बैसाखी के सहारे अपने लक्ष्य को भेदती नेशनल शूटर आकांक्षा

अगर कुछ भी कर गुजरने की चाह और जज्बा हो तो कोई भी काम मुश्किल नहीं होता। उत्तर प्रदेश के बिजनौर की रहने वाली आकांक्षा को शुरू ये ही स्पोटर्स पसंद था। वो आगे चलकर इसे ही अपना करियर बनाना चाहती थी। खेल दिमाग में कुछ इस तरह से घर कर चुका था कि जैसे ही मौका मिलता वो प्रैक्टिस में जुट जाती थीं। लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ जिसने आकांक्षा की जिंदगी को पूरी तरह से अगर कुछ भी कर गुजरने की चाह और जज्बा हो तो कोई भी काम मुश्किल नहीं होता। उत्तर प्रदेश के बिजनौर की रहने वाली आकांक्षा को शुरू ये ही स्पोटर्स पसंद था। वो आगे चलकर इसे ही अपना करियर बनाना चाहती थी। खेल दिमाग में कुछ इस तरह से घर कर चुका था कि जैसे ही मौका मिलता वो प्रैक्टिस में जुट जाती थीं। लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ जिसने आकांक्षा की जिंदगी को पूरी तरह से बदल दिया। नेशनल शूटर दिव्यांग आंकाक्षा चौधरी ने इंडिया वेब को बताए अपनी जिंदगी और संघर्ष से जुड़े कुछ किस्से......
सवाल- सबसे पहले विश्व दिव्यांग दिवस में सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का अवार्ड मिलने के लिए आपको बधाई। इस सफर की शुरूआत कहां से हुई, उसके बारे में कुछ बताइए।
जवाब- मैं बिजनौर की रहने वाली हूं और बचपन से ही जब टीवी में लड़कियों को स्पोटर्स में देखती थी तो सोचती थी कि मैं भी बड़े होकर खिलाड़ी ही बनूंगी और देश का नाम रोशन करुंगी। भले एक छोटे से कस्बे की रही हूं लेकिन घर वालों ने मेरी इस पसंद पर कभी ऐतराज नहीं किया, वो इस बात से खुश थे कि मैं कुछ अलग करना चाहती हूं।
सवाल- ये हादसा कैसे हुआ और इसके बाद क्या बदलाव आए।
जवाब- साल 2008 की बात है , मैं क्लास 7 में थी और एक ट्रेन हादसे में मेरा बांया पैर चला गया। वो दर्द और तकलीफ अभी भी याद करती हूं तो मेरे आंखों में आंसू आ जाते हैं। लेकिन मेरे परिवार ने मुझे पूरा सपोर्ट किया। मैंने अपनी इस कमी को कभी किसी चीज में आड़े नहीं आने दिया। ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई की। 2016 में जिला रायफल एसोसिएशन के अध्यक्ष खान जफर सुल्तान से मैंने निशानेबाजी की ट्रेनिंग लेना भी शुरू कर दिया। मेरा एक पैर नहीं था इसलिए मैं टेबल पर बैठकर निशाना लगाती थी।
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सवाल- अभी तक कहां-कहां के खेलों में आप हिस्सा ले चुकी हैं।
जवाब- मैं अभी तक प्री स्टेट शूटिंग में गोल्ड, यूपी स्टेट शूटिंग में गोल्ड, प्री नेशनल शूटिंग में सिल्वर, 26 वें ऑल इंडिया जीवी मावलंकर शूटिंग चैपिंयनशिप में गोल्ड, 60वें नेशनल चैंपियनशिप शूटिंग (राइफल) में सिल्वर मेडल और 61 वें नेशनल पैरा शूटिंग चैपिंयनशिप में शिल्वर मेडल जीता है। अभी विश्व दिव्यांग दिवस पर राज्यपाल राम नाईक ने मुझे सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का सम्मान दिया।
सवाल- अभी कहां से ट्रेनिंग ले रही हैं और आगे की क्या प्लानिंग हैं।
जवाब- अभी तो मैं दिल्ली के तुगलकाबाद के कर्णी सिंह स्टेडियम में प्रैक्टिस कर रही हूं। मैंने पहले ही सोच लिया था जो भी करना है मुझे ही करना है तो यही बात मुझे आज तक हिम्मत देती है। आगे अब ओलम्पिक में जाने की तैयारी है और उसके लिए पूरी मेहनत करुंगी।

सवाल- लोगों को कोई मैसेज देना चाहेगीं।
जवाब- बस यही कहूंगी कि अगर हमारे अंदर कुछ करने की सच्ची लगन है तो कोई भी चीज वो करने से हमें नहीं रोक सकती है। शारीरिक अक्षमता आपके रास्ते में तब तक रोड़ा नहीं बनेगी जब तक आप सच्ची लगन और मेहनत से काम करते रहेंगे। दिव्यांग कोई अलग नहीं है ये आपके जैसे लोग ही हैं इनपर तरस न खाएं बल्कि आगे आने में इनको सपोर्ट करें।
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