कश्मीरी बेटियों की उम्मीद बनी एवरेस्ट फतेह करने वाली नाहिदा
मंजिलें उन्ही को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है, पंखो से कुछ नहीं होता हौसलों से उडान होती है। ये लाइनें एवरेस्ट फतेह करके पहली कश्मीर महिला बनने वाली नाहिदा खातून पर बिल्कुल सटीक बैठती है। आर्थिक तंगी होने के बाद नाहिदा ने एक बड़ा सपना संजोया और उसको पूरा करने की तरफ बढ़ चली। सपनों को पूरा करने के लिए भले ही उनके पास पैसे न रहे हो, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और ऑनलाइन चंदा जुटाया। चंदे से रुपया एकत्रित करके उन्होंने तैयारी शुरू की और आखिरकार जम्मू कश्मीर की लाडो नाहिदा खातून ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह कर लिया।
ये भी पढ़ें: पढ़िए हाईवे पर सरपट ट्रक दौड़ाने वाली इस महिला ट्रक ड्राइवर के हौसले की कहानी
नाहिदा से पहले जम्मू कश्मीर पुलिस के दो जवानों नजीर अहमद व फलील सिंह ने एवरेस्ट फतह किया था। एवरेस्ट चोटी फतह करने वाली कश्मीर की नाहिदा पहली महिला पर्वतारोही बन गई हैं। कश्मीर के जेवन इलाके में रहने वाली नाहिदा के पिता मंजूद अहम पांपौरी छोटी सी दुकान चलाते है। नाहिदा ने यह कारनामा गाइड शेरपा निमा कंचा की देखरेख में अंजाम कर दिखाया है। लद्दाख क्षेत्र की रहने वाली स्टेंजिन लस्किट, रिग्जिन डोल्कर, त्सेरिंग आंगमों और ताशी लस्किट हैं। इन लोगों ने मई 2016 में एवरेस्ट फतेह किया है।
यह भी पढ़ें : इस लड़की ने 159 दिनों में साइकिल से नापी पूरी दुनिया
दस साल की उम्र में देखा एवरेस्ट फतेह करने का सपना
कश्मीरी घाटी के जब्रवान की पहाड़ियों पर ट्रैकिंग करते हुए दस साल की उम्र में कश्मीर की इस बेटी ने अपनी सहेली से कहा था, मेरा सपना है माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई को नापना और इस सपने को मैं पूरा करके रहूंगी। आखिरकार उन्होंने 14 साल के बाद एवरेस्ट को फतह कर लिया। कश्मीर की बेटी ने अपने सपनों को पंख देकर पुरातनपंथियों और जिहादियों के फरमानों की जंजीरें तोड़ दी है। आज सपनों को उड़ान देने के लिए मौका तलाश रही कश्मीर की बेटियों को भी डर की जंजीरें तोड़ आगे बढ़ने का हौसला दे दिया है। नाहिदा मंजूर अब कश्मीर की लाखों बेटियों के लिए उम्मीद बन गई हैं। नाहिदा के जज्बे को सभी सलाम कर रहे हैं। हालांकि उनका सफर इतना आसान नहीं था। पिता मंजूर अहमद दुकानदार और मां ठेठ कश्मीरी गृहिणी है, ऐसे में संसाधनों का संकट बहुत बड़ा था।
नाहिदा यह भी कर चुकी हैं फतह
नाहिदा ने एवरेस्ट फतेह करने से पहले हिमाचल प्रदेश में माउंट डियो टिब्बा, फ्रेंडशिप पीक और श्रीनगर की सबसे ऊंची चोटी महादेव के अलावा पीरपंजाल में टाटाकूटी के शिखर को छू चुकी थीं। नाहिदा अपने घर से करीब दस किलोमीटर श्रीनगर में रेलवे स्टेशन के पास स्थित टीआरसी में वॉल क्लाइंबिग में अभ्यास करती थी। घर से अधिक दूरी होने के कारण वह हर दिन नहीं जा पाती थी, लेकिन सप्ताह में तीन दिन अभ्यास करने वह जरूर जाती थीं। पैसा इकठ्ठा करने के लिए नाहिदा ने मार्च माह के दौरान क्राउड फंडिंग का सहारा लिया। इंटरनेट पर उनकी अपील का असर हुआ और कई लोग सामने आए और काफी चंदा इकठ्ठा कर लिया। बता दें एवरेस्ट पर परचम फहराने के लिए कम से कम 30 लाख रुपये चाहिए होते है। नाहिदा बताती है कि मेरी मदद के लिए हैदराबाद स्थित ट्रांजिट एडवेंचर क्लब ने उनकी ओर मदद का हाथ बढ़ाया और वह नौ अप्रैल 2019 को काठमांडु पहुंच गईं। यहां से माउंट एवरेस्ट पर विजय पताका फहराया। नाहिदा विश्व भारती वूमेन कॉलेज की छात्रा है और उन्होंने पूरी ट्रेनिंग नेहरू इंस्टीट्यूट माउंटेनियरिंग से ली है।
संबंधित खबरें
सोसाइटी से
अन्य खबरें
Loading next News...