पूजा, बनी डब्ल्यूएचओ की कैलेंडर गर्ल
सैकेड़ों बच्चों तक हर दिन पहुंचने का रहा गीता का लक्ष्य
पहाड़ों में बसे हिमाचल प्रदेश के गांवों तक जाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है। दूर-दूर बसी बस्तियों तक जिस तरीके से मंडी जिले की स्वास्थ्य कर्मी पहुंची उससे जरूर मैदानी क्षेत्रों में काम करने वाली स्वास्थ्य वर्करों को सोचना चाहिए। उन्होंने मंडी जिले के शिकारी देवी जैसे दुर्गम क्षेत्र में गीता बाइक से घूमी। उन्होंने यहां के बच्चों की जान बचाने के लिए कागजों पर नहीं बल्कि हकीकत में टीके लगाए। उन्होंने मीजल्स और रूबेला के टीके हर बच्चे को लगाए। लगन के कारण गीता दिन में दो सौ बच्चों तक पहुंचने का लक्ष्य साध सकी। गीता वर्मा ने सितंबर में चलाए गए एमआर (मिजल्स एंड रूबेला) कैंपेन के दौरान बाइक पर घूम-घूम कर दुर्गम क्षेत्रों में भी टीकाकरण सफल बनाया था। बाइक पर टीकाकरण के लिए जाती हुई गीता वर्मा की तस्वीर काफी वायरल हुई थी। फीमेल हैल्थ वर्कर की काम के प्रति लगन की प्रदेश ही नहीं, देश में भी सराहना हुई थी। इसके बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन के लिए 2018 के कैलेंडर में गीता वर्मा की तस्वीर प्रकाशित की गई है। गीता को डब्ल्यूएचओ द्वारा प्रशस्ति पत्र व स्मृति चिह् से भी सम्मानित किया गया।
गीता स्वास्थ्य कर्मी के रूप में है उपकेंद्र पर तैनात
गीता इस क्षेत्र में बहुत घूमी है उन्होंने यहां के गांवों में बच्चों को बचाने के लिए आने वाले हर टीकाकरण को पूरी निष्ठा से लगाया है। जिसका नतीजा रहा कि उन्हें इतने सम्मान से सम्मानित किया गया। यह पहला मौका है, जब मंडी की किसी फीमेल हेल्थ वर्कर को विश्व स्वास्थ्य संगठन के कैलेंडर में जगह मिली है। गीता वर्मा के पति केके वर्मा हिमाचल पुलिस में सेवाएं दे रहे हैं और गीता वर्मा करसोग सीएचसी के तहत उनकी तैनाती सब सेंटर शंकर देहरा में है। गीता ने घूमंतु गुर्जरों के 48 बच्चों का टीकाकरण किया था। उनके साथ इस अभियान में गीता भाटिया व प्रेमलता भाटिया ने भी पूरा सहयोग दिया और दुर्गम क्षेत्रों में टीकाकरण सफल बनाया। गीता ने मौसम या पथरीली राहों की परवाह नहीं की। वह जंजैहली में शिकारी देवी आदि दुर्गम क्षेत्र में पहुंचीं और घर-घर जाकर टीकाकरण किया। मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. डीआर शर्मा का कहना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के कैलेंडर में मंडी की फिमेल हैल्थ वर्कर की तस्वीर प्रकाशित की गई है। यह गर्व की बात है।
पहाड़ी इलाकों में स्कूटी चलाना था मुश्किल
सरकार की तरफ से सितम्बर माह में शुरू हुए टीकाकरण के लिए उन्होंने पूरी कार्ययोजना अपनी टीम के साथ बनाई। हर बच्चे को टीका लगाने के लिए उन्होंने प्रयास शुरू किया। कम्पीलक्ष्य को पूरा करने के लिए वह सुबह ही बाइक पर सवार हो घर से निकल पड़ती थीं और तय लक्ष्य पूरा न होने तक घर वापस नहीं लौटती थीं। बकौल गीता, पहले मैं स्कूटी ही चलाती थी, जिसे करीब दो साल पहले ही खरीदा था। बाइक चलाने का ज्यादा अनुभव नहीं था, लेकिन संकरे मार्ग पर स्कूटी ले जाना संभव नहीं था, इसलिए बाइक पर जाकर अपनी ड्यूटी निभाई। हालांकि, कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के चलते उनके लिए तय लक्ष्य पूरा करना पाना मुश्किल था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और जहां बाइक भी नहीं जा सकी, वहां वह पैदल चलकर पहुंचीं और अपने काम को अंजाम दिया। दो से तीन किलोमीटर तक ऊबड़ खाबड़ रास्तों पर चलना पड़ता, लेकिन उन्होंने दुर्गम से दुर्गम इलाके में भी टीकाकरण का लक्ष्य पूरा किया। जब उन्हें इस कार्य के लिए सम्मान मिला तो उन्हें काफी सुकून मिला। बाइक पर टीकाकरण के लिए जाती हुई गीता वर्मा की तस्वीर वायरल हो चुकी है।
‘‘जब भी आप कोई काम, दृढ़ इच्छा, लगन व पूरी ईमानदारी से करते हैं तो उसके नतीजे बेहतर ही होते हैं। मेहनत से किया काम दिल को भी तसल्ली देता है।’’ गीता वर्मा, स्वास्थ्य वर्कर
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